क्या मुस्लिम पुलिसकर्मी दाढ़ी रखने के अधिकार को धार्मिक प्रथा के रूप में स्वीकार कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

Shahadat

13 Aug 2024 3:55 AM GMT

  • क्या मुस्लिम पुलिसकर्मी दाढ़ी रखने के अधिकार को धार्मिक प्रथा के रूप में स्वीकार कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

    सुप्रीम कोर्ट ने अपील सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया कि क्या दाढ़ी रखने के कारण मुस्लिम पुलिसकर्मी को निलंबित करना अनुच्छेद 25 के तहत धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने महाराष्ट्र राज्य रिजर्व पुलिस बल (SRPF) के मुस्लिम कांस्टेबल द्वारा उठाए गए उक्त मुद्दे की जांच करने पर सहमति व्यक्त की, जिसे दाढ़ी रखने के कारण 1951 के बॉम्बे पुलिस मैनुअल के विरुद्ध निलंबित किया था।

    सीजेआई ने टिप्पणी की,

    "यह संविधान का महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस पर बहस की जानी चाहिए। हम मामले को गैर-विविध दिन सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेंगे।"

    याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को सूचित किया कि वर्तमान सिविल अपील सुप्रीम कोर्ट के विशेष लोक अदालत सत्र के दौरान पहले ही अनसुलझी रह गई।

    गौरतलब है कि 2017 में एक पहले के अवसर पर याचिकाकर्ता ने 2012 के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें दाढ़ी रखने के लिए उसे निलंबित करने का राज्य का फैसला बरकरार रखा गया था।

    सीजेआई जेएस खेहर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एसके कौल की पीठ ने मामले की सुनवाई की और याचिकाकर्ता को दाढ़ी मुंडवाने पर सहमत होने पर उसका निलंबन रद्द करने की पेशकश की। हालांकि याचिकाकर्ता ने शर्त मानने से इनकार किया।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2021 में मुस्लिम कांस्टेबल द्वारा दाढ़ी रखने पर निलंबन के इसी तरह के मुद्दे पर फैसला करते हुए कहा कि अनुशासित बल के सदस्य द्वारा दाढ़ी रखना भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं हो सकता।

    हाईकोर्ट ने मोहम्मद जुबैर कॉर्पोरल नंबर 781467-जी बनाम भारत संघ और अन्य [2017 में रिपोर्ट की गई 2 एससीसी 115] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया कि मुस्लिम वायु सेना अधिकारी दाढ़ी रखने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। न्यायालय ने उस मामले में देखा कि याचिकाकर्ता यह स्थापित नहीं कर सका कि क्या इस्लाम में कोई विशिष्ट आदेश है, जो बाल काटने या चेहरे के बालों को शेव करने पर रोक लगाता है।

    बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश

    इस मामले की उत्पत्ति महाराष्ट्र के राज्य रिजर्व पुलिस बल (SRPF) द्वारा 9 अक्टूबर, 2012 को पारित आदेश से हुई, जिसमें याचिकाकर्ता को उसकी इस्लामी आस्था के अनुरूप कुछ महीनों के लिए दाढ़ी रखने की पहले दी गई अनुमति रद्द कर दी गई। याचिकाकर्ता ने इसे अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धर्म का पालन करने के अपने मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी।

    राज्य ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता SRPF में कांस्टेबल है, इसलिए वह बॉम्बे पुलिस मैनुअल 1951 के नियमों और विनियमों द्वारा शासित है, जो उसे अपनी सेवा अवधि के दौरान दाढ़ी रखने की अनुमति नहीं देता है। इसके अतिरिक्त, यह बताया गया कि अनुमति रद्द करने का काम गृह विभाग और मुंबई के डीजीपी के आदेशों द्वारा किया गया, जिसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता।

    हाईकोर्ट ने इस आधार पर याचिका खारिज की कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में असमर्थ था कि दाढ़ी रखना इस्लाम का मौलिक सिद्धांत है, जिसे खत्म नहीं किया जा सकता।

    कहा गया,

    "याचिकाकर्ता के वकील हमारे सामने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर सके, जो यह साबित करता हो कि दाढ़ी रखना इस्लाम का मौलिक सिद्धांत है या याचिकाकर्ता का दाढ़ी रखने का अधिकार किसी वैधानिक कानून या बाध्यकारी प्रकृति के दिशा-निर्देशों के तहत कोई आधार रखता हो।"

    न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 25 के तहत उचित प्रतिबंधों के मद्देनजर दाढ़ी रखने के अधिकार को याचिकाकर्ता का पूर्ण अधिकार नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि उचित प्रतिबंधों पर विचार करते समय पुलिस बल की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को बनाए रखना जरूरी है।

    न्यायालय ने कहा,

    "8. पुलिस बल पर लागू प्रतिबंधों का आकलन करने में पुलिस की भूमिका की सराहना की जानी चाहिए। कानून लागू करना पुलिस पर काफी हद तक निर्भर करता है। इसकी धर्मनिरपेक्ष छवि होनी चाहिए और यह खुद को सांप्रदायिक बारीकियों या अतिरेक के लिए उधार नहीं दे सकता। खासकर तब, जब राष्ट्रीय एकीकरण और धर्मनिरपेक्ष अवधारणाएं सबसे आगे होनी चाहिए। 'वर्दीधारी बल' जो बेहतर अनुशासन को दर्शाता है, वह हिंदू, मुस्लिम और इस तरह के सांप्रदायिक दिखावे को नहीं अपना सकता है। न्यायालय को सामान्य ज्ञान दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और व्यावहारिक आवश्यकताओं के विचारों से प्रेरित होना चाहिए" (एडिलेड कंपनी बनाम कॉमन वेल्थ, 67 सीएलआर 116 - लैथम सी.जे.) सांप्रदायिक दंगों जैसी स्थितियों में उनके धार्मिक संप्रदायों के संदर्भ में पुलिस बल की पहचान पुलिसिंग के उद्देश्य को ही विफल कर देगी।"

    केस टाइटल: ज़ाहिरुद्दीन शम्सुद्दीन बेदादे बनाम महाराष्ट्र राज्य मोहे मंत्रालय अपने सचिव सी.ए. नंबर 000435 / 2015

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