अनुबंध में क्या प्रावधान है, इसकी जांच करना प्रत्येक आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल और न्यायालय का कर्तव्य : सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

27 Aug 2024 11:03 AM IST

  • अनुबंध में क्या प्रावधान है, इसकी जांच करना प्रत्येक आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल और न्यायालय का कर्तव्य : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायालयों और आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का यह कर्तव्य है कि वे आर्बिट्रेशन से संबंधित कार्यवाही में अनुबंध के प्रावधानों की जांच करें।

    अनुबंध के तहत प्रतिबंधित होने के बावजूद निष्क्रिय मशीनरी और श्रम के कारण होने वाले नुकसान के लिए राशि देने के आर्बिट्रल का निर्णय रद्द करने का कलकत्ता हाईकोर्ट का निर्णय बरकरार रखते हुए न्यायालय ने कहा :

    “वास्तव में हाीकोर्ट ने वही किया, जो आर्बिट्रल को करना चाहिए। अनुबंध में क्या प्रावधान है, इसकी जांच करें। यह व्याख्या का विषय भी नहीं है। यह प्रत्येक आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल और न्यायालय का समान रूप से और बिना किसी अपवाद के कर्तव्य है, क्योंकि अनुबंध कानूनी संबंध की नींव है। आर्बिट्रल ने अनुबंध संबंधी प्रावधानों का उल्लेख भी नहीं किया और जिला कोर्ट ने धारा 34 के तहत आपत्तियों को ऊपर उद्धृत मानक वाक्यांश के साथ खारिज कर दिया।”

    जस्टिस पमिदिघंतम श्री नरसिम्हा और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने यह भी कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 Arbitration and Conciliation Act (A&C Act) की धारा 31(7) के तहत आर्बिट्रल को पूर्व-संदर्भ अवधि के लिए ब्याज देने का अधिकार है, जब तक कि अनुबंध में इसे प्रतिबंधित न किया गया हो।

    न्यायालय ने कहा,

    "हाईकोर्ट के पास पूर्व-संदर्भ ब्याज देने के संबंध में आर्बिट्रल अवार्ड में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था, क्योंकि पक्षों के बीच अनुबंध इसे प्रतिबंधित नहीं करता।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    पश्चिम बंगाल राज्य ने एगरा बाजकुल सड़क को चौड़ा करने और मजबूत करने का अनुबंध पाम डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड (अपीलकर्ता) को 23 दिसंबर, 2010 से शुरू होने वाली 18 महीने की समय-सीमा के साथ दिया। हालांकि, परियोजना में लगभग पांच महीने की देरी हुई और 9 नवंबर, 2012 को पूरा हुआ। अपीलकर्ता ने बाद में प्रतिवादी द्वारा देरी का हवाला देते हुए सात अतिरिक्त दावों के साथ 77,85,290 रुपये का बिल प्रस्तुत किया। राज्य ने दायित्व से इनकार किया, जिसके कारण आर्बिट्रेशन हुई।

    आर्बिट्रेशन अवार्ड

    30 जनवरी, 2018 को आर्बिट्रल ने अपीलकर्ता को ब्याज सहित 1,37,25,252 रुपये का अवार्ड दिया। आर्बिट्रल द्वारा दिए गए दावे थे -

    व्यापार की हानि (दावा संख्या 1): 3,87,530 रुपये।

    संयंत्र और मशीनरी का अलाभकारी उपयोग (दावा संख्या 2): 61,22,000 रुपये।

    काम के अलाभकारी ठहराव के लिए श्रम शुल्क (दावा संख्या 3): 5,80,500 रुपये।

    करंट अकाउंट बिलों और वृद्धि बिल के विलंबित भुगतान पर ब्याज (दावा संख्या 4): 54,84,024 रुपये।

    वृद्धि (दावा संख्या 5): 1,50,000 रुपये 11,51,198।

    अवार्ड की गई राशि पर ब्याज (दावा नंबर 6): 12 अप्रैल, 2016 (जिस दिन अपीलकर्ता ने अनुबंध के उल्लंघन का दावा किया) से 30 जनवरी, 2018 (अवार्ड की तिथि) तक 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज तथा वास्तविक भुगतान तक अवार्ड के पश्चात 9.25 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज।

    लागत (दावा नंबर 7): 4 लाख रुपये

    पश्चिम बंगाल राज्य ने आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 34 के तहत आर्बिट्रेशन अवार्ड को चुनौती दी तथा जिला जज ने दावा 1 और 2 खारिज कर दिया, लेकिन दावा 3, 4, 5 और 6 बरकरार रखा।

    दोनों पक्षकारों ने आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 37 के तहत जिला जज के निर्णय के विरुद्ध अपील की। कलकत्ता हाईकोर्ट ने दावा 1 खारिज कर दिया, दावा 2 को बहाल किया, दावा 3 और 4 को अनुबंध के तहत अस्वीकार्य मानते हुए खारिज कर दिया, दावा 5 बरकरार रखा और दावा 6 के तहत पूर्व-संदर्भ हित खारिज कर दिया।

