"अब शिक्षा भी एक उद्योग": सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक भवनों को पर्यावरण मंज़ूरी से छूट देने वाला केंद्र का निर्णय रद्द किया
Praveen Mishra
6 Aug 2025 3:25 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आज (6 अगस्त, 2025) केंद्र सरकार के 29 जनवरी 2025 के उस अधिसूचना (नोटिफिकेशन) के एक हिस्से को रद्द कर दिया, जिसमें औद्योगिक शेड, स्कूल, कॉलेज और छात्रावास जैसी निर्माण परियोजनाओं को पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) नोटिफिकेशन 2006 के तहत पूर्व पर्यावरण मंज़ूरी (Prior Environmental Clearance) से छूट दी गई थी।
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने कहा कि यह छूट, जो संशोधित अनुसूची की धारा 8(क) में "नोट 1" के रूप में जोड़ी गई थी, मनमानी है और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उद्देश्य के खिलाफ है। हालांकि, नोटिफिकेशन के अन्य हिस्सों को वैध ठहराया गया।
कोर्ट ने कहा,
“हम औद्योगिक और शैक्षणिक भवनों को 2006 की अधिसूचना से बाहर रखने का कोई उचित कारण नहीं देखते। यदि कोई भी निर्माण कार्य 20,000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र में होता है, तो वह स्वाभाविक रूप से पर्यावरण पर प्रभाव डालेगा, चाहे वह शैक्षणिक उद्देश्य से ही क्यों न हो। शिक्षा अब केवल सेवा-आधारित पेशा नहीं रह गया है, यह सर्वविदित है कि आज शिक्षा भी एक फलता-फूलता उद्योग बन चुकी है।”
इस नोटिफिकेशन के खिलाफ एनजीओ 'वनशक्ति' द्वारा दायर एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस पर रोक लगा दी थी। यह रोक केंद्र सरकार के 30 जनवरी 2025 के उस कार्यालय ज्ञापन (Office Memorandum) पर भी लागू थी, जिसमें कहा गया था कि संशोधित अधिसूचना केरल पर भी लागू होगी।
EIA नियमों के अनुसार, किसी भी भवन या निर्माण परियोजना जिसका निर्मित क्षेत्र (built-up area) 20,000 वर्ग मीटर या उससे अधिक हो, उसे पर्यावरणीय मंज़ूरी लेनी होती है। लेकिन 29 जनवरी 2025 की अधिसूचना में संशोधन कर यह कहा गया कि औद्योगिक शेड, स्कूल, कॉलेज और छात्रावास जैसी परियोजनाओं को पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होगी, बशर्ते वे सतत पर्यावरणीय प्रबंधन, कचरा और जल अपशिष्ट प्रबंधन, वर्षा जल संचयन जैसी शर्तों का पालन करें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश का विकास ज़रूरी है, लेकिन विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन भी आवश्यक है। कोर्ट ने दोहराया कि यह पहले से ही तय सिद्दांत है कि प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रखा जाना चाहिए।
केंद्र सरकार ने दलील दी कि मंत्रालय (MoEFCC) पूरे देश की ऐसी परियोजनाओं का आकलन नहीं कर सकता, इसलिए छूट दी गई। लेकिन कोर्ट ने यह तर्क अस्वीकार करते हुए कहा कि राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (SEIAA) जैसे विशेषज्ञ निकाय इस कार्य को प्रभावी ढंग से कर सकते हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार द्वारा दी गई यह छूट, जो यह मानती है कि पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं, पर्याप्त नहीं है क्योंकि इनमें किसी विशेषज्ञ संस्था द्वारा परियोजना मूल्यांकन की व्यवस्था नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
“हम मानते हैं कि औद्योगिक शेड, स्कूल, कॉलेज, छात्रावास और शैक्षणिक संस्थानों को 2006 की अधिसूचना से बाहर रखना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के उद्देश्य के अनुरूप नहीं है।”
EIA नोटिफिकेशन 2006 के तहत परियोजनाओं को 'कैटेगरी A' और 'कैटेगरी B' में बांटा गया है। कैटेगरी A परियोजनाओं की मंज़ूरी केंद्र सरकार से और B की SEIAA से लेनी होती है। सामान्य शर्त यह है कि यदि कोई कैटेगरी B परियोजना किसी संरक्षित क्षेत्र, पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र, अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र या अंतरराज्यीय सीमा के 10 किमी भीतर हो, तो उसे कैटेगरी A माना जाएगा।
लेकिन विवादित संशोधन में कहा गया कि यह सामान्य शर्तें धारा 8(क) और 8(ख) की परियोजनाओं पर लागू नहीं होंगी।
याचिकाकर्ता 'वनशक्ति' ने यह दलील दी कि यह सरकार का EIA ढांचे को कमजोर करने का चौथा प्रयास है — इससे पहले 2014, 2016 और 2018 में भी ऐसे प्रयास किए गए थे जिन्हें अदालतों ने रोका था। याचिका में यह भी कहा गया कि यह छूट, संरक्षित क्षेत्रों और प्रदूषित इलाकों में पर्यावरणीय मूल्यांकन को रोक देगी और पर्यावरण संरक्षण नियम, 1986 के नियम 5 का उल्लंघन है क्योंकि छूट देने के पीछे कोई उचित कारण नहीं दिया गया।
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से याचिका स्वीकार करते हुए 29 जनवरी की अधिसूचना को वैध ठहराया लेकिन धारा 8(क) में जोड़े गए "नोट 1" को रद्द कर दिया।

