जांच में सहयोग करने का मतलब यह नहीं कि आरोपी से आत्म-दोषारोपण वाले बयान देने की अपेक्षा की जाती है: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

8 March 2024 7:37 AM GMT

  • जांच में सहयोग करने का मतलब यह नहीं कि आरोपी से आत्म-दोषारोपण वाले बयान देने की अपेक्षा की जाती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा आरोपी के जांच में सहयोग के अधीन है, उससे ऐसी सुरक्षा वापस लेने की मांग करने वाली राज्य की धमकी के तहत आत्म-दोषारोपण वाले बयान देने की उम्मीद नहीं की जाती।

    कोर्ट ने कहा,

    "जमानत पर रहने की शर्त के रूप में जांच में शामिल होने के दौरान आरोपी से इस धमकी के तहत आत्म-दोषारोपण करने वाले बयान देने की उम्मीद नहीं की जाती कि राज्य इस तरह के अंतरिम संरक्षण को वापस लेने की मांग करेगा।"

    जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ नगर निगम, सोनीपत से जुड़े जूनियर इंजीनियर (इलेक्ट्रिकल) की अग्रिम जमानत की मांग वाली आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपीलकर्ता इंजीनियर विशेष प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में आरोपी है। इससे नगर निगम की इमारत को 'हरित इमारत' में अपग्रेड करने की लागत का अनुमान भी बढ़ गया। निगम ने दावा किया कि इस तरह की कवायद से निविदा मूल्य में वृद्धि हुई।

    अदालत ने जांच एजेंसी के साथ अपीलकर्ता के सहयोग की शर्त पर अंतरिम सुरक्षा प्रदान की। इसके बाद जब मामला उठाया गया तो अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता जांच में शामिल हो गया। साथ ही, न्यायालय ने इस कारण पर अपना ध्यान आकर्षित किया कि राज्य अपीलकर्ता की गिरफ्तारी पूर्व जमानत का विरोध क्यों कर रहा है।

    राज्य द्वारा दायर जवाबी हलफनामे में अन्य बातों के अलावा कहा गया:

    “13. हालांकि याचिकाकर्ता/अभियुक्त इस माननीय न्यायालय द्वारा पारित आदेश के अनुसार दिनांक 10.02.2024 को जांच में शामिल हो गया, लेकिन याचिकाकर्ता ने पुलिस के साथ सहयोग नहीं किया और न ही उसके द्वारा प्राप्त रिश्वत की राशि बरामद की और न ही अन्य तथ्यों का खुलासा किया। इसलिए वर्तमान मामले में गहन जांच के लिए याचिकाकर्ता/अभियुक्त से हिरासत में पूछताछ आवश्यक है।''

    इस पर विचार करने के बाद न्यायालय ने कहा कि इसे अपीलकर्ता के असहयोग के साथ नहीं जोड़ा जा सकता।

    खंडपीठ ने कहा,

    "हम अपीलकर्ता के व्यवहार को गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए उसकी अपील खारिज करने को उचित ठहराने वाले असहयोग के उदाहरण के रूप में नहीं मान सकते।"

    उपर्युक्त टिप्पणियां करने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि इस स्तर पर उसका संबंध केवल जांच चरण में हिरासत से है। इस प्रकार, अपीलकर्ता से हिरासत में पूछताछ का कोई कारण न पाते हुए अदालत ने उसे जमानत दे दी। ऐसा करते समय यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि अपीलकर्ता जांच अधिकारी के साथ सहयोग करना जारी रखेगा।

    केस टाइटल: बिजेंदर बनाम हरियाणा राज्य

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