हाईकोर्ट दोषी की अपील में सजा बढ़ाने के लिए स्वतःसंज्ञान संशोधन शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
9 Jun 2025 3:08 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट दोषी/आरोपी द्वारा दोषसिद्धि के विरुद्ध दायर अपील पर विचार करते समय सजा बढ़ाने के लिए स्वतःसंज्ञान संशोधन शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।
न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 401 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 442) के तहत अपने संशोधन क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता, जब वह पक्ष जो संशोधन याचिका दायर कर सकता था, जैसे कि राज्य या शिकायतकर्ता, ने ऐसा न करने का विकल्प चुना हो।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ मद्रास हाईकोर्ट के एक निर्णय के विरुद्ध अपील पर विचार कर रही थी, जिसने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता को सजा सुनाने और दोषी ठहराने के लिए स्वतःसंज्ञान संशोधन शक्ति का प्रयोग किया था।
निचली अदालत ने अपीलकर्ता को IPC की धारा 306 के तहत अपराध से बरी कर दिया था, लेकिन उसे IPC की धारा 354 और 448 के तहत दोषी ठहराया और उसे तीन साल की कैद की सजा सुनाई। उसने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने फिर स्वतःसंज्ञान पुनर्विचार याचिका दर्ज की और दोषी की अपील के साथ इस पर विचार किया। यह कहते हुए कि उसके पास स्वतःसंज्ञान पुनर्विचार शक्तियां निहित हैं, हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता को IPC की धारा 306 के तहत भी दोषी ठहराया और उसे जुर्माने के साथ पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए तरीके को अस्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"आरोपी द्वारा दायर अपील में अपीलीय न्यायालय दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सजा को बढ़ा नहीं सकता।"
जस्टिस नागरत्ना द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया,
"अपीलीय क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट पुनर्विचार न्यायालय के रूप में कार्य नहीं कर सकता है, खासकर, जब राज्य, पीड़ित या शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी के खिलाफ सजा बढ़ाने की मांग करने के लिए कोई अपील या पुनर्विचार दायर नहीं किया गया हो।"
न्यायालय ने CrPC की धारा 401 की उपधारा (4) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि जहां CrPC के तहत अपील दायर की जा सकती थी। दायर नहीं की गई है तो अपील करने वाले पक्ष के कहने पर पुनर्विचार के माध्यम से कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। इससे सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यदि "राज्य, शिकायतकर्ता या पीड़ित जिनके पास अपील दायर करने का अधिकार है, वे ऐसा करने का विकल्प नहीं चुनते हैं तो हाईकोर्ट उनके कहने पर पुनर्विचार पर विचार नहीं कर सकता।"
न्यायालय ने आगे कहा:
"CrPC की धारा 401 के तहत हाईकोर्ट को पुनर्विचार अधिकारिता के प्रयोग द्वारा दोषमुक्ति के निष्कर्षों को दोषसिद्धि में परिवर्तित करने का अधिकार नहीं है। इस हितकारी सिद्धांत को इस अर्थ में भी विस्तारित किया जा सकता है कि हाईकोर्ट अभियुक्त/दोषी द्वारा दायर अपील में दोषसिद्धि पर ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई सजा को बढ़ा नहीं सकता है। इस प्रकार, संक्षेप में यह देखा जा सकता है कि अभियुक्त द्वारा सजा को रद्द करने की मांग करते हुए दायर की गई अपील में हाईकोर्ट अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता और दोषसिद्धि की पुष्टि करते हुए सजा को बढ़ाने का निर्देश नहीं दे सकता, जबकि वास्तव में अपील राज्य, शिकायतकर्ता या पीड़ित द्वारा दायर की जा सकती थी और दायर नहीं की गई। इसलिए जहां अभियुक्त द्वारा दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए अपील दायर की गई, वहां हाईकोर्ट द्वारा पुनर्विचार अधिकारिता का प्रयोग नहीं किया जा सकता ताकि सजा को बढ़ाने के उद्देश्य से मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजा जा सके।"
न्यायालय ने कहा कि यदि दोषी को सुनवाई का अवसर दिया भी जाता है तो भी हाईकोर्ट दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील में स्वतःसंज्ञान पुनर्विचार शक्ति का प्रयोग करके सजा नहीं बढ़ा सकता।
आगे कहा गया,
"यदि ऐसे अभियुक्त/दोषी को सुनवाई का अवसर दिया भी जाता है तो भी हमें नहीं लगता कि हाईकोर्ट हाईकोर्ट में अभियुक्त/दोषी द्वारा दायर अपील में अपने अपीलीय क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए CrPC की धारा 401 के अंतर्गत अपने पुनर्विचार क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सकता है। हाईकोर्ट केवल दोषसिद्धि और सजा का निर्णय रद्द कर सकता है और अभियुक्त को बरी कर सकता है, या ऐसा करते समय पुनर्विचार का आदेश दे सकता है, या वैकल्पिक रूप से दोषसिद्धि बनाए रखते हुए सजा कम कर सकता है। दूसरे शब्दों में, केवल अभियुक्त/दोषी द्वारा दायर अपील में हाईकोर्ट स्वतःसंज्ञान से अपने पुनर्विचार क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता और दोषसिद्धि बनाए रखते हुए अभियुक्त के विरुद्ध सजा नहीं बढ़ा सकता।"
न्यायालय ने पुष्टि की कि सजा बढ़ाने की शक्ति का प्रयोग अपीलीय न्यायालय द्वारा केवल राज्य, पीड़ित या शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील में ही किया जा सकता है, बशर्ते कि अभियुक्त को ऐसी वृद्धि के विरुद्ध कारण बताने का अवसर मिला हो। सचिन बनाम महाराष्ट्र राज्य 2025 लाइव लॉ (एससी) 592 में हाल ही में दिए गए निर्णय का संदर्भ दिया गया, जिसमें उक्त उक्ति निर्धारित की गई।
ज्योति प्लास्टिक वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ और अन्य 2020 ऑनलाइन बॉम 2276 में बॉम्बे हाईकोर्टके निर्णय का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें जस्टिस उज्जल भुयान ने स्पष्ट किया कि दोषसिद्धि से अपील के मामले में, सी अपील में प्रतिवादी, अर्थात् राज्य या पीड़ित या शिकायतकर्ता, कोई अपील या पुनर्विचार दायर न किए जाने की स्थिति में ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा से अधिक की मांग नहीं कर सकते।
न्यायालय ने कहा,
"उपर्युक्त तर्क को सरल भाषा में यह कहकर समझाया जा सकता है कि अपील दायर करने से कोई भी अपीलकर्ता अपनी मौजूदा स्थिति से बदतर स्थिति में नहीं पहुंच सकता। वर्तमान मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम अपने फैसले में यही बात दोहराना चाहते हैं।"
न्यायालय ने हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया, जिसमें अपीलकर्ता को IPC की धारा 306 के तहत दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। हालांकि, निचली अदालत द्वारा IPC की धारा 358 और 448 के तहत दी गई सजा और सजा की पुष्टि की गई।
Case : Nagarajan v State of Tamil Nadu