माता-पिता द्वारा की गई अनाचारपूर्ण यौन हिंसा के लिए कठोरतम दंड की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट ने पिता की POCSO दोषसिद्धि बरकरार रखी

Shahadat

7 Aug 2025 1:09 PM IST

  • माता-पिता द्वारा की गई अनाचारपूर्ण यौन हिंसा के लिए कठोरतम दंड की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट ने पिता की POCSO दोषसिद्धि बरकरार रखी

    सुप्रीम कोर्ट ने एक पिता की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए कहा कि किसी भी परिस्थिति में अनाचारपूर्ण यौन हिंसा को क्षमा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह पारिवारिक विश्वास की नींव को हिला देता है। उक्त पिता ने अपनी दस वर्षीय नाबालिग बेटी के साथ बार-बार बलात्कार किया था।

    यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की धारा 6 के तहत प्रवेशात्मक यौन हमले के अपराध के लिए उसे दी गई आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखते हुए न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरण को पीड़ित लड़की, जो अब वयस्क हो गई है, उसको मुआवजे के रूप में 10,50,000 रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।

    न्यायालय ने शुरू में ही निराशा व्यक्त करते हुए कहा,

    "मामले के तथ्य किसी और द्वारा नहीं, बल्कि पीड़िता के पिता द्वारा विश्वासघात की अवर्णनीय कहानी को उजागर करते हैं।"

    पिता के इस तर्क को खारिज करते हुए कि उन्हें तनावपूर्ण घरेलू संबंधों के कारण झूठा फंसाया गया, अदालत ने कहा,

    "कोई भी बेटी, चाहे कितनी भी पीड़ित क्यों न हो, केवल घरेलू माहौल से बचने के लिए अपने पिता के खिलाफ इतने बड़े आरोप नहीं लगाएगी।"

    अनाचार संबंधी अपराधों के लिए कठोरतम निंदा की आवश्यकता होती है

    अदालत ने कहा कि अनाचार संबंधी अपराधों के लिए "कड़ीतम निंदा और निवारक दंड" की आवश्यकता होती है। किसी भी आड़ में इस तरह के दुराचार को माफ करना न्याय का उपहास होगा और हमारे संवैधानिक और वैधानिक ढांचे में निहित बाल संरक्षण अधिदेश के साथ विश्वासघात होगा।

    जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने एक प्राचीन ग्रंथ का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं की गरिमा सर्वोपरि है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता।

    अदालत ने उद्धृत किया,

    "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्र अफला: क्रिया:।" अर्थात्, "जहां स्त्रियों का सम्मान होता है, वहाँ देवत्व फलता-फूलता है; और जहां उनका अपमान होता है, वहां सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "यह श्लोक न केवल एक सांस्कृतिक सिद्धांत, बल्कि एक संवैधानिक दृष्टि को भी दर्शाता है। महिलाओं की गरिमा पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। हमारी न्याय व्यवस्था को अनुचित सहानुभूति या कथित प्रक्रियात्मक निष्पक्षता की आड़ में उस गरिमा में बार-बार दखलंदाज़ी की अनुमति नहीं देनी चाहिए।"

    पिता के साथ विश्वासघात

    न्यायालय ने कहा,

    “जब एक पिता, जिससे एक ढाल, एक संरक्षक, एक नैतिक दिशानिर्देश होने की अपेक्षा की जाती है, एक बच्चे की शारीरिक अखंडता और गरिमा के सबसे गंभीर उल्लंघन का स्रोत बन जाता है तो यह विश्वासघात न केवल व्यक्तिगत होता है, बल्कि संस्थागत भी होता है। पुनर्वास या सुधार की आड़ में कानून ऐसे कृत्यों को न तो क्षमा करता है और न ही कर सकता है। माता-पिता द्वारा किया गया अनाचारपूर्ण यौन हिंसा एक विशिष्ट श्रेणी का अपराध है, जो पारिवारिक विश्वास के आधारभूत ढांचे को तार-तार कर देता है और इसकी भाषा और वाक्य दोनों में कड़ी निंदा की जानी चाहिए। घर को एक आश्रयस्थल होना चाहिए, उसको अकथनीय आघात का स्थल बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालतों को स्पष्ट संकेत देना चाहिए कि ऐसे अपराधों का समान रूप से कठोर न्यायिक जवाब दिया जाएगा।”

    इस प्रकार, के मामले में उदारता की अपील पर विचार करना न केवल अनुचित होगा, बल्कि यह कमजोर लोगों की रक्षा करने के न्यायालय के अपने संवैधानिक कर्तव्य के साथ विश्वासघात भी होगा।

    अदालत ने कहा,

    "जब एक बच्ची को अपने ही पिता के हाथों कष्ट सहने के लिए मजबूर किया जाता है तो कानून को दृढ़ और अडिग स्वर में बोलना चाहिए। ऐसे अपराधों के लिए सज़ा देने में कोई रियायत नहीं दी जा सकती, जो परिवार को सुरक्षा के एक स्थान के रूप में स्थापित करने की अवधारणा को ही नष्ट कर देते हैं।"

    इस प्रकार, अपीलकर्ता के पिता के कृत्य के दंडात्मक परिणामों के अलावा, अदालत ने निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ (2019) में पारित निर्देश के अनुसार, यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों की पीड़िता महिलाओं के लिए मुआवज़ा योजना, 2018 के तहत हिमाचल प्रदेश राज्य द्वारा पीड़िता को 10,50,000/- रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया।

    अदालत ने आगे कहा,

    "यह न्यायालय दोहराता है कि न्याय केवल दोषसिद्धि तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि जहां कानून इसकी अनुमति देता है, वहां इसमें क्षतिपूर्ति भी शामिल होनी चाहिए। यह मुआवज़ा प्रदान करते हुए हम बाल पीड़ितों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने की संवैधानिक प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं कि दिया गया न्याय ठोस, करुणामय और पूर्ण हो।"

    तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।

    Cause Title: BHANEI PRASAD @ RAJU VS. STATE OF HIMACHAL PRADESH

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