खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम भारतीय दंड संहिता को खत्म करता है; दोनों कानूनों के तहत एक साथ मुकदमा चलाना संभव नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

27 Feb 2024 4:25 AM GMT

  • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम भारतीय दंड संहिता को खत्म करता है; दोनों कानूनों के तहत एक साथ मुकदमा चलाना संभव नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) के तहत खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिए किसी आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया जाता है तो खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (एफएसएसए) की धारा 89 के अधिभावी प्रभाव के आधार पर आरोपी के खिलाफ आईपीसी के तहत कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती।

    सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि आईपीसी और एफएसएसए के तहत एक साथ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि धारा 89 के आधार पर एफएसएसए, एफएसएसए की धारा 59 आईपीसी की धारा 272 और 273 के प्रावधानों को खत्म कर देगी।

    हाईकोर्ट ने उक्त फैसले में अभियुक्तों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था।

    जस्टिस ओक द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,

    “हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि एफएसएसए की धारा 59, 89,के आधार पर आईपीसी की 272, 273 के प्रावधानों को खत्म कर देगी। इसलिए दोनों क़ानूनों के तहत एक साथ मुकदमा चलाने का कोई सवाल ही नहीं होगा।"

    सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि जब आरोपी पर आईपीसी की धारा 272 और 273 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाता है तो आरोपी के खिलाफ एफएसएसए की धारा 59 के तहत अपराध भी बनता है।

    सुप्रीम ने कहा,

    "इसलिए मुख्य धारा (एफएसएसए की धारा 89) स्पष्ट रूप से एफएसएसए के प्रावधानों को किसी भी अन्य कानून से अधिक महत्व देती है, जहां तक कानून एफएसएसए द्वारा कवर किए गए क्षेत्र में भोजन के पहलुओं पर लागू होता है। इस मामले में हम केवल आईपीसी की धारा 272 और 273 से चिंतित हैं। जब आईपीसी की धारा 272 और 273 के तहत अपराध बनते हैं तो एफएसएसए की धारा 59 के तहत भी अपराध आकर्षित होगा।"

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफएसएसए की धारा 59 आईपीसी की धारा 272 और 273 की तुलना में अधिक कठोर है, क्योंकि पूर्व में इरादे की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है जैसा कि बाद के प्रावधानों में माना गया।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "आईपीसी की धारा 273 तब लागू होती है, जब कोई व्यक्ति किसी खाद्य या पेय पदार्थ को बेचता है या पेश करता है या बिक्री के लिए रखता है, जो हानिकारक हो गया, या खाने या पीने के लिए अनुपयुक्त हो गया है। धारा 273 में ज्ञान या उचित विश्वास की आवश्यकताएं शामिल हैं कि भोजन या बेचा गया या बिक्री के लिए पेश किया गया पेय हानिकारक है। एफएसएसए की धारा 59 के तहत व्यक्ति अपराध करता है, जो स्वयं या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा बिक्री के लिए निर्माण करता है, या मानव के लिए भोजन की किसी वस्तु का भंडारण या बिक्री या वितरण करता है, उपभोग जो असुरक्षित है। इसलिए एफएसएसए की धारा 59 के तहत अपराध बनता है। भले ही इरादे की अनुपस्थिति हो जैसा कि आईपीसी की धारा 272 में प्रदान किया गया।"

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "जब आईपीसी की धारा 272 और 273 के तहत अपराध बनता है तो एफएसएसए की धारा 59 के तहत अपराध भी आकर्षित होगा। वास्तव में एफएसएसए की धारा 59 के तहत अपराध अधिक कठोर है।"

    केस टाइटल: राम नाथ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, आपराधिक अपील नंबर 2012 का 472

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