'गिरफ्तारी के आधार' में आरोपी को रिमांड का विरोध करने और जमानत मांगने का अवसर प्रदान करने के लिए सभी बुनियादी तथ्य शामिल होने चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

16 May 2024 3:38 AM GMT

  • गिरफ्तारी के आधार में आरोपी को रिमांड का विरोध करने और जमानत मांगने का अवसर प्रदान करने के लिए सभी बुनियादी तथ्य शामिल होने चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 'गिरफ्तारी के कारणों' और 'गिरफ्तारी के आधार' के बीच अंतर किया। कोर्ट ने कहा कि इन दोनों वाक्यांशों में काफी अंतर है।

    इसमें बताया गया कि 'गिरफ्तारी के कारण' औपचारिक हैं और आम तौर पर किसी अपराध में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति पर लागू हो सकते हैं। विस्तार से बताते हुए न्यायालय ने इनमें से कई औपचारिक मापदंडों का भी हवाला दिया, जो आरोपी व्यक्ति को आगे कोई अपराध करने से रोकने से लेकर मामले की उचित जांच के लिए उपाय करने तक भिन्न हैं। दूसरी ओर, 'गिरफ्तारी के आधार' गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत और विशिष्ट होते हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "ये कारण आम तौर पर किसी अपराध के आरोप में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति पर लागू होंगे, जबकि 'गिरफ्तारी के आधार' में जांच अधिकारी के पास ऐसे सभी विवरण शामिल होने की आवश्यकता होगी, जिसके कारण आरोपी की गिरफ्तारी आवश्यक हो।"

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने न्यूज़क्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 (UAPA Act) के तहत मामले में उनकी रिमांड को अवैध घोषित करते हुए ऐसा किया। न्यायालय ने अपना तर्क इस तथ्य पर टिकाया कि गिरफ्तारी का आधार उन्हें लिखित रूप में नहीं दिया गया।

    सवालों के घेरे में दिल्ली पुलिस द्वारा पुरकायस्थ की गिरफ्तारी को सही ठहराने वाला दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला भी था। इस आदेश के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    हाईकोर्ट ने अपने विवादित आदेश में कहा था कि गिरफ्तारी के कारणों के बारे में गिरफ्तारी ज्ञापन के माध्यम से पुरकायस्थ को लिखित रूप में बताया गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे अस्वीकार्य पाया।

    जस्टिस संदीप मेहता द्वारा लिखे गए फैसले में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि गिरफ्तारी ज्ञापन में केवल 'गिरफ्तारी के कारण' हैं, न कि 'गिरफ्तारी के आधार'।

    कोर्ट ने अपने फैसले में कहा,

    “गिरफ्तारी ज्ञापन (अनुलग्नक पी-7) का कॉलम नंबर 9, जिसे यहां नीचे पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है, बस 'गिरफ्तारी के कारणों' को निर्धारित करता है, जो प्रकृति में औपचारिक हैं। आम तौर पर किसी अपराध के आरोप में गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। 'गिरफ्तारी का आधार' व्यक्तिगत प्रकृति का होगा और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के लिए विशिष्ट होगा।''

    न्यायालय ने आरोपी व्यक्ति को हिरासत के रिमांड के खिलाफ खुद का बचाव करने और जमानत लेने में सक्षम बनाने के लिए गिरफ्तारी के आधार बताने के महत्व पर जोर दिया।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "साथ ही लिखित रूप में सूचित की गई गिरफ्तारी के आधार पर गिरफ्तार आरोपी को वे सभी बुनियादी तथ्य बताए जाने चाहिए, जिनके आधार पर उसे गिरफ्तार किया जा रहा है, जिससे उसे हिरासत में रिमांड के खिलाफ खुद का बचाव करने और जमानत लेने का अवसर मिल सके।"

    अदालत ने कहा,

    "इस प्रकार, 'गिरफ्तारी का आधार' हमेशा आरोपी के लिए व्यक्तिगत होगा। इसे 'गिरफ्तारी के कारणों' के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है, जो सामान्य प्रकृति के हैं।"

    गौरतलब है कि पुरकायस्थ राष्ट्र विरोधी प्रचार के लिए चीनी धन प्राप्त करने के मामले में UAPA Act के तहत पिछले साल 3 अक्टूबर से हिरासत में हैं। गिरफ्तारी और रिमांड को कानून की नजर में अमान्य घोषित करते हुए कोर्ट ने पुरकायस्थ को रिहा करने का आदेश दिया। हालांकि, इसमें कहा गया कि रिहाई ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के अनुसार जमानत और बांड प्रस्तुत करने के अधीन होगी क्योंकि आरोप पत्र दायर किया गया।

    केस टाइटल: प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य, डायरी नंबर, 42896/2023

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