कर्मचारियों की वेतन संरचना तय करने में नियोक्ता की वित्तीय स्थिति मजबूत कारक: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

13 April 2024 4:58 AM GMT

  • कर्मचारियों की वेतन संरचना तय करने में नियोक्ता की वित्तीय स्थिति मजबूत कारक: सुप्रीम कोर्ट

    औद्योगिक विवाद पर हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि नियोक्ता की वित्तीय क्षमता महत्वपूर्ण कारक है, जिसे कर्मचारियों की वेतन संरचना तय करते समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ वेतन संशोधन के निर्देश देने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसले के खिलाफ अपील पर फैसला कर रही थी, जब उसने कहा कि हालांकि हाईकोर्ट पूरी तरह से सबूतों की सराहना करने से नहीं बच सकते, लेकिन वर्तमान मामले में उचित कदम यही होगा अदालत ने मामले को वापस औद्योगिक न्यायाधिकरण को भेज दिया।

    अदालत ने कहा,

    "दिए गए तथ्यों में जहां नियोक्ता ने संबंधित इकाइयों के तुलनीय के रूप में उपयोग का गंभीरता से विरोध किया। इसकी कठिन वित्तीय स्थिति पर प्रकाश डाला है, इन तथ्यात्मक प्रश्नों को स्वतंत्र रूप से दर्ज करने के बजाय मामले को औद्योगिक न्यायाधिकरण को भेजना उचित होगा। इस अभ्यास के लिए इस मामले में प्राथमिक मंच, औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    मामले की उत्पत्ति 2008 में अपीलकर्ता (कर्मचारी संघ) द्वारा वेतन/वेतनमान संशोधन और कुछ भत्तों से संबंधित मांगों के चार्टर में निहित है। ट्रिब्यूनल के फैसले, जिसने कुछ मदों के तहत कर्मचारियों को राहत दी है, उसको यूनियन और प्रतिवादी-नियोक्ता दोनों द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई। चार मांगों के संबंध में हाईकोर्ट ने संघ की अपील की अनुमति दी लेकिन शेष 7 मांगों पर ट्रिब्यूनल का फैसला बरकरार रखा गया।

    अपीलकर्ता-संघ द्वारा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की गई, जिसमें दावा किया गया कि भत्ते के संबंध में दावों पर विचार नहीं किया गया। हालांकि, इसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद मामला 3 अपीलों के रूप में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

    पक्षकारों द्वारा प्रस्तुतियां

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नियोक्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट अवार्ड की वैधता की जांच करते समय तथ्य-खोज अभ्यास में प्रवेश नहीं कर सकता और सबूतों की दोबारा सराहना नहीं कर सकता। आगे यह तर्क दिया गया कि जिन इकाइयों के साथ हाईकोर्ट ने नियोक्ता की तुलना की, वे "समान रूप से स्थित" नहीं हैं (उनके औद्योगिक उत्पादन और वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए)।

    उपरोक्त के अलावा, नियोक्ता ने इस बात पर जोर दिया कि हाईकोर्ट ने इस आधार पर उसकी नकारात्मक वित्तीय स्थिति को नजरअंदाज कर दिया कि नुकसान "मामूली" है, साथ ही बिना किसी सबूत के कुछ भत्ते भी दिए।

    दूसरी ओर, अपीलकर्ता-संघ ने प्रतिवाद किया कि यह हाईकोर्ट के लिए तथ्यों की किसी प्रकार की सराहना करने के लिए खुला है। इसने यह भी दलील दी कि अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का अधिकार क्षेत्र इतना व्यापक है कि वह किसी मामले को वापस भेजने के बजाय तथ्यात्मक मुद्दों पर निर्णय ले सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

    सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मुद्दे पर गुजरात स्टील ट्यूब्स लिमिटेड और अन्य बनाम गुजरात स्टील ट्यूब्स मजदूर सभा और अन्य सहित उदाहरणों पर ध्यान दिया, जिससे यह रेखांकित किया जा सके कि किसी न्यायाधिकरण के फैसले की जांच करने के लिए हाईकोर्ट उचित मामलों में तथ्यों पर जा सकते हैं।

    इसके बाद, यह दोहराया गया कि वेतन में संशोधन के लिए औद्योगिक निर्णायक द्वारा अपनाए जाने वाले मानक मानदंड उद्योग-सह-क्षेत्र परीक्षण को लागू करना है, जिसके तहत "प्रचलित वेतन और अन्य भत्तों की तुलना समान रूप से या समान रूप से एक ही क्षेत्र में औद्योगिक इकाइयां स्थित के साथ की जानी चाहिए।"

    न्यायालय ने कहा कि इकाइयों की ऐसी तुलनीयता निर्धारित करने में नियोक्ता की वित्तीय क्षमता मजबूत कारक होगी। इस संबंध में ए.के. बिंदल बनाम भारत संघ एवं अन्य और मुकंद लिमिटेड बनाम मुकंद स्टाफ एंड ऑफिसर्स एसोसिएशन के निर्णयों का हवाला दिया गया।

    जहां तक नियोक्ता द्वारा यह बताया गया कि उसे नुकसान हो रहा है और हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान नए चार्ट मांगे, बेंच ने कहा कि दिए गए तथ्यों के अनुसार, मामले को ट्रिब्यूनल को भेजना उचित होगा।

    सबूतों की दोबारा सराहना करने के लिए हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र के बारे में बोलते हुए बेंच ने कहा,

    "पक्षकारों के लिए वकील द्वारा भरोसा किए गए अधिकारियों का विश्लेषण इस बिंदु पर कानून की स्थिति को दर्शाता है कि हाईकोर्ट को सबूतों की दोबारा सराहना नहीं करनी चाहिए और अपने स्वयं के स्थानापन्न नहीं करना चाहिए। ट्रिब्यूनल के निष्कर्ष के अनुसार, इस तरह की प्रक्रिया से पूरी तरह बचना न्यायिक पुनर्विचार की शक्ति में हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र से परे नहीं होगा।

    यह निष्कर्ष निकाला गया कि सबूतों की हाईकोर्ट की सराहना उचित नहीं है और यहां तक कि भत्तों की गणना में ओवरटाइम वेतन के उपचार के लिए कर्मचारी-संघ की याचिका की फिर से जांच करने की आवश्यकता है।

    फ़ैसला

    तदनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले और बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले दोनों को रद्द कर दिया। इसने आदेश दिया कि ट्रिब्यूनल 6 महीने के भीतर मामले पर नए सिरे से फैसला करेगा।

    केस टाइटल: वीवीएफ लिमिटेड कर्मचारी संघ बनाम मैसर्स वीवीएफ इंडिया लिमिटेड और अन्य, सिविल अपील नंबर 2744 - 2745 ऑफ़ 2023 (और संबंधित मामला)

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