ज़मानत याचिका खारिज होने के बाद हिरासत में लिए गए अभियुक्तों की रिहाई के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

17 Nov 2025 10:02 AM IST

  • ज़मानत याचिका खारिज होने के बाद हिरासत में लिए गए अभियुक्तों की रिहाई के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक अभियुक्त को उसकी लगातार चार ज़मानत याचिकाएं खारिज होने के बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से रिहा करने का निर्देश दिया गया। जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को "कानून की दृष्टि से पूरी तरह से अज्ञात" और "इस न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोरने वाला" बताते हुए राज्य की अपील स्वीकार कर ली।

    यह मामला भोपाल में 2021 में दर्ज धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के एक मामले में आरोपी जिब्राखान लाल साहू से संबंधित है। दिसंबर 2023 में अपनी गिरफ्तारी और फरवरी 2024 में आरोप पत्र दाखिल होने के बाद साहू ने नियमित ज़मानत के लिए चार बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन असफल रहे। जनवरी और मई 2024 के बीच सभी याचिकाएँ खारिज कर दी गईं।

    इन अस्वीकृतियों के बाद उनकी बेटी कुसुम साहू ने गैरकानूनी हिरासत का दावा करते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। 3 अक्टूबर, 2024 को हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली और ₹5,000 के निजी मुचलके पर उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि साहू की निरंतर हिरासत अवैध हिरासत के बराबर है, खासकर परिवार की सुप्रीम कोर्ट जाने की आर्थिक अक्षमता को देखते हुए।

    राज्य ने इस आदेश को चुनौती दी। 18 जुलाई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्देश पर रोक लगाई और कहा कि यह "प्रथम दृष्टया चौंकाने वाला" था। रोक के बावजूद, साहू ने 25 अक्टूबर तक आत्मसमर्पण नहीं किया।

    हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आपराधिक मामले में खासकर कई बार ज़मानत खारिज होने के बाद हिरासत को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता। खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने मामले की गुण-दोष के आधार पर जांच की, "मानो ज़मानत खारिज होने के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा हो", जो बंदी प्रत्यक्षीकरण कार्यवाही में अस्वीकार्य है।

    खंडपीठ ने कहा,

    "जिस तरह से इस मामले को निपटाया गया, वह वास्तव में इस न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोर देता है।"

    साथ ही खंडपीठ ने आगे कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण की अनुमति देने से "कानून की उचित प्रक्रिया बाधित होगी" और "बुराई को जड़ से खत्म करने" से रोका जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "ऐसा न हो कि हाईकोर्ट इस आदेश को कानून की उचित प्रक्रिया को विफल करने और बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए एक मिसाल के तौर पर अपनाना शुरू कर दे, इसलिए हम मानते हैं कि किसी अभियुक्त के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले में उसकी हिरासत को गैरकानूनी नहीं ठहराया जा सकता, खासकर जब उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई हो।"

    चूंकि साहू पहले ही आत्मसमर्पण कर चुके हैं, इसलिए अदालत ने स्पष्ट किया कि भविष्य में उनके द्वारा दायर की जाने वाली किसी भी जमानत याचिका पर उचित अदालत द्वारा उसके गुण-दोष के आधार पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जाना चाहिए।

    Case : State of Madhya Pradesh v Kusum Sahu

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