गवाह को TIP से पहले अभियुक्त को देखने का अवसर मिला था तो आइडेंटिफिकेशन टेस्ट की कार्यवाही विश्वसनीय नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

17 Nov 2025 8:20 PM IST

  • गवाह को TIP से पहले अभियुक्त को देखने का अवसर मिला था तो आइडेंटिफिकेशन टेस्ट की कार्यवाही विश्वसनीय नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (17 नवंबर) को डकैती के दौरान एक वृद्ध व्यक्ति की हत्या के आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया। न्यायालय ने घटना के लगभग आठ साल बाद एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी द्वारा की गई अभियुक्त की पहचान यह देखते हुए खारिज की कि उसकी कमज़ोर दृष्टि और बाद में गवाही में हुए सुधार के कारण यह विश्वास पैदा नहीं कर सकती।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा,

    "एक बार जब अभियुक्त-अपीलकर्ता की न्यायालय में की गई पहचान खारिज कर दी जाती है तो अभियुक्त को अपराध से जोड़ने के लिए कोई ठोस सबूत रिकॉर्ड में नहीं बचता।"

    उन्होंने यह भी कहा कि डॉक पहचान अविश्वसनीय है, क्योंकि यह घटना के वर्षों बाद की गई, और प्रत्यक्षदर्शी की गवाही में काफ़ी सुधार और महत्वपूर्ण विरोधाभास है।

    अदालत ने कहा,

    "हम यह नोट करना चाहेंगे कि घटना के लगभग साढ़े आठ साल बाद श्रीमती इंद्र प्रभा गुलाटी (पीडब्लू-18) द्वारा अदालत में अभियुक्त-अपीलकर्ता की पहचान की संभावना बेहद कम है। अपनी गवाही में गवाह ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि उसकी दूर की दृष्टि कमज़ोर थी और वह बिना चश्मे के दूर की वस्तुओं को नहीं देख सकती थी। रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि घटना के समय भी उसकी आयु लगभग 73 वर्ष थी और वह शारीरिक रूप से कमज़ोर थी। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए गवाही के समय उसने चश्मा नहीं पहना हुआ था। इस पृष्ठभूमि में इतने लंबे समय के बाद वह भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए हमलावर की उसकी कथित पहचान विश्वास पैदा नहीं करती।"

    इसके अलावा, अदालत ने संदेह जताया कि क्या प्रत्यक्षदर्शी ने TIP में भाग लिया था भी या नहीं। अदालत ने आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) को अमान्य घोषित करते हुए यह भी कहा कि आरोपी की तस्वीरें TIP से पहले ही एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी को दिखाई जा चुकी थीं।

    अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया,

    "जहां गवाहों को TIP से पहले आरोपी को देखने का अवसर मिला, वहां ऐसी कार्यवाही का साक्ष्य मूल्य काफी कम हो जाता है।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "अभियोजन पक्ष का यह कर्तव्य है कि वह बिना किसी संदेह के यह स्थापित करे कि गिरफ्तारी के समय से ही आरोपी को बापर्दा रखा गया ताकि पहचान की कार्यवाही शुरू होने से पहले उसका चेहरा देखे जाने की संभावना को खारिज किया जा सके। अगर गवाहों को TIP से पहले आरोपी को देखने का कोई अवसर मिला है - चाहे वह शारीरिक रूप से हो या तस्वीरों के माध्यम से - तो पहचान की कार्यवाही की विश्वसनीयता और पवित्रता गंभीर रूप से प्रभावित होगी।"

    अदालत ने अभियोजन पक्ष के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि आरोपी द्वारा TIP में भाग लेने से इनकार करने से उसके खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकलेगा।

    जस्टिस मेहता द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया:

    “अभियोजन पक्ष का यह कथन कि अभियुक्तों को TIP के अधीन करने के प्रयास उनके इनकार के कारण विफल हो गए, खंडित किया जाता है। यद्यपि अपीलकर्ता द्वारा TIP में भाग लेने से इनकार करना, प्रथम दृष्टया, एक प्रतिकूल निष्कर्ष को आमंत्रित कर सकता है, किन्तु केवल ऐसा निष्कर्ष पहचान के सिद्धांत का समर्थन नहीं कर सकता, जब TIP की प्रामाणिकता ही गंभीर संदेह के घेरे में हो। जब अभिलेखों से यह स्थापित हो जाता है कि अभियोजन पक्ष द्वारा किया गया TIP मूलतः त्रुटिपूर्ण था, और यह संदेह उत्पन्न होता है कि पहचान करने वाली साक्षी स्वयं उसमें भाग लेने के लिए उपस्थित भी नहीं रही होगी तो पहचान की कार्यवाही का मूल आधार ही ध्वस्त हो जाता है।”

    यह देखते हुए कि परिस्थितियों की पूरी श्रृंखला असंबद्ध रही, न्यायालय ने अपील स्वीकार की और अपीलकर्ता-अभियुक्त, जो लगभग 15 वर्षों से जेल में था, को रिहा करने का आदेश दिया।

    Cause Title: RAJ KUMAR @ BHEEMA VERSUS STATE OF NCT OF DELHI

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