Commercial Courts Act | वादपत्र की अस्वीकृति अपील योग्य, वादपत्र को अस्वीकार करने से इनकार करने वाले आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
10 Nov 2025 10:29 PM IST

कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट, 2015 (एक्ट) के तहत प्रक्रियात्मक कानून को स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (10 नवंबर) को कहा कि वादपत्र अस्वीकार करने के आवेदन को स्वीकार करने वाला आदेश एक डिक्री के समान है। इसलिए अधिनियम की धारा 13(1ए) के तहत अपील योग्य है। हालांकि, ऐसे आवेदन को अस्वीकार करने वाले आदेश पर उसी प्रावधान के तहत अपील योग्य नहीं है और इसे संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पुनर्विचार या याचिका के माध्यम से चुनौती दी जा सकती है, जैसा भी मामला हो।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट की धारा 13(1ए) के तहत अपीलकर्ता-वादी की अपील, जिसमें प्रतिवादी-प्रतिवादी के वादपत्र को अस्वीकार करने के आवेदन को स्वीकार करने के आदेश को चुनौती दी गई, सुनवाई योग्य नहीं है।
अपीलकर्ता ने प्रतिवादी के विरुद्ध ₹2.5 करोड़ से अधिक की वसूली के लिए कॉमर्शियल वाद दायर किया था। प्रतिवादी ने सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत यह तर्क देते हुए वाद खारिज करने की मांग की कि अनिवार्य पूर्व-संस्था मध्यस्थता नहीं की गई थी। ट्रायल कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए वाद को खारिज कर दिया।
अपीलकर्ताओं ने जब कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट की धारा 13(1ए) के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की तो हाईकोर्ट ने अपील को गैर-धारणीय बताते हुए खारिज कर दिया। इसने तर्क दिया कि चूंकि वाद को खारिज करने वाला आदेश सीपीसी के आदेश XLIII में सूचीबद्ध नहीं है, इसलिए यह धारा 13(1ए) के प्रावधान के दायरे से बाहर है। इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।
हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर वादी-अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट का फैसला खारिज करते हुए जस्टिस मेहता द्वारा लिखे गए एक फैसले में कहा गया कि कॉमर्शियल कोर्ट एक्ट की धारा 13(1ए) को सामंजस्यपूर्ण ढंग से पढ़ा जाना चाहिए; मुख्य प्रावधान किसी भी "निर्णय या आदेश" के विरुद्ध अपील की अनुमति देता है, जबकि परंतुक केवल आदेश XLIII CPC के अंतर्गत सूचीबद्ध अंतरिम आदेशों के संबंध में अपील को सीमित करता है। परंतुक मुख्य प्रावधान के दायरे को सीमित नहीं कर सकता। चूंकि किसी वादपत्र को खारिज करने वाला आदेश एक डिक्री (अंतिम आदेश) के बराबर होता है, इसलिए यह पूरी तरह से मुख्य प्रावधान के अंतर्गत आता है और अपील योग्य बना रहता है।
न्यायालय ने बैंक ऑफ इंडिया बनाम मारुति सिविल वर्क्स, 2023 लाइवलॉ (बॉम्बे) 593 के मामले को अलग किया, जिस पर प्रतिवादियों ने भरोसा किया था। न्यायालय ने बताया कि बैंक ऑफ इंडिया मामले में चुनौती दिया गया आदेश आदेश VII नियम 10/11(d) के तहत दायर आवेदन खारिज करने वाला था। ऐसा आदेश, जो किसी वादपत्र को खारिज करने या वापस करने से इनकार करता है, एक अंतरिम आदेश है और डिक्री नहीं है। इसलिए इसके विरुद्ध अपील करने का एकमात्र तरीका यह होगा कि इसे आदेश XLIII में सूचीबद्ध किया जाए, जो कि ऐसा नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह वर्तमान मामले से मौलिक रूप से भिन्न था, जहां वादपत्र को ही खारिज कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप डिक्री हुई थी।
अदालत ने कहा,
"(मारुति सिविल वर्क्स के) उपरोक्त पैराग्राफ को पढ़ने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त मामले में सीपीसी के आदेश VII नियम 10 और आदेश VII नियम 11(डी) के तहत आवेदन(ओं) को खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई, जो आदेश सीपीसी के आदेश XLIII के तहत सूचीबद्ध नहीं हैं। इस प्रकार, इस प्रस्ताव पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि ऐसा आदेश सीसीए, 2015 की धारा 13(1ए) के तहत अपील के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। इसके बजाय भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पुनर्विचार या याचिका/आवेदन दायर करके चुनौती दी जा सकती है, जैसा भी मामला हो।"
तदनुसार, अपील को अनुमति दी गई और अपीलकर्ता-कंपनी द्वारा हाईकोर्ट में दायर अपील को सुनवाई योग्य माना गया। इसलिए इसकी फाइल और मूल संख्या बहाल कर दी गई।
Cause Title: MITC ROLLING MILLS PRIVATE LIMITED AND ANR. VERSUS M/S. RENUKA REALTORS AND ORS.

