ED और राज्य अधिकारियों के बीच के मामलों में निष्पक्ष जांच होनी चाहिए; कोई प्रतिशोधात्मक गिरफ्तारी नहीं: सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देश तैयार करने को कहा

Shahadat

25 Jan 2024 10:10 AM GMT

  • ED और राज्य अधिकारियों के बीच के मामलों में निष्पक्ष जांच होनी चाहिए; कोई प्रतिशोधात्मक गिरफ्तारी नहीं: सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देश तैयार करने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (25 जनवरी) को यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश बनाने का इरादा व्यक्त किया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) और राज्य सरकार के अधिकारियों से जुड़े मामलों की जांच निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हो।

    हालांकि अपराधियों को बरी नहीं किया जाना चाहिए, प्रतिशोधात्मक गिरफ्तारी और दुर्भावनापूर्ण डायन-शिकार भी नहीं होनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि वह ऐसा सिस्टम विकसित करने का प्रस्ताव कर रहा है, जो पूरे भारत में लागू हो सके।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ED द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ED अधिकारी अंकित तिवारी के खिलाफ रिश्वत मामले की जांच तमिलनाडु सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय से केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

    खंडपीठ ने तमिलनाडु राज्य को नोटिस जारी कर याचिका पर उसकी प्रतिक्रिया मांगी और मामले को दो सप्ताह के बाद स्थगित कर दिया। कोर्ट ने टीएनडीवीएसी को निर्देश दिया कि इस बीच वह तिवारी के खिलाफ जांच आगे न बढ़ाएं। अदालत ने आगे निर्देश दिया कि राज्य एजेंसी को मामले में अब तक एकत्र की गई सभी सामग्रियों को अदालत के साथ साझा करना चाहिए।

    जब मामला उठाया गया तो ED की ओर से पेश हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि एजेंसी रिश्वत मामले में फंसे अधिकारी का समर्थन नहीं कर रही है, बल्कि मामले की निष्पक्ष और उचित जांच चाहती है।

    एसजी ने शिकायत की कि तमिलनाडु पुलिस अनुसूचित अपराधों की एफआईआर साझा नहीं कर रही है, जिससे राज्य के कई अधिकारियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में ED की जांच रुक रही है।

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि राज्य एजेंसी ने तिवारी के खिलाफ मामले की जांच की आड़ में ED कार्यालय पर छापा मारा और कई असंबद्ध फाइलें जब्त कर लीं, जो कई मंत्रियों के खिलाफ मामलों में प्रासंगिक हैं, जो ED की जांच के दायरे में हैं।

    राज्य की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने इन आरोपों से इनकार किया।

    इस मौके पर खंडपीठ ने कहा कि वह "इस मामले में बड़े मुद्दे" का समाधान करना चाहती है।

    जस्टिस विश्वनाथन ने दोनों वकीलों से कहा,

    "देश की संघीय प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम प्रथाओं का बड़ा मुद्दा... हम सिस्टम विकसित करेंगे। आपको एक साथ बैठना चाहिए और सुझाव देना चाहिए।

    जज की बात से सहमति जताते हुए सिब्बल ने कहा कि 'देश के संघीय ढांचे को खतरे में डाला जा रहा है।'

    जस्टिस सूर्यकांत ने मद्रास हाईकोर्ट द्वारा तिवारी के खिलाफ मामले में CBI जांच को खारिज करने के आदेश का जिक्र करते हुए कहा,

    "जिस तरह से जनहित याचिका दायर की गई, जिस तरह से हाईकोर्ट ने इस पर विचार किया और आदेश पारित किया, हम नहीं चाहते कि अभी इस पर टिप्पणी करनी है। लेकिन कुछ ऐसा है, जो दोनों पक्षों के बारे में कहा जा सकता है। बेहतर होगा कि आप समाधान लेकर आएं, अन्यथा हम पता लगा लेंगे। मामले की पारदर्शी तरीके से जांच करने की जरूरत है।"

