हाईकोर्ट चीफ जस्टिस जजों की नियुक्ति पर व्यक्तिगत रूप से पुनर्विचार नहीं कर सकते, यह सामूहिक रूप से कॉलेजियम द्वारा किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
6 Sept 2024 6:18 PM IST
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट कॉलेजियम को दो जिला जजों की पदोन्नति पर पुनर्विचार करने का निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट चीफ जस्टिस किसी सिफारिश पर व्यक्तिगत रूप से पुनर्विचार नहीं कर सकते।
न्यायालय ने दोहराया कि यह निर्णय कॉलेजियम (चीफ जस्टिस और दो सीनियर जजों से मिलकर) द्वारा विचार-विमर्श के बाद सामूहिक रूप से लिया जाना चाहिए।
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कहा,
"हाईकोर्ट में न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया किसी व्यक्ति का विशेषाधिकार नहीं है। इसके बजाय, यह सभी कॉलेजियम सदस्यों को शामिल करते हुए सहयोगात्मक और सहभागी प्रक्रिया है। अंतर्निहित सिद्धांत यह है कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में विविध दृष्टिकोणों से प्राप्त सामूहिक ज्ञान को प्रतिबिंबित करना चाहिए। ऐसी प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को बनाए रखा जाए।"
हिमाचल प्रदेश के दो सीनियर जिला जजों द्वारा दायर रिट याचिका में न्यायालय ने यह फैसला सुनाया, जो हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा उनकी पदोन्नति की अनदेखी से व्यथित थे।
याचिकाकर्ताओं को 6 दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट के तत्कालीन कॉलेजियम द्वारा पदोन्नति के लिए अनुशंसित किया गया था। 12 जुलाई 2023 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके विचार को स्थगित कर दिया। इसके बाद 4 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने प्रस्ताव पारित कि दोनों की पदोन्नति के प्रस्ताव को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पुनर्विचार के लिए भेजा जाए। हालांकि, हाईकोर्ट कॉलेजियम ने इसके बजाय दो अन्य जजों की पदोन्नति की सिफारिश की।
याचिका का जवाब देते हुए हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह बताया गया कि 6 मार्च 2024 को हाईकोर्ट चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ताओं की उपयुक्तता पर व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को पत्र संबोधित किया। यह सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के दिनांक 4 जनवरी, 2024 के प्रस्ताव के पूर्ण अनुपालन में होने का अनुमान है।
रिट याचिका तब स्वीकार्य है, जब पात्रता और प्रभावी परामर्श की कमी का मुद्दा उठाया जाता है
जस्टिस रॉय द्वारा लिखित निर्णय में सबसे पहले याचिका की स्वीकार्यता पर प्रारंभिक आपत्ति पर विचार किया गया।
महेश चंद्र गुप्ता बनाम भारत संघ (1998) 7 एससीसी 739 के निर्णय का संदर्भ दिया गया, जिसमें पदोन्नति के लिए उम्मीदवार की 'पात्रता' और 'उपयुक्तता' के बीच अंतर किया गया। अन्ना मैथ्यूज बनाम सुप्रीम कोर्ट 2023 लाइव लॉ (एससी) 93 के निर्णय पर भरोसा किया गया।
न्यायालय ने माना कि निम्नलिखित प्रस्ताव उदाहरणों से उभरे हैं:
1. 'प्रभावी परामर्श की कमी' और 'पात्रता' न्यायिक समीक्षा के दायरे में आती है।
2. 'उपयुक्तता' न्यायोचित नहीं है। परिणामस्वरूप, 'परामर्श की सामग्री' न्यायिक पुनर्विचार के दायरे से बाहर है।
3. कॉलेजियम के सदस्यों के बीच परामर्श की अनुपस्थिति न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे में होगी।
चीफ जस्टिस व्यक्तिगत रूप से निर्णय नहीं ले सकते
अदालत ने सेकेंड जज मामले और थर्ड जज मामले के निर्णयों का हवाला दिया, जिसने कॉलेजियम सिस्टम को संस्थागत बना दिया, जिससे चीफ जस्टिस की प्रधानता समाप्त हो गई। न्यायालय ने कहा कि सेकेंड जज मामले के माध्यम से शुरू किए गए कॉलेजियम सिस्टम ने सीनियर सहयोगियों से परामर्श करने की प्रथा को संस्थागत बना दिया, जिससे यह चीफ जस्टिस के लिए बाध्यकारी हो गया।
हाईकोर्ट की ओर से यह तर्क दिया गया कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव में चीफ जस्टिस से याचिकाकर्ताओं के नामों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया, इसलिए चीफ जस्टिस व्यक्तिगत रूप से निर्णय ले सकते हैं।
न्यायालय ने कहा,
"हम इस दृष्टिकोण को स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक हैं, क्योंकि यह सर्वविदित है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम हाईकोर्ट कॉलेजियम के विरुद्ध अपील में नहीं बैठता है। यह सहभागी प्रक्रिया है, जिसमें प्रत्येक संवैधानिक पदाधिकारी की भूमिका होती है।"
न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह हाईकोर्ट कॉलेजियम के सभी सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से संबोधित करे। ऐसे संचार स्वाभाविक रूप से संबंधित हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को संबोधित होते हैं। चीफ जस्टिस को संबोधित पत्र चीफ जस्टिस को अन्य दो कॉलेजियम सदस्यों की भागीदारी के बिना कार्य करने में सक्षम नहीं बनाएगा।
न्यायालय ने कहा,
"दोनों याचिकाकर्ताओं के पुनर्विचार के मामले में अपनाई गई प्रक्रिया सेकेंड जज (सुप्रा) और थर्ड जज मामले (सुप्रा) में निर्धारित कानून के साथ असंगत पाई गई। हाईकोर्ट कॉलेजियम के सदस्यों द्वारा कोई सामूहिक परामर्श और विचार-विमर्श नहीं किया गया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का 6 मार्च 2024 को लिखे गए पत्र में दोनों याचिकाकर्ताओं की उपयुक्तता पर दिया गया निर्णय व्यक्तिगत निर्णय प्रतीत होता है। इसलिए यह रुख प्रक्रियागत और सारवान दोनों ही दृष्टि से दोषपूर्ण है।"
न्यायालय ने मुद्दों का उत्तर इस प्रकार दिया:
(i) रिट याचिका सुनवाई योग्य है, क्योंकि इसमें प्रभावी परामर्श की कमी पर सवाल उठाया गया।
(ii) हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस व्यक्तिगत रूप से किसी सिफारिश पर पुनर्विचार नहीं कर सकते और यह केवल हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा सामूहिक रूप से कार्य करके किया जा सकता है।
यह निर्देश दिया गया कि हाईकोर्ट कॉलेजियम को अब चिराग भानु सिंह और अरविंद मल्होत्रा के नामों पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिन्हें 4 जनवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के निर्णय और 16 जनवरी, 2024 को कानून मंत्री के पत्र के बाद हाईकोर्ट जज के रूप में पदोन्नत किया जाना चाहिए।
केस टाइटल- चिराग भानु सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य