'विवाह के लिए लिये गए डेब्ट का व्यापक प्रभाव पड़ता है': सुप्रीम कोर्ट ने बेटी की शादी के बाद पारिवारिक संपत्ति बेचने का फैसला सही ठहराया

Shahadat

16 Sept 2025 7:27 PM IST

  • विवाह के लिए लिये गए डेब्ट का व्यापक प्रभाव पड़ता है: सुप्रीम कोर्ट ने बेटी की शादी के बाद पारिवारिक संपत्ति बेचने का फैसला सही ठहराया

    सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) कर्ता को 'कानूनी आवश्यकता' के लिए संयुक्त परिवार की संपत्ति को हस्तांतरित करने का अधिकार है, जिसमें बेटी की शादी भी शामिल है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसा हस्तांतरण तब भी वैध रहता है, जब संपत्ति के हस्तांतरण से पहले ही विवाह हो चुका हो।

    अदालत ने कर्ता द्वारा अपनी बेटी की शादी में किए गए खर्चों से निपटने के लिए संपत्ति हस्तांतरित करने को उचित ठहराते हुए कहा,

    "यह सर्वविदित है कि परिवार अपनी बेटियों की शादी के लिए भारी लोन लेते हैं और ऐसे लोन का परिवार की वित्तीय स्थिति पर वर्षों तक व्यापक प्रभाव पड़ता है।"

    जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि शादी के वर्षों बाद संयुक्त परिवार की संपत्ति को हस्तांतरित करने के लिए निष्पादित सेल डीड को कर्ता द्वारा विक्रय की कानूनी आवश्यकता के रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता।

    यह मुकदमा प्रथम प्रतिवादी (पिता) के चार पुत्रों में से एक ने HUF संपत्ति की बिक्री को चुनौती देते हुए दायर किया था। पांचवें प्रतिवादी (क्रेता) ने कर्ता और उसकी पत्नी के इस कथन के आधार पर बिक्री का बचाव किया कि यह बिक्री बेटी की शादी के खर्चों को पूरा करने के लिए की गई। ट्रायल कोर्ट ने मुकदमा खारिज कर दिया। हालांकि, हाईकोर्ट ने ट्रायल के फैसले को पलट दिया और सेल डीड रद्द की।

    जस्टिस बागची द्वारा लिखित फैसले में कहा गया कि क्रेता ने 'कानूनी आवश्यकता' साबित करने का भार सफलतापूर्वक पूरा कर लिया, क्योंकि कर्ता ने अपनी बेटी की शादी के खर्चों को पूरा करने के लिए संपत्ति हस्तांतरित की थी। अदालत ने कहा कि धन रसीदों पर न केवल कर्ता, बल्कि उसकी पत्नी, बेटी और दो बेटों के भी हस्ताक्षर हैं, जो लेन-देन के लिए परिवार की सहमति को दर्शाते हैं। तदनुसार, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के सुविचारित आदेश में हस्तक्षेप करके गलती की।

    अदालत ने कहा,

    “हम जानते हैं कि कानूनी आवश्यकता के कारण कर्ता द्वारा HUF के अन्य सहदायिकों की ओर से की गई बिक्री को साबित करने का दायित्व, कर्ता/क्रेता पर है। पांचवें प्रतिवादी-क्रेता ने वादी और अन्य साक्ष्यों से कुशलतापूर्वक जिरह करके, बिक्री लेनदेन और काशीबाई के विवाह के लिए किए गए खर्चों के बीच स्पष्ट संबंध स्थापित किया। इस प्रकार अपने दायित्व से मुक्त हो गया। इन परिस्थितियों में इस आधार पर उसके मामले पर अविश्वास नहीं किया जा सकता कि सभी सहदायिकों को बिक्री का प्रतिफल प्राप्त नहीं हुआ।”

    अदालत ने आगे कहा कि केवल यह तथ्य कि सहदायिक को प्रतिफल राशि प्राप्त नहीं हुई, कर्ता द्वारा किए गए हस्तांतरण को चुनौती देने का वैध आधार नहीं है, क्योंकि ऐसी गैर-प्राप्ति को साबित करना साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत सहदायिक के विशेष ज्ञान में निहित है। यह दायित्व क्रेता पर नहीं डाला जा सकता।

    अदालत ने आगे कहा,

    “यह तथ्य वादी और अन्य सहदायिकों के विशेष ज्ञान में है। अजनबी-क्रेता पर सबूत साबित करने का भार साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 106 में निहित विपरीत भार के सिद्धांत के विपरीत नहीं हो सकता। उसे उन तथ्यों को साबित करने के दायित्व से नहीं जोड़ा जा सकता, जो HUF के सहदायिकों के विशेष ज्ञान में हैं।”

    तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई।

    Cause Title: DASTAGIRSAB VERSUS SHARANAPPA @ SHIVASHARANAPPA(D)BY LRS. & ORS.

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