न्यायिक निर्णय मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
22 Feb 2024 10:12 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस सिद्धांत को दोहराया कि किसी न्यायिक निर्णय को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले के रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने कहा कि यह नरेश श्रीधर मिराजकर बनाम महाराष्ट्र राज्य में निर्धारित किया गया। उक्त मामले में कहा गया कि "सक्षम क्षेत्राधिकार वाले जज द्वारा या उसके समक्ष लाए गए किसी मामले के संबंध में दिया गया न्यायिक निर्णय मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।"
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर आपराधिक अपील पर शीघ्र निर्णय लेने के लिए हाईकोर्ट को निर्देश देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अपनी आपराधिक अपील की सुनवाई में देरी से व्यथित होकर संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर की।
न्यायालय ने कहा कि मामले को सूचीबद्ध करने के संबंध में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
न्यायालय ने कहा,
"अगर किसी भी कारण से हाईकोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता की आपराधिक अपील (यद्यपि 2016 में दायर) को शीघ्र सुनवाई के लिए प्राथमिकता नहीं दी गई तो यह भी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है और इसे अनुच्छेद 21 के उल्लंघन का हवाला देते हुए अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका में चुनौती के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है।“
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता, यदि आपराधिक अपील लंबित रहने तक जमानत पर रिहा होना चाहता है, तो वह रिट उपाय का सहारा नहीं ले सकता, लेकिन उसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 389(1) के तहत आवेदन का सहारा लेना होगा।
न्यायालय ने रिट याचिका को "गलत धारणा" के रूप में खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के पास हाईकोर्ट पर अधीक्षण की कोई शक्ति नहीं
रिट याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
"भारत के संविधान के भाग-V (संघ) के तहत अध्याय-IV में कोई प्रावधान नहीं है, जो संविधान के अनुच्छेद 227 के समान है। उसके अध्याय-V के तहत हाईकोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट को अधीक्षण की शक्ति प्रदान करता है।"
न्यायालय ने तिरूपति बालाजी डेवलपर्स (पी) लिमिटेड बनाम बिहार राज्य (2004) 5 एससीसी 1 मामले की मिसाल का हवाला दिया, जिसमें माना गया कि हमारी संवैधानिक योजना में दो संस्थानों (सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट) के बीच क्षेत्राधिकार का स्पष्ट विभाजन है और दोनों संस्थानों को एक-दूसरे के लिए परस्पर सम्मान रखने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने कहा,
"याचिकाकर्ता की प्रार्थना स्वीकार करना और प्रार्थना के अनुसार कोई भी निर्देश जारी करना, किसी अन्य संवैधानिक न्यायालय के प्रति अनादर दिखाते हुए विवेकाधीन क्षेत्राधिकार का अनुचित प्रयोग होगा; इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा प्रार्थना की गई ऐसी कोई भी दिशा जारी नहीं की जा सकती।"
कोर्ट ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा यह मानते हुए भी कि अनुच्छेद 32 के तहत याचिका सुनवाई योग्य है, वह केवल हाईकोर्ट से अनुरोध कर सकती है।