क्या जज ने मंत्री को आरोप मुक्त करने के लिए स्वत: संज्ञान लेने से पहले चीफ जस्टिस की मंजूरी ली थी? सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट से पूछा

Shahadat

29 Jan 2024 7:38 PM IST

  • क्या जज ने मंत्री को आरोप मुक्त करने के लिए स्वत: संज्ञान लेने से पहले चीफ जस्टिस की मंजूरी ली थी? सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट से पूछा

    सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल (आरजी) से भ्रष्टाचार के मामले में तमिलनाडु के राजस्व मंत्री केकेएसएसआर रामचंद्रन को आरोप मुक्त करने पर अदालत के एकल न्यायाधीश द्वारा स्वत: संज्ञान लेने पर रिपोर्ट मांगी।

    जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने आरजी से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या रामचंद्रन की रिहाई पर स्वत: संज्ञान लेने से पहले एकल न्यायाधीश द्वारा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की पूर्व मंजूरी ली गई थी।

    आरजी को 5 फरवरी तक रिपोर्ट सौंपनी है।

    संक्षिप्त पृष्ठभूमि देने के लिए अदालत भ्रष्टाचार के मामले में उन्हें आरोप मुक्त करने के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस आनंद वेंकटेश द्वारा लिए गए स्वत: संज्ञान के खिलाफ रामचंद्रन की चुनौती पर सुनवाई कर रही थी। उक्त मामले में रामचंद्रन के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने अपनी पत्नी और दोस्त के साथ मिलकर 2006 से 2011 के बीच डीएमके शासन में स्वास्थ्य मंत्री और बाद में पिछड़ा वर्ग मंत्री के रूप में कार्य करते हुए अपनी आय के स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की।

    प्रारंभिक जांच में सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) ने पाया कि आरोपियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। तदनुसार, रामचंद्रन और उनकी पत्नी पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। हालांकि, बाद में अंतिम क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई, जिसमें कहा गया कि कोई अपराध नहीं बनाया गया, जिसके बाद रामचंद्रन और उनकी पत्नी को बरी कर दिया गया।

    यह उल्लेख करना उचित होगा कि रामचंद्रन के अलावा, जस्टिस वेंकटेश ने पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री के. पोनमुडी, पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम, पूर्व पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बी वलारमथी, वर्तमान वित्त मंत्री थंगम थेनारासु और तमिलनाडु के वर्तमान ग्रामीण विकास मंत्री आई. पेरियासामी को बरी/मुक्त करने के फैसले के खिलाफ स्वत: संज्ञान लिया।

    पिछले साल, पोनमुडी और उनकी पत्नी (आय से अधिक संपत्ति के मामले में) को बरी करने के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए जस्टिस वेंकटेश ने माना था कि प्रशासनिक पक्ष पर हाईकोर्ट के आदेश द्वारा मंत्री के मामले को जिला जज से वेल्लोर में जिला जज के लिए विल्लुपुरम में ट्रांसफर कर दिया गया था। "कानून की नजर में प्रथम दृष्टया अवैध और गैर-कानूनी" है। ट्रांसफर और बरी किए जाने पर कई सवाल उठाते हुए जज ने अभियोजक और आरोपी को नए सिरे से सुनवाई के लिए नोटिस जारी किया था।

    राज्य डीवीएसी और पोनमुडी ने जवाब में आवेदन दायर कर जस्टिस वेंकटेश को स्वत: संज्ञान संशोधन की सुनवाई से अलग करने की मांग की थी। हालांकि, जस्टिस वेंकटेश ने मामले से हटने से इनकार कर दिया। स्वत: संज्ञान कार्यवाही को चुनौती देते हुए नवंबर, 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने बरी करने के फैसले को फिर से शुरू करने के स्वत: संज्ञान वाले आदेश के लिए जस्टिस वेंकटेश की सराहना की।

    यह देखते हुए कि अभियुक्त स्वयं हाईकोर्ट के समक्ष स्वत: संज्ञान पुनर्विचार शुरू करने की शक्ति की कमी की दलील उठा सकता है, जज के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया गया।

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा,

    "भगवान का शुक्र है कि हमारे पास हाईककोर्ट में आनंद वेंकटेश जैसे जज हैं। आचरण देखें। चीफ जस्टिस मुकदमे को एक जिले से दूसरे जिले में ट्रांसफर करते हैं। वह शक्ति कहां है? मुकदमे को ट्रांसफर करने की कोई प्रशासनिक शक्ति नहीं है। यह न्यायिक शक्ति है।“

    जस्टिस वेंकटेश ने इस महीने की शुरुआत में 8 जनवरी को मंत्रियों की मुक्ति/बरी करने के खिलाफ स्वत: संज्ञान संशोधन पर सुनवाई के लिए तारीखें तय कीं और स्पष्ट किया कि अदालत गुण-दोष पर ध्यान दिए बिना केवल मुक्ति/बरी करने के आदेशों की वैधता पर गौर करेगी। यह राय दी गई कि इन सभी मामलों में अभियोजन पक्ष द्वारा आगे की जांच करने और "अंतिम क्लोजर रिपोर्ट" दाखिल करने का पैटर्न है, जबकि अभियुक्त द्वारा दायर मुक्ति याचिका लंबित है।

    ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बरी करने/बरी करने के लिए इन अंतिम क्लोजर रिपोर्ट पर कार्रवाई की थी।

    रामचंद्रन के संबंध में कार्यवाही की सुनवाई मद्रास हाईकोर्ट द्वारा 5 फरवरी से 9 फरवरी तक की जानी है।

    केस टाइटल: थिरु. के.के.एस.एस.आर. रामचन्द्रन बनाम राज्य प्रतिनिधि द्वारा: एडिशनल पुलिस सुपरिटेंडेंट एवं अन्य, एसएलपी (सीआरएल) डायरी नंबर 3245/2024

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