    जब सिब्बल ने आरोप लगाया कि ED केवल "कुछ राज्यों" को निशाना बना रही है तो एसजी ने यह कहकर आपत्ति जताई कि राजनीतिक बयान दिए जा रहे हैं।

    जस्टिस विश्वनाथन ने तब समझाया कि न्यायालय के मन में क्या है,

    "ऐसे वास्तविक मामले हो सकते हैं, जहां ईडी को जाना पड़ सकता है, ऐसे मामले भी हो सकते हैं, जहां उन्हें दुर्भावना से लाया गया हो। कुछ प्रकार की सर्वोत्तम प्रथाएं हम चाहते हैं। एक ऐसा सिस्टम होना ही चाहिए, जहां केंद्रीय एजेंसी, विशेष रूप से जब सत्तारूढ़ दल केंद्र और राज्य के बीच भिन्न हो। कुछ ऐसा विकसित करना होगा, जिससे वास्तविक मामले केवल इसलिए छूट न जाएं, क्योंकि इसे केंद्रीय एजेंसी द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। साथ ही यहां कोई दुर्भावनापूर्ण डायन-शिकार नहीं है।"

    सॉलिसिटर जनरल ने इस तरह के सिस्टम की आवश्यकता पर खंडपीठ के साथ सहमति व्यक्त करते हुए शिकायत उठाई कि टीएन पुलिस अनुसूचित अपराधों की एफआईआर साझा नहीं कर रही है। एसजी ने प्रस्तुत किया कि एफआईआर से संबंधित तमिलनाडु पुलिस की वेबसाइट सक्षम प्राधिकारी के आदेशों के तहत अवरुद्ध कर दी गई और कहा कि जज स्वयं इस तथ्य की जांच कर सकते हैं।

    जब सिब्बल ने जवाब देते हुए पूछा कि क्या ED ने किसी अन्य राज्य में एफआईआर के लिए कहा है तो जस्टिस कांत ने उनसे पूछा,

    "मिस्टर सिब्बल, क्या एफआईआर को वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया जाना चाहिए? गोपनीयता क्यों?"

    जस्टिस कांत ने पूछा,

    "यदि आपने किसी लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार या अवैध खनन या आय से अधिक संपत्ति के लिए एफआईआर दर्ज की है, तो राज्य का यह कहने का क्या औचित्य है कि हम ED को आगे की जांच की अनुमति नहीं देंगे?"

    सिब्बल ने कहा,

    "ED की जांच केवल तभी हो सकती है, जब अपराध की आय हो और अपराध की आय को वैध धन में बदलने का प्रयास किया जा रहा हो। मनी लॉन्ड्रिंग अपराध है, अपराध की आय नहीं। तो ED प्रथम दृष्टया धन के बिना जांच करने का हकदार कैसे है लॉन्डरिंग?"

    उन्होंने कहा कि ED अवैध खनन से संबंधित मामलों की एफआईआर मांग रहा है, जो धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत अनुसूचित अपराध नहीं है। इस समय तमिलनाडु के एडिशनल एडवोकेट जनरल अमित आनंद तिवारी ने खंडपीठ को सूचित किया कि मद्रास हाईकोर्ट ने रेत खनन मामलों पर जिला कलेक्टरों को ईडी के समन पर रोक लगा दी।

    जस्टिस कांत ने याचिका पर नोटिस जारी करने का आदेश देने के बाद मौखिक रूप से कहा,

    "हम आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं। कृपया सिस्टम का पता लगाने और हमें बताने का प्रयास करें, जो निष्पक्ष और पारदर्शी हो। यह सभी राज्यों पर लागू होना चाहिए। हम इस राज्य से शुरुआत होगी।”

