वकील के माध्यम से अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करना फरार आरोपी की उपस्थिति नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

16 March 2024 8:08 AM GMT

  • वकील के माध्यम से अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करना फरार आरोपी की उपस्थिति नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी द्वारा केवल अग्रिम जमानत याचिका दाखिल करने को अदालत के समक्ष उसकी उपस्थिति नहीं माना जा सकता, जिसने आरोपी के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 82/83 के तहत कार्यवाही शुरू की थी।

    जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा,

    “हम गुजरात हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत हैं कि वकील के माध्यम से अग्रिम जमानत दाखिल करना उस व्यक्ति द्वारा अदालत के समक्ष उपस्थिति के रूप में नहीं माना जाएगा, जिसके खिलाफ ऐसी कार्यवाही (जब आरोपी घोषित घोषित किया गया हो), जैसा कि ऊपर बताया गया है, स्थापित किया गया है।''

    उपरोक्त टिप्पणी हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत देने से इनकार करने के खिलाफ आरोपी द्वारा दायर आपराधिक अपील पर फैसला करते समय आई।

    समन आदेशों, जमानती और गैर-जमानती वारंटों का पालन न करने के बाद ट्रायल कोर्ट ने अंततः सीआरपीसी की धारा 82/83 के तहत उद्घोषणा जारी की। आरोपी को भगोड़ा घोषित करते हुए अदालत के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया।

    उद्घोषणा जारी होने से पहले अभियुक्त ने अग्रिम जमानत आवेदन प्रस्तुत किया और अदालत से यह कहते हुए उद्घोषणा की कार्यवाही को स्थगित करने का अनुरोध किया कि अभियुक्त द्वारा अग्रिम जमानत आवेदन दाखिल करने को अदालत के समक्ष उसकी उपस्थिति माना जाना चाहिए। हालांकि, अदालत ने सीआरपीसी की धारा 82/83 के तहत उद्घोषणा लंबित होने का हवाला देते हुए आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया।

    इस प्रकार, अभियुक्त का प्राथमिक तर्क यह है कि केवल उद्घोषणा जारी करने से अभियुक्त के अग्रिम जमानत प्राप्त करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।

    इस तरह के तर्क को खारिज करते हुए जस्टिस सीटी रविकुमार द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि आरोपी द्वारा अग्रिम जमानत याचिका दायर करने को उद्घोषणा कार्यवाही में अदालत के समक्ष उसकी उपस्थिति नहीं माना जा सकता, अन्यथा यह ऐसी स्थिति पैदा करेगा, जहां हर बार आरोपी सीआरपीसी की धारा 83 के तहत कार्यवाही में अदालत के समक्ष अपनी उपस्थिति से बचने के लिए अग्रिम जमानत आवेदन को प्राथमिकता दें।

    इस आशय से सुप्रीम कोर्ट ने सविताबेन गोविंदभाई पटेल और अन्य बनाम गुजरात राज्य के गुजरात हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन किया, जो इस प्रकार है:

    “जहां तक संहिता की धारा 82/83 के तहत शुरू की गई कार्यवाही का संबंध है, याचिकाकर्ताओं-अभियुक्तों द्वारा अपने वकील के माध्यम से अग्रिम जमानत आवेदन दाखिल करना सक्षम न्यायालय में याचिकाकर्ता-अभियुक्त की उपस्थिति नहीं कहा जा सकता; अन्यथा प्रत्येक फरार आरोपी अदालत के समक्ष उपस्थित होने की बाध्यता से बचने के लिए अग्रिम जमानत आवेदन दायर करके आश्रय बनाने का प्रयास करेगा और संहिता की धारा 83 के तहत कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए दावा करेगा कि उसे कानून की नजर में भगोड़ा नहीं कहा जा सकता। यदि धारा 82 और 83 की प्रासंगिक योजना को बारीकी से पढ़ा जाए तो अदालत के समक्ष शारीरिक उपस्थिति सबसे महत्वपूर्ण है।''

    केस टाइटल: श्रीकांत उपाध्याय बनाम बिहार राज्य

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