एक ही मुद्दे पर दीवानी मामला लंबित होने और आपराधिक तत्व अनुपस्थित होने पर आपराधिक मामला रद्द किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

31 July 2025 9:56 PM IST

  • एक ही मुद्दे पर दीवानी मामला लंबित होने और आपराधिक तत्व अनुपस्थित होने पर आपराधिक मामला रद्द किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि आपराधिक तत्व के अभाव में एक ही मुद्दे पर दीवानी और आपराधिक दोनों मामलों को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह विधि प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जिसके लिए न्यायालय को आपराधिक कार्यवाही रद्द करने हेतु हस्तक्षेप करना होगा।

    न्यायालय ने कहा,

    “आपराधिक तत्व के अभाव में यदि दीवानी और आपराधिक दोनों मामलों को जारी रहने दिया जाता है तो यह निश्चित रूप से न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जिसे न्यायालयों ने हमेशा ऐसी किसी भी आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाकर रोकने का प्रयास किया, जहां एक ही मुद्दे पर दीवानी कार्यवाही पहले ही शुरू हो चुकी है और आपराधिक तत्व अनुपस्थित है। यदि ऐसा तत्व अनुपस्थित है, तो संबंधित अभियोजन को रद्द करना होगा।”

    जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें शिकायतकर्ता ने संपत्ति समझौते के विशिष्ट निष्पादन के लिए दीवानी मुकदमा दायर किया। साथ ही भूस्वामियों के खिलाफ धोखाधड़ी (IPC की धारा 420) और आपराधिक विश्वासघात (IPC की धारा 406) का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज कराई थी।

    कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस अमानुल्लाह द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि दीवानी विवादों (जैसे अनुबंध का उल्लंघन या संपत्ति संबंधी मतभेद) का निपटारा दीवानी उपायों के माध्यम से किया जाना चाहिए, जबकि आपराधिक आरोपों के लिए लेन-देन की शुरुआत से ही आपराधिक इरादे के सबूत की आवश्यकता होती है। न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ताओं ने दीवानी विवाद को आपराधिक रंग देकर उसे बदलने का प्रयास किया।

    बता दें, कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले में अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

    चूंकि अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही संपत्ति के बाजार मूल्य में वृद्धि के बाद ही शुरू की गई थी, जैसा कि शिकायतकर्ता ने अपने बयान में कहा, न्यायालय ने पाया कि शिकायतकर्ता समझौते के समय प्रथम दृष्टया आपराधिक इरादे को साबित करने में विफल रहा।

    परमजीत बत्रा बनाम उत्तराखंड राज्य, (2013) 11 एससीसी 673 के मामले का संदर्भ दिया गया, जहां यह टिप्पणी की गई थी:

    “किसी शिकायत में आपराधिक अपराध का खुलासा होता है या नहीं, यह उसमें आरोपित तथ्यों की प्रकृति पर निर्भर करता है। आपराधिक अपराध के आवश्यक तत्व मौजूद हैं या नहीं, इसका निर्णय हाईकोर्ट को करना होता है। दीवानी लेन-देन का खुलासा करने वाली शिकायत में भी आपराधिक स्वरूप हो सकता है। लेकिन हाईकोर्ट को यह देखना होगा कि क्या किसी विवाद को, जो मूलतः दीवानी प्रकृति का है, आपराधिक अपराध का आवरण दिया गया। ऐसी स्थिति में, यदि कोई दीवानी उपाय उपलब्ध है और वास्तव में अपनाया भी जाता है, जैसा कि इस मामले में हुआ है, तो हाईकोर्ट को न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए आपराधिक कार्यवाही रद्द करने में संकोच नहीं करना चाहिए।”

    तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई और अपीलकर्ताओं के विरुद्ध दर्ज FIR रद्द कर दी गई।

    Cause Title: S. N. VIJAYALAKSHMI & ORS. VERSUS STATE OF KARNATAKA & ANR.

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