नौ साल की कानूनी लड़ाई के बाद जिला जज बनने के इच्छुक उम्‍मीदवार को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इंटरव्यू कट-ऑफ मानदंड को नियमों के विपरीत बताते हुए खारिज किया

Avanish Pathak

2 Sep 2024 5:44 AM GMT

  • नौ साल की कानूनी लड़ाई के बाद जिला जज बनने के इच्छुक उम्‍मीदवार को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इंटरव्यू कट-ऑफ मानदंड को नियमों के विपरीत बताते हुए खारिज किया

    जिला जज बनने का इच्छुक एक उम्‍मीदवार नौ साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की मदद से राहत पाने में कामयाब रहा। सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवार की ओर से दायर याचिका में साक्षात्कार के लिए न्यूनतम कट-ऑफ अंक निर्धारित करने के मणिपुर हाईकोर्ट के निर्णय को अमान्य करार देते हुए उसे नियुक्ति के लिए योग्य माना।

    याचिकाकर्ता सलाम समरजीत सिंह ने जुलाई 2013 में मणिपुर न्यायिक सेवा ग्रेड-I में जिला न्यायाधीश (प्रवेश स्तर) के लिए लिखित परीक्षा दी थी। वह 52.8% अंक प्राप्त करके लिखित परीक्षा में सफल रहा। साक्षात्कार परीक्षा से ठीक पहले मणिपुर हाईकोर्ट की पूर्ण अदालत ने 12 जनवरी 2015 को मौखिक परीक्षा के लिए कट-ऑफ के रूप में 40% निर्धारित करने का निर्णय लिया।

    याचिकाकर्ता साक्षात्कार में असफल रहा, क्योंकि उसे साक्षात्कार खंड में कुल 50 अंकों में से केवल 18.8 अंक प्राप्त हुए।

    लिखित परीक्षा और साक्षात्कार दोनों के संचयी अंक 50% से अधिक थे, फिर भी वह साक्षात्कार के लिए अलग-अलग 40% कट-ऑफ आवश्यकता को पूरा नहीं करता था, इसलिए उसे असफल घोषित कर दिया गया। हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने 2015 में सुप्रीम कोर्ट एक रिट याचिका दायर की, जिसमें दो जजों की पीठ ने 2016 में एक विभाजित फैसला सुनाया और मामले को तीन जजों की पीठ को भेज दिया गया।

    जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने याचिकाकर्ता के दावे को बरकरार रखते हुए 22 अगस्त (फैसला 31 अगस्त को अपलोड किया गया) को अपना फैसला सुनाया।

    पीठ ने कहा कि जिला जजों की भर्ती को नियंत्रित करने वाले प्रासंगिक वैधानिक नियम, मणिपुर न्यायिक सेवा नियम, 2005 में साक्षात्कार के लिए अलग कट-ऑफ का प्रावधान नहीं है। इसलिए, नियमों में संशोधन किए बिना पूर्ण न्यायालय के प्रस्ताव के माध्यम से ऐसी आवश्यकता पेश नहीं की जा सकती थी। साथ ही साक्षात्कार के लिए अलग कट-ऑफ की आवश्यकता विज्ञापन में निर्दिष्ट नहीं की गई थी और इसे केवल लिखित परीक्षा के बाद पेश किया गया था, वह भी उम्मीदवारों को सूचित किए बिना।

    पीठ ने शिवनंदन सीटी बनाम केरल हाईकोर्ट 2023 लाइव लॉ (एससी) 658 में संविधान पीठ के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि केरल हाईकोर्ट ने नियमों के विपरीत मौखिक परीक्षा के लिए न्यूनतम कट-ऑफ तय करने में गलती की।

    हाईकोर्ट की ओर से पेश वकील ने डॉ कविता कंबोज बनाम पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट 2024 लाइव लॉ (एससी) 174 और अभिमीत सिन्हा बनाम पटना हाईकोर्ट 2024 लाइव लॉ (एससी) 350 के हाल के निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें साक्षात्कार के लिए न्यूनतम कट-ऑफ अंकों को बरकरार रखा गया था।

    पीठ ने कहा कि न्यूनतम कट-ऑफ अंकों का निर्धारण अपने आप में मनमाना नहीं है। एकमात्र प्रश्न यह है कि क्या इसे नियमों के तहत निर्धारित पद्धति के विपरीत निर्धारित किया जा सकता है।इस मामले में मणिपुर न्यायिक सेवा नियमों के प्रासंगिक प्रावधान में निर्धारित किया गया था कि लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा में प्राप्त संचयी ग्रेड मूल्य को मिलाकर अंतिम चयन सूची तैयार की जाएगी।

    यह अलग बात है कि वर्तमान भर्ती के बाद, साक्षात्कार के लिए न्यूनतम कट-ऑफ को शामिल करने के लिए नियमों में 2016 में संशोधन किया गया था। अभिमीत सिन्हा मामले में न्यायालय साक्षात्कार के लिए न्यूनतम कट-ऑफ अंक निर्धारित करने वाले नियम की वैधता पर निर्णय दे रहा था, जिसे बरकरार रखा गया।

    इस निर्णय को अलग रखते हुए न्यायालय ने कहा,

    "..हमारे विचार में, भले ही साक्षात्कार के लिए न्यूनतम अंक निर्धारित करना स्पष्ट रूप से मनमाना न हो, लेकिन वर्तमान मामला लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा में याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त कुल अंकों के आधार पर असंशोधित एमजेएस नियमों के अनुसार चयन करने में विफलता पर है।"

    कविता कंबोज एक ऐसा मामला था, जहां मूल्यांकन के तरीके पर नियम मौन थे। ऐसे परिदृश्य में, साक्षात्कार के लिए न्यूनतम कट-ऑफ निर्धारित करने वाले पूर्ण न्यायालय के प्रस्ताव को नियमों का पूरक माना गया।

    न्यायालय ने कविता कंबोज को अलग रखते हुए कहा, "वर्तमान मामले में, मौखिक परीक्षा के लिए अर्हक अंक निर्धारित करने वाला संकल्प (12 जनवार 2015) नियमों को पूरक करने का मामला नहीं है, बल्कि हमें ऐसा लगता है कि यह ऐसा मामला है, जिसमें उम्मीदवारों के अंतिम चयन से संबंधित नियमों को प्रतिस्थापित किया गया है।"

    न्यायालय ने माना कि शिवनंदन सीटी में दिया गया निर्णय वर्तमान मामले पर अधिक लागू होता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, हम मानते हैं कि कार्यकारी निर्देश वैधानिक नियमों को दरकिनार नहीं कर सकते हैं, जहां लिखित और मौखिक परीक्षा में प्राप्त संचयी ग्रेड मूल्य को मिलाकर अंतिम चयन की विधि स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट की गई है।"

    केस टाइटलः सलाम समरजीत सिंह बनाम मणिपुर हाईकोर्ट इम्फाल | रिट पीटिशन (सिविल) नंबर 294/2015

    साइटेशन: 2024 लाइवलॉ (एससी) 636

    निर्णय पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story