3 साल से अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए FIR रद्द करने के लिए देरी आधार नहीं हो सकती : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
30 April 2025 1:17 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तीन साल से अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए FIR दर्ज करने में देरी, अगर उसमें संज्ञेय अपराध होने का खुलासा होता है तो FIR रद्द करने का आधार नहीं है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ उस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्रतिवादी नंबर 2 और 3 के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 467,468,471,420 और 120बी के तहत FIR दर्ज की गई थी। इन प्रावधानों में तीन साल से अधिक की सजा का प्रावधान है। हाईकोर्ट ने अन्य बातों के अलावा FIR दर्ज करने में 16 साल की देरी का हवाला देते हुए प्रतिवादियों के खिलाफ FIR रद्द कर दी।
हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस मनमोहन द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि FIR दर्ज करने में देरी होने के कारण ही हाईकोर्ट ने आपराधिक जांच पर रोक लगाकर गलती की है।
अदालत ने कहा,
"यह स्थापित कानून है कि तीन साल से अधिक कारावास से दंडनीय अपराधों के लिए FIR दर्ज करने में देरी आपराधिक जांच को रोकने का आधार नहीं हो सकती।"
चूंकि प्रावधानों के तहत निर्धारित सजा तीन साल से अधिक थी, इसलिए अदालत ने CrPC की धारा 468 को लागू करते हुए कहा कि परिसीमा अवधि तीन साल से अधिक कारावास से दंडनीय अपराधों पर लागू नहीं होती है। चूंकि कार्रवाई का कारण दिसंबर, 2021 में ही उत्पन्न हुआ जब अपीलकर्ता ने धोखाधड़ी वाले बिक्री विलेख और पूर्व बंधकों की खोज की थी, इसलिए अदालत ने पाया कि धोखाधड़ी का पता चलने के तुरंत बाद (15 दिनों के भीतर) शिकायत दर्ज की गई, जो CrPC की धारा 469 को संतुष्ट करती है।
अदालत ने कहा,
"अपीलकर्ता ने बेशक 12 जनवरी, 2022 को आर्थिक अपराध शाखा के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी। CrPC की धारा 469 में प्रावधान है कि सीमा अवधि उस तारीख से शुरू होती है, जिस दिन पीड़ित व्यक्ति को अपराध का पता चलता है। वर्तमान मामले में, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया, अपीलकर्ता को अपराध के बारे में 28 दिसंबर, 2021 को ही पता चला। नतीजतन, प्रथम दृष्टया आपराधिक कार्यवाही दायर करने में कोई देरी नहीं हुई।"
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।
केस टाइटल: पुनीत बेरीवाला बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य।

