न्यायालय के आदेशों की अवहेलना लोकतंत्र के आधार पर कानून के शासन पर हमला: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

10 May 2025 10:26 AM IST

  • न्यायालय के आदेशों की अवहेलना लोकतंत्र के आधार पर कानून के शासन पर हमला: सुप्रीम कोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना करने के लिए डिप्टी कलेक्टर को पदावनत करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश के माध्यम से सख्त संदेश दिया कि चाहे कोई भी अधिकारी कितना भी बड़ा क्यों न हो, वह देश के किसी भी न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अवहेलना नहीं कर सकता।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के रूप में नामित जस्टिस बीआर गवई ने कहा,

    “सभी को यह संदेश दिया जाना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है। जब कोई संवैधानिक न्यायालय, या इस मामले में, कोई भी न्यायालय, कोई निर्देश जारी करता है तो प्रत्येक अधिकारी, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, उक्त आदेशों का सम्मान करने और उनका पालन करने के लिए बाध्य है। न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अवहेलना लोकतंत्र के आधार पर कानून के शासन की नींव पर हमला है।”

    जस्टिस गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की और याचिकाकर्ता-डिप्टी कलेक्टर को न्यायालय की अवमानना ​​के लिए दोषी ठहराए जाने की पुष्टि की, जबकि उसकी सजा में संशोधन किया। सजा के तौर पर डिप्टी कलेक्टर को हाईकोर्ट ने 2 महीने के कारावास की सजा सुनाई थी। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने उनको तहसीलदार के पद पर पदावनत कर दिया गया और 1 लाख रुपये का जुर्माना जमा करने का निर्देश दिया गया। जहां तक ​​जेल में 48 घंटे बिताने की बात है तो उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता, न्यायालय ने याचिकाकर्ता के परिवार को ध्यान में रखते हुए नरम रुख अपनाया। उनके परिवार में 11वीं और 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली दो बेटियां शामिल हैं।

    संक्षेप में मामला

    याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उसे अवमानना ​​का दोषी ठहराया गया और कारावास की सजा सुनाई गई।

    सुप्रीम कोर्ट ने शुरू में उन्हें कड़ी फटकार लगाई और संकेत दिया कि उन्हें जेल में समय बिताना होगा। उन्हें अपने कार्यों के कारण पीड़ित सभी लोगों को भारी कीमत चुकानी होगी और पदावनत होना पड़ेगा। हालांकि, बाद में न्यायालय ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या वह जेल से बचने के लिए पदावनत होने को तैयार हैं। जब उन्होंने इनकार किया तो न्यायालय ने संकेत दिया कि यदि वह अड़े रहे तो न्यायालय न केवल याचिका खारिज करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि उन्हें पुनः बहाल न किया जाए।

    सीनियर एडवोकेट देवाशीष भारुका द्वारा याचिकाकर्ता को मनाने के लिए समय दिए जाने के अनुरोध पर मामले को शुक्रवार को सूचीबद्ध किया गया था।

    जस्टिस गवई ने आदेश सुनाने के बाद भारुका से कहा कि यदि याचिकाकर्ता पहले दिन ही सहमत हो जाता तो न्यायालय केवल उसकी 2-3 वेतन वृद्धि ही रोक सकता है।

    जस्टिस मसीह ने कहा,

    लेकिन उनके आचरण को देखते हुए याचिकाकर्ता ने स्वयं ही यह आदेश अपने ऊपर ले लिया।

    जस्टिस गवई ने आदेश को रिपोर्ट करने योग्य बनाते हुए कहा कि समाज को यह आदेश भेजा जाना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति किसी भी न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों का उल्लंघन नहीं कर सकता।

    जज ने कहा,

    "हम चाहते हैं कि पूरे देश में यह संदेश जाए कि न्यायालय के आदेश की अवहेलना कोई भी बर्दाश्त नहीं करेगा।"

    केस टाइटल: टाटा मोहन राव बनाम एस. वेंकटेश्वरलु एवं अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 10056-10057/2025

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