केवल प्रथम दृष्टय किसी पूर्व-अपराध के होने का निष्कर्ष निकालने पर ही ED को हाईकोर्ट ECIR दर्ज करने का निर्देश नहीं दे सकता: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

7 March 2025 9:45 AM

  • केवल प्रथम दृष्टय किसी पूर्व-अपराध के होने का निष्कर्ष निकालने पर ही ED को हाईकोर्ट ECIR दर्ज करने का निर्देश नहीं दे सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कथित सहकारी बैंक धोखाधड़ी मामले में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत मामला दर्ज करने के लिए केरल हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्देश खारिज कर दिया।

    हाईकोर्ट केवल इस निष्कर्ष के आधार पर प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) दर्ज करने का "कठोर आदेश" पारित नहीं कर सकता कि कोई पूर्व-अपराध हुआ है।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा,

    "हाईकोर्ट के पास केवल इस निष्कर्ष पर पहुंचने पर कि कोई पूर्व-अपराध हुआ है, ED को ECIR दर्ज करने का निर्देश देने का कोई कठोर आदेश पारित करने का कोई कारण नहीं था।"

    खंडपीठ ने हाईकोर्ट के निर्देश के आधार पर दर्ज की गई ECIR को भी खारिज कर दिया।

    खंडपीठ ने PMLA के तहत कार्यवाही शुरू करने के सवाल पर फैसला लेने का काम ED पर छोड़ दिया।

    जस्टिस अमित रावल और जस्टिस के.वी. जयकुमार की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने बैंक के जमाकर्ता द्वारा दायर अपील पर निर्णय लेते हुए यह आदेश पारित किया। आरोपों के अनुसार, बैंक से 24 करोड़ रुपये की राशि निकाल ली गई। न्यायालय ने कहा कि FIR केवल बैंक के पूर्व सचिव के खिलाफ दर्ज की गई। केरल सहकारी समिति अधिनियम द्वारा शुरू की गई अधिभार कार्यवाही ने बैंक के पूर्व शासी निकाय के 14 सदस्यों पर 24,22,95,724 रुपये की देनदारी तय की। न्यायालय ने आश्चर्य जताया कि अन्य व्यक्तियों को बिना किसी आपराधिक मामले के कैसे छोड़ दिया गया।

    न्यायालय ने कहा कि चूंकि धन शोधन निवारण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार विश्वासघात और धोखाधड़ी एक पूर्वगामी अपराध है, इसलिए ECIR दर्ज करने का निर्देश दिया जाना उचित है।

    केस टाइटल: पी. माधवन पिल्लई बनाम राजेंद्रन उन्नीथन और अन्य

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