    जस्टिस कांत ने इस विचार को आगे बढ़ाते हुए कहा,

    "आप मॉड्यूल का सुझाव दे सकते हैं। उदाहरण के लिए इस मामले की जांच राज्य भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के साथ-साथ ED द्वारा हाईकोर्ट के पूर्व जज और रिटायर्ड डीजीपी अधिकारी की देखरेख में संयुक्त टीम द्वारा की जाए। यही सिस्टम अन्य राज्यों पर भी लागू किया जा सकता है।"

    जस्टिस विश्वनाथन ने पूरक कहा,

    "आप एक सिस्टम, एक निकाय का सुझाव दे सकते हैं, जो अंतर-राज्यीय प्रभावों पर गौर करेगा, वास्तविक दोषियों को दंडित करेगा और साथ ही दूसरों की प्रतिशोधात्मक गिरफ्तारी को रोकेगा।"

    एसजी ने कहा,

    "अगर कोई प्रतिशोधात्मक गिरफ्तारी होती है तो उसकी देखभाल के लिए एक अदालत है।"

    जस्टिस विश्वनाथन ने कहा,

    "आपके कार्यालय पूरे भारत में हैं। ED कार्यालय, CBI कार्यालय। सोचिए अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारी व्यवस्था का क्या होगा। हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप प्रतिशोधी हैं या वे प्रतिशोधी हैं। लेकिन मान लीजिए कि किसी दिए गए परिदृश्य में ऐसा होता है, जैसे को तैसा की प्रतिक्रिया। आपके अधिकारी राज्यों में बैठे हैं। यदि उनकी ओर से जैसे को तैसा के रूप में कोई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई होती है, जिसे वे प्रतिशोधी कार्रवाई मानते हैं, तो देश का क्या होगा।''

    एसजी ने तब बंगाल पुलिस द्वारा कोलकाता में CBI अधिकारियों को गिरफ्तार करने और मुख्यमंत्री के सीबीआई कार्यालय में प्रवेश करने की घटना का हवाला दिया।

    जस्टिस विश्वनाथन ने उत्तर दिया,

    "इसीलिए किसी प्रकार का सिस्टम होना चाहिए, जो कार्रवाई शुरू होने से पहले जांच करे।"

    जस्टिस सूर्यकान्त ने कहा,

    "राजनीतिक प्रतिशोध या वास्तविक राजनीतिक प्रतिशोध की आशंका को खत्म करने के लिए हमें सिस्टम की आवश्यकता है... इसलिए आइए कुछ पारदर्शी सिस्टम खोजें, जहां जांच शुरू हो सके और इस प्रकार की स्थितियों से बचा जा सके..."

    एसजी ने कहा कि ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए वैधानिक प्रावधान हैं। सिब्बल ने यह कहकर पलटवार किया कि वैधानिक प्रावधान ED को बेलगाम शक्तियां देते हैं।

    एसजी ने यह कहते हुए प्रतिवाद किया कि इन प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था।

    सुनवाई के दौरान कुछ नाटकीय क्षण देखने को मिले जब दोनों पक्षों के वकीलों के बीच बहस तेज हो गई। जब तमिलनाडु एएजी ने पूछा कि ED यूपी, मध्य प्रदेश या गुजरात में किसी भी मामले की जांच क्यों नहीं कर रही है तो एसजी ने इसे राजनीतिक प्रस्तुतिकरण करार देते हुए खंडन किया।

    एसजी ने यह भी पूछा कि आरोपियों के बजाय तमिलनाडु सरकार को मामले की चिंता क्यों है।

    जब एसजी ने टीएन सरकार पर मंत्रियों को बचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया तो सिब्बल ने जवाब दिया,

    "आपको मंत्रियों को भी नहीं बचाना चाहिए। असम के मुख्यमंत्री के खिलाफ दर्ज सभी एफआईआर की जांच करें।"

    केस टाइटल: प्रवर्तन निदेशक बनाम तमिलनाडु राज्य W.P.(Crl.) नंबर 23/2024

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