    इसको अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अपीलकर्ता ने अपने तर्कों को दावा 3, 4 और 6 तक सीमित रखा।

    सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    दावा नंबर 3: बेकार श्रम, मशीनरी, आदि के कारण नुकसान

    आर्बिट्रल ने बेकार श्रम, मशीनरी और अन्य खर्चों के कारण नुकसान से संबंधित दावा नंबर 3 के लिए अपीलकर्ता के पक्ष में 5,80,500 रुपये का अवार्ड दिया था।

    हाईकोर्ट ने प्रासंगिक अनुबंध खंडों की जांच की और पाया कि अनुबंध ने विस्तारित अवधि के दौरान बेकार श्रम और अतिरिक्त स्थापना लागतों के लिए दावों को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया।

    कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि आर्बिट्रल प्रासंगिक संविदात्मक प्रावधानों पर विचार करने में विफल रहा, जो ऐसे दावों को प्रतिबंधित करता है।

    दावा नंबर 4: करंट अकाउंट बिलों के विलंबित भुगतान पर ब्याज

    आर्बिट्रल ने विलंबित भुगतानों के लिए ब्याज प्रदान किया, यह मानते हुए कि अपीलकर्ता उल्लंघन से स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने वाले या पक्षों द्वारा प्रत्याशित पूंजी को होने वाले किसी भी नुकसान या क्षति के लिए मुआवजे का हकदार था। आर्बिट्रल ने नोट किया कि भुगतान तब देय हो गया, जब किए गए काम की कुल राशि 1 करोड़ रुपये से अधिक हो गई और अनुबंध में "अवरुद्ध पूंजी" पर ब्याज के भुगतान के खिलाफ कोई प्रतिबंध नहीं था।

    हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि चूंकि बिलों का भुगतान तैयारी के तुरंत बाद किया गया, इसलिए ब्याज का दावा करने का कोई आधार नहीं था। इसने यह भी नोट किया कि आर्बिट्रल ने ऐसे मुद्दों का निर्धारण नहीं किया, जैसे कि करंट अकाउंट बिलों की देरी से तैयारी के लिए कौन जिम्मेदार था, कौन से करंट अकाउंट बिलों को अग्रिम माना जाना चाहिए, क्या ब्याज अधिनियम, 1978 के तहत नोटिस जारी किया गया और किस राशि और अवधि के लिए ब्याज दिया गया।

    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष कि बिलों का भुगतान तैयारी के तुरंत बाद किया गया, हस्तक्षेप का आधार नहीं बनता। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आर्बिट्रल द्वारा मुद्दों को संबोधित नहीं करने का हाईकोर्ट का दृष्टिकोण अवार्ड रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं था।

    न्यायालय ने कहा,

    "हाईकोर्ट का निष्कर्ष ऐसा प्रतीत होता है कि बिल तैयार होने के तुरंत बाद भुगतान कर दिए गए या उस मामले में ब्याज का कोई दावा नहीं हो सकता, धारा 37 के तहत हस्तक्षेप के आधार के रूप में योग्य नहीं हो सकता। समान रूप से हाईकोर्ट का यह मानना ​​कि आर्बिट्रल ने न तो अपने द्वारा उठाए गए प्रश्नों को स्थापित किया और न ही उन पर चर्चा की, अवार्ड रद्द करने का आधार नहीं है।"

    निष्कर्ष

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थ के तर्क में कोई विकृति नहीं थी, न ही अवार्ड सार्वजनिक नीति के विरुद्ध था। इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने दावा नंबर 4 के संबंध में आर्बिट्रल का अवार्ड बहाल कर दिया। दावा नंबर 6: ब्याज प्रदान किया गया आर्बिट्रल ने अपीलकर्ता द्वारा अनुबंध के उल्लंघन का दावा करने की तिथि (12 अप्रैल, 2016) से अवार्ड की तिथि (30 जनवरी, 2018) तक 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज प्रदान किया और अवार्ड के बाद 9.25 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज प्रदान किया। हाईकोर्ट ने इसे संशोधित कर पूर्व-संदर्भ अवधि बाहर किया और 3 अगस्त, 2016 से अवार्ड की तिथि तक केवल 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से लंबित ब्याज की अनुमति दी तथा अवार्ड के बाद 9.25 प्रतिशत की दर से ब्याज की अनुमति दी।

    चूंकि अनुबंध में पूर्व-संदर्भ ब्याज को विशेष रूप से प्रतिबंधित नहीं किया गया, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिट्रल द्वारा दिए गए ब्याज का मूल अवार्ड बहाल कर दिया, जिसमें पूर्व-संदर्भ ब्याज भी शामिल है।

    केस टाइटल- सिविल अपील नंबर 9781-9782 वर्ष 2024

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