अवैध रेत खनन: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से हलफनामा मांगा; ऐसा न करने पर जुर्माना लगाने की चेतावनी दी
Shahadat
17 July 2024 10:13 AM IST
नदियों और तटों पर अवैध रेत खनन से संबंधित जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों से जवाबी हलफनामा मांगा और चेतावनी दी कि यदि हलफनामा निर्धारित समय के भीतर दाखिल नहीं किया गया तो उन पर 20-20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों के संबंध में यह आदेश पारित किया। इन राज्यों को 6 सप्ताह की अवधि के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करना होगा।
जस्टिस खन्ना ने आदेश सुनाते हुए कहा,
"यदि आज से 6 सप्ताह की अवधि के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया जाता है तो संबंधित राज्यों के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को 20-20 हजार रुपये का जुर्माना देना होगा।"
मामले को 25 नवंबर, 2024 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया गया।
सुनवाई के दौरान, एडवोकेट प्रशांत भूषण (याचिकाकर्ता की ओर से पेश) ने दलील दी कि 5 राज्यों (यानी तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और मध्य प्रदेश) से हलफनामे मांगे जाने के बाद से कई महीने बीत चुके हैं। फिर भी केवल पंजाब और मध्य प्रदेश के हलफनामे ही रिकॉर्ड पर हैं।
उन्होंने कहा,
"एक राज्य जहां स्पष्ट रूप से बड़े पैमाने पर अवैध रेत खनन चल रहा है, जिसका वहां गंभीर पर्यावरणीय प्रभाव पड़ रहा है, वह तमिलनाडु है।"
वकील ने आगे आग्रह किया कि लागत लगाने (जैसा कि निर्देश दिया गया है) से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
जस्टिस खन्ना ने इस पहलू पर असहमति जताते हुए कहा,
"मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह उस गलत गतिविधि के बराबर है जो चल रही है, यह उन्हें हलफनामा दाखिल करने के लिए मजबूर करेगा। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह नुकसान के बराबर या किसी भी तरह से होने वाला है...बिल्कुल नहीं।"
संक्षेप में, वर्तमान याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित की मांग की गई है:
(i) प्रतिवादियों को 'सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016' और 'कार्यालय ज्ञापन दिनांक 24.12.2013' के गैर-कार्यान्वयन के कारण सभी नदी और समुद्र तट रेत खनन गतिविधियों को बंद करने का निर्देश दिया जाए।
(ii) पर्यावरण और वन मंत्रालय को ऐसे सभी कार्यान्वयनों की निगरानी के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया जाए।
(iii) अवैध खनन के खिलाफ मामले दर्ज करने और जांच करने के लिए सीबीआई को निर्देश दिया जाए।
अवैध रेत खनन से संबंधित आरोप 5 राज्यों के खिलाफ लगाए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:
(i) तमिलनाडु: मीडिया आर्टिकल के आधार पर याचिकाकर्ता ने कहा कि सीनियर आईएएस अधिकारी की अध्यक्षता वाली विशेष जांच टीम की रिपोर्ट में राज्य में 52 पट्टों द्वारा तिरुनेलवेली, थूथुकुडी और कन्याकुमारी जिले से 1 करोड़ मीट्रिक टन समुद्र तट रेत के अवैध खनन का खुलासा हुआ।
(i) आंध्र प्रदेश: याचिकाकर्ता ने कहा कि आंध्र प्रदेश के सभी जिलों में खास तौर पर गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के किनारे अंधाधुंध और अवैध रेत खनन बड़े पैमाने पर हो रहा है।
(iii) महाराष्ट्र: समाचार लेखों के आधार पर याचिकाकर्ता ने कहा कि महाराष्ट्र में 2013 से 2017 के बीच अवैध खनन के 1,39,706 मामले दर्ज किए गए, जो देश में सबसे ज़्यादा है। हालांकि, इन मामलों में अभियोजन की संख्या सबसे कम राज्यों में से एक है। इसके अलावा, इसने 712 एफआईआर और 1 कोर्ट केस दर्ज किए, जबकि अवैध खनन कार्यों में इस्तेमाल किए गए लगभग 1,39,000 वाहनों को जब्त किया और अपराधियों से 267 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला।
(iv) मध्य प्रदेश: मीडिया रिपोर्टों के आधार पर याचिकाकर्ता ने कहा कि 2009 से 2015 तक राज्य में प्रमुख और लघु खनिजों के अवैध खनन के कुल 42,152 मामले दर्ज किए गए।
(v) पंजाब: पंजाब के खनन विंग द्वारा तैयार किए गए दस्तावेजों पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि 2013-17 के बीच अवैध खनन के 5,549 आपराधिक मामले दर्ज किए गए। इसका मतलब है कि सतलुज, ब्यास और रावी नदी बेसिन में हर महीने लगभग 92 एफआईआर दर्ज की जाती हैं। पंजाब पुलिस ने अभी तक विभिन्न अदालतों में 2,277 मामलों में चालान पेश नहीं किए हैं। दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि अवैध रूप से खनन की गई रेत की ढुलाई करते समय 8.904 वाहन जब्त किए गए।
याचिकाकर्ता ने दावा किया,
"अवैज्ञानिक खनन के कारण भूमि का क्षरण हुआ है। साथ ही धंसाव और परिणामस्वरूप खदानों में आग लग गई और जल स्तर में गड़बड़ी हुई है, जिससे स्थलाकृतिक विकार, गंभीर पारिस्थितिक असंतुलन और खनन क्षेत्रों में और उसके आसपास भूमि उपयोग पैटर्न को नुकसान पहुंचा है।"
केस टाइटल: एम अलगरसामी बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1342/2018