साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत अभियुक्त के बयान को साबित नहीं किया जा सकता, केवल तथ्यों की खोज से संबंधित बयान ही स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

25 Nov 2024 10:19 AM IST

  • साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत अभियुक्त के बयान को साबित नहीं किया जा सकता, केवल तथ्यों की खोज से संबंधित बयान ही स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 27 के तहत अभियुक्त के बयान का केवल वही विशिष्ट हिस्सा स्वीकार्य है, जो साक्ष्य की खोज/पुनर्प्राप्ति से सीधे जुड़ा हुआ है। धारा 27 के तहत बयान साबित करते समय अभियुक्त के बयान को शामिल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने माना कि ऐसे बयानों के अस्वीकार्य हिस्सों को अभियोजन पक्ष के गवाह की मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस अभय एस. ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि यदि ऐसे अस्वीकार्य बयानों को शामिल किया जाता है तो ट्रायल कोर्ट प्रभावित हो सकते हैं।

    इस मामले में (हत्या के मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील), अभियुक्त ने कथित तौर पर उस स्थान के बारे में बयान दिया जहां शव का निपटान किया गया। हालांकि, जांच अधिकारी की मुख्य परीक्षा में हत्या में उसकी संलिप्तता के बारे में अभियुक्त के बयान को शामिल किया गया।

    न्यायालय ने पाया कि जांच अधिकारी ने पुलिस अधिकारी के समक्ष अभियुक्त द्वारा कथित रूप से दिए गए बयानों को साबित करने का प्रयास किया, जो अस्वीकार्य है।

    न्यायालय ने कहा,

    "ऐसे बयानों को साबित करने पर भी पूर्ण प्रतिबंध है। ट्रायल जज ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 और 26 को पूरी तरह से नजरअंदाज किया। पीडब्लू-27 को अभियुक्त द्वारा पुलिस हिरासत में कथित रूप से दिए गए बयानों को साबित करने की अनुमति दी।"

    जस्टिस ओक ने अपने फैसले में इस प्रथा की आलोचना की। इस बात पर जोर दिया कि ट्रायल कोर्ट को बयान में अस्वीकार्य बयान को शामिल नहीं करना चाहिए। साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुसार, अभियुक्त के इकबालिया बयान का केवल वह हिस्सा स्वीकार्य है, जो पुलिस हिरासत में रहते हुए सीधे तथ्यों की खोज की ओर ले जाता है।

    अदालत ने कहा,

    “केवल वही जानकारी स्वीकार्य है, जो अभियुक्त द्वारा दी गई, जो उसके द्वारा खोजे गए तथ्यों से स्पष्ट रूप से संबंधित है। कोई अन्य हिस्सा स्वीकार्य नहीं है। प्रदर्श 'पी55' और 'पी56' के माध्यम से यह आरोप लगाया गया कि अभियुक्त ने उन स्थानों को दिखाया, जहां मृतक का अपहरण किया गया, जहां उसकी हत्या की गई और जहां उसका शव फेंका गया। इस मामले में साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत बयान के अस्वीकार्य हिस्से को भी पीडब्लू-27 की मुख्य परीक्षा में शामिल किया गया। ट्रायल जज को बयान में अस्वीकार्य स्वीकारोक्ति दर्ज नहीं करनी चाहिए। हिरासत में रहते हुए अभियुक्त द्वारा पुलिस अधिकारी के समक्ष दिया गया इकबालिया बयान साक्ष्य में स्वीकार्य नहीं है, सिवाय उस सीमा तक जहां तक ​​धारा 27 लागू होती है। यदि इस तरह के अस्वीकार्य बयानों को अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों का हिस्सा बनाया जाता है तो इस बात की पूरी संभावना है कि ट्रायल कोर्ट इससे प्रभावित हो सकते हैं।"

    चूंकि, अभियोजन पक्ष का पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था, जिसे उचित संदेह से परे साबित नहीं किया जा सका। घटनाओं की श्रृंखला आरोपी को दोषी ठहराने के लिए स्थापित नहीं की गई, इसलिए अदालत ने आईपीसी के तहत अपहरण और हत्या के अपराधों के आरोपी आरोपियों को बरी कर दिया।

    तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: रणदीप सिंह @ राणा और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य।

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