क्या महाराष्ट्र में 'सिख चमार' को 'मोची' जाति माना जा सकता है? नवनीत कौर राणा के मामले में सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

23 Feb 2024 10:55 AM IST

  • क्या महाराष्ट्र में सिख चमार को मोची जाति माना जा सकता है? नवनीत कौर राणा के मामले में सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (23 फरवरी) को अमरावती की सांसद नवनीत कौर राणा का जाति प्रमाण पत्र रद्द करने के मुद्दे पर अपनी सुनवाई फिर से शुरू करते हुए संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के उद्देश्य और दायरे के पहलू पर गौर किया और बताया कि कैसे विभिन्न राज्यों में अनुसूचित जातियों का पदनाम समाजशास्त्रीय आधार पर भिन्न-भिन्न है।

    जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2021 में उनका जाति प्रमाण पत्र यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि उसने धोखाधड़ी से 'मोची' जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया, जबकि रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह 'सिख-चमार' जाति से हैं। इसके कारण अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट से उनका चुनाव अमान्य हो गया।

    प्रतिवादियों में से एक (नवनीत कौर राणा की जाति की स्थिति का विरोध करते हुए) की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने जोर देकर कहा कि 1950 के आदेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रावधानों का दुरुपयोग करने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जाएं।

    उन्होंने कहा,

    “इसका उद्देश्य क्या है? यह सुनिश्चित करने के लिए कि मैं यह कहने के लिए दस्तावेज़ और सबूत पेश न करूं कि इस जाति का उल्लेख यहां किया गया। हालाँकि मैं इस वर्ग (अनुसूचित जाति के भीतर) से हूं। हालाँकि इसका सीधे तौर पर यहां उल्लेख नहीं किया गया, लेकिन घोषणा करता हूं कि मैं इस जाति का हिस्सा हूं। 1950 में राष्ट्रपति का आदेश क्यों घोषित किया गया? यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसी कोई जांच न हो, क्योंकि राजनीति में क्या होगा - कोई नियम नहीं - ऐसे दावों की संख्या की जाएगी...विचार यह है कि राजनीतिक क्षेत्र में उन लोगों की घुसपैठ से बचा जाए, जो सीधे या विशेष रूप से उस जाति से संबंधित नहीं हैं। सिस्टम में घुसपैठ करने के लिए दावा करें और संसद में लड़ें।

    मिस्टर सिब्बल ने कानून की व्याख्या करते समय इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि कैसे संविधान के अनुच्छेद 341 ने राष्ट्रपति को जाति को 'अनुसूचित जाति' के रूप में अधिसूचित करने और नामित करने की शक्ति प्रदान की और अनुच्छेद 366(24) ने 'अनुसूचित जाति' की परिभाषा प्रदान की।

    "अनुसूचित जातियां" का अर्थ है, ऐसी जातियां, नस्लें या जनजातियां या ऐसी जातियों, नस्लों या जनजातियों के कुछ हिस्से या समूह, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जाति माना जाता है।

    मिस्टर सिब्बल ने विश्लेषण किया कि उपरोक्त परिभाषा सर्व-समावेशी है।

    उन्होंने कहा,

    "यह केवल जाति की ही गणना नहीं करता है, बल्कि अनुसूचित जाति के भीतर की जातियों की गणना किसी भी नामकरण या ऐसी जातियों के कुछ हिस्सों के आधार पर करता है, जो भी नामकरण निर्धारित किया गया और ऐसी जातियां मानी जाती हैं।"

    आगे बढ़ते हुए सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि 'रविदासिया मोची' जाति को 'मोची/मोचीगर/चंभार' (बाद वाले को 1950 के संविधान आदेश के तहत बॉम्बे की राज्य सूची के तहत सूचीबद्ध किया गया) के पर्याय के रूप में देखने का याचिकाकर्ता का तर्क गलत होगा। चूंकि पूर्व श्रेणी मोची का उपवर्गीकरण है और इसकी अनुमति देकर न्यायालय अनुसूचित जाति सूची को संशोधित करने में संसद के स्थान पर कदम उठाएगा।

    सिब्बल ने आगे तर्क दिया कि जबकि रविदासिया जाति को पंजाब सूची के तहत अधिसूचित किया गया, वही बॉम्बे सूची के तहत नहीं है। इसलिए याचिकाकर्ता महाराष्ट्र में रविदासिया होने का लाभ नहीं उठा सका।

    उन्होंने कहा,

    "यह मामला उस दिन बंद हो सकता है, जब वह यह स्थापित नहीं कर पाती कि वह राज्य प्रवेश में नहीं आती (जैसा कि 1950 के आदेश में निर्दिष्ट है)।"

    इस पर जस्टिस संजय करोल ने पूछा,

    "मान लीजिए कि कोई व्यक्ति ऐसे राज्य में मोची है, जहां इसे अधिसूचित नहीं किया गया और वह दूसरे राज्य में चला जाता है, जहां उसे मोची होने के लिए अधिसूचित किया गया है, तो क्या वह लाभ का हकदार होगा या नहीं?"

    सिब्बल ने उत्तर दिया कि यह प्रवास की तारीख पर निर्भर करता है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों को ऐसी अधिसूचना की मानी गई तारीख से पहले आना आवश्यक है।

    रविदासिया मोची या सिख चमार? - याचिकाकर्ता ने स्पष्ट किया

    याचिकाकर्ता नवनीत कौर राणा का मामला यह है कि उनके पूर्वज सिख-चमार जाति से थे। यह समझाया गया कि यहां 'सिख' धार्मिक उपसर्ग है और इसका जाति से कोई संबंध नहीं है। 'चमार' याचिकाकर्ता की जाति है। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के पूर्वज मोची-मोची थे और चर्मकार-'चमार' से संबंधित थे।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर वकील ध्रुव मेहता ने बताया,

    “सिख धार्मिक उपसर्ग है, यह कोई जाति नहीं है। जाति चमार या मोची है। जहां तक रविदासिया का सवाल है, गुरु ग्रंथ साहिब में इसका उल्लेख है कि यह गुरुओं (10 सिख गुरुओं में से) में से एक है और इसे मोची और चमार दोनों के रूप में जाना जाता है।

    मिस्टर मेहता ने आगे कहा कि चमार और मोची दोनों को 1950 के संवैधानिक राष्ट्रपति आदेश में सूचीबद्ध किया गया।

    हालांकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि जाति प्रमाण पत्र में निर्दिष्ट क्षेत्र में केवल 'मोची' का उल्लेख है, जस्टिस जेके माहेश्वरी ने पूछा,

    “आप सिख हैं, ठीक है? 'सिख चमार' या 'रविदासिया मोची' यह शब्द कहां से आया है? क्योंकि प्रमाणपत्र केवल मोची कहता है।"

    इस पर मिस्टर मेहता ने जवाब दिया कि किरायेदारी के जिस अनुबंध पर याचिकाकर्ता अपने जाति प्रमाण पत्र को सत्यापित करने के लिए भरोसा करती है, उसमें 'सिख चमार' का उल्लेख है, इसलिए वर्ष 1946 के मूल रजिस्टर (जांच समिति द्वारा स्वीकार किए गए दस्तावेज) के साथ वास्तविक प्रमाण पत्र में भी 'सिख चमार' का उल्लेख है। वंशावली (वंशावली आदि) और राजस्व रिकॉर्ड में जाति का उल्लेख 'रविदासिया मोची' के रूप में किया गया और सत्यापन जांच उसी पर निर्भर करती है।

    केस टाइटल: नवनीत कौर बनाम महाराष्ट्र राज्य | एसएलपी [सी] नंबर 7776/2021

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