क्या ट्रायल कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने और जमानत खारिज करने के बाद गिरफ्तारी की वैधता की जांच की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत सोरेन से पूछा
Shahadat
21 May 2024 2:51 PM IST
प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (21 मई) को पूछा कि क्या ट्रायल कोर्ट द्वारा ED की शिकायत पर संज्ञान लेने के बाद गिरफ्तारी की वैधता की जांच की जा सकती है और सोरेन की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी।
लगभग डेढ़ घंटे तक दलीलें सुनने के बाद जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अवकाश पीठ ने मामले को आगे की बहस के लिए बुधवार को सूचीबद्ध किया।
सोरेन की ओर से उठाया गया प्राथमिक तर्क यह था कि भूमि पर कथित अवैध कब्ज़ा धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) के तहत अनुसूचित अपराध नहीं है। इसलिए ED अधिकारी PMLA Act की धारा 19 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकते थे।
सोरेन के तर्क
शुरुआत में सोरेन की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि विषय भूमि 8.86 एकड़ आदिवासी भूमि है, जिसे छोटा नागपुर किरायेदारी अधिनियम के तहत हस्तांतरित नहीं किया जा सकता। उन्होंने जोर देकर कहा कि सोरेन का जमीन से कोई लेना-देना नहीं है।
आगे बढ़ते हुए सिब्बल ने दोहराया कि ED का आरोप है कि 2009-10 में सोरेन ने विषयगत भूमि पर जबरन कब्जा कर लिया। अप्रैल 2023 में शिकायत दर्ज की गई, लेकिन 2009-10 से अप्रैल 2023 के बीच किसी ने कोई शिकायत नहीं की। सिब्बल ने दावा किया कि जमीन में बिजली कनेक्शन एक व्यक्ति के नाम पर है, जो किसी अन्य व्यक्ति से पंजीकृत पट्टे के तहत जमीन पर खेती कर रहा है।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि ED भूमि के निपटान के संबंध में जांच एजेंसी नहीं है, क्योंकि यह पूरी तरह से सिविल मामला है। जहां तक ED की इस दलील का सवाल है कि अगर उसने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो सोरेन का नाम भूमि रजिस्टर में जोड़ा गया होता।
सिब्बल ने पूछा,
"उन्हें कैसे पता कि उनका नाम जोड़ा जाएगा?"
ED ने प्रारंभिक आपत्तियां उठाईं
ED की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि सोरेन का मामला कई आधारों पर अरविंद केजरीवाल के मामले से अलग है:
1. सोरेन को चुनाव की घोषणा से काफी पहले जनवरी में गिरफ्तार किया गया था।
2. विशेष न्यायालय ने शिकायत का संज्ञान लिया और प्रक्रिया जारी की, जिसका अर्थ है कि प्रथम दृष्टया मामले के संबंध में न्यायिक संतुष्टि है।
3. सोरेन की धारा 45 PMLA Act के तहत नियमित जमानत अर्जी विशेष अदालत ने खारिज कर दी थी, जिसे उन्होंने चुनौती नहीं दी है।
एएसजी ने कहा कि केवल चुनाव के आधार पर अंतरिम जमानत देने से "पेंडोरा बॉक्स" खुल जाएगा, क्योंकि जेल में बंद कई अन्य राजनेता भी इस तरह के आदेश का फायदा उठाने की कोशिश करेंगे। सोरेन गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए जमानत की मांग भी कर रहे थे, जो "एक समय में दो घोड़ों की सवारी" के समान है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पार्टियों द्वारा एक साथ समानांतर उपचार का सहारा लेने की प्रथा की निंदा की है।
बेंच ने पूछा,
जब विशेष अदालत ने संज्ञान ले लिया हो और जमानत से इनकार किया गया हो तो क्या रिट अदालत हस्तक्षेप कर सकती है?
सोरेन की ओर से दलीलें सुनने पर पीठ ने पूछा कि क्या गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली रिट याचिका तब बरकरार रखी जा सकती है, जब विशेष अदालत ने संज्ञान ले लिया हो और जब उसकी नियमित जमानत अर्जी खारिज कर दी गई हो।
जवाब में सिब्बल ने कहा कि जमीन हड़पने का आरोप PMLA Act के तहत अनुसूचित अपराध नहीं है। जहां तक जस्टिस दत्ता के इस सवाल का सवाल है कि क्या बाद के न्यायिक आदेशों से गिरफ्तारी की छूट नहीं मिलेगी, सिब्बल ने नकारात्मक जवाब दिया। उन्होंने प्रबीर पुरकायस्थ बनाम भारत संघ के हालिया फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि यदि प्रारंभिक गिरफ्तारी अमान्य है तो बाद के रिमांड आदेश इसे मान्य नहीं करेंगे। हालांकि, जस्टिस दत्ता ने कहा कि मामलों में कुछ तथ्यात्मक असमानताएं थीं।
कोर्ट ने आगे कहा,
"यहां, संज्ञान लिया गया, जिसका मतलब है कि प्रथम दृष्टया मामला है। यहां आपका मामला यह है कि आपको धारा 19 के तहत गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह मानने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि आप दोषी हैं। जब न्यायालय ने संज्ञान लिया है, यह उस तर्क को प्रभावित करेगा।"
जस्टिस दत्ता ने आगे कहा कि प्रबीर पुरकायस्थ मामले में, गिरफ्तारी को इस आधार पर अमान्य कर दिया गया था कि गिरफ्तारी के आधार प्रदान नहीं किए गए।
जस्टिस दत्ता ने पूछा,
"जब कोई न्यायिक आदेश संज्ञान ले रहा है, जिसे चुनौती नहीं दी गई है तो क्या कोई रिट अदालत उस पर गौर कर सकती है?"
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि जमानत याचिका हाईकोर्ट की अनुमति के बिना दायर की गई, जिसने गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
सिब्बल ने जोर देकर कहा कि PMLA Act के तहत कोई अपराध नहीं बनता, क्योंकि जमीन पर अवैध कब्जा करना PMLA Act के तहत अनुसूचित अपराध नहीं है। इसलिए प्रथम दृष्टया PMLA Act की धारा 19 लागू करने का कोई आधार नहीं है।
उन्होंने कहा,
यह गिरफ्तारी की तारीख, 31 जनवरी, 2024 को मौजूद सामग्रियों और घटनाक्रम के आधार पर निर्धारित किया जाना है।
सिब्बल ने तर्क दिया,
"मैं संवैधानिक कमजोरी को उठा रहा हूं, क्योंकि यह स्वतंत्रता से संबंधित है। कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता को छीन रहा है। यहां कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया धारा 19 है। यदि 19 का उल्लंघन किया जाता है तो रिट अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।"
सीनियर वकील ने आगे तर्क दिया कि यह मानना "कानून का अनुचित प्रस्ताव" होगा कि कोई व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी को केवल इसलिए असंवैधानिक मानकर चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि उसने इस बीच जमानत के लिए आवेदन किया। विजय मदनलाल चौधरी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब तक कोई अनुसूचित अपराध न हो, अपराध की आय नहीं हो सकती।
उन्होंने विजय मदनलाल चौधरी के हवाले से कहा,
केवल ऐसी संपत्तियां जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अनुसूचित अपराध से संबंधित आपराधिक गतिविधियों से प्राप्त हुई, उन्हें "अपराध की आय" माना जा सकता है।
उन्होंने दोहराया कि संपत्ति पर अवैध कब्ज़ा या जबरन कब्ज़ा कोई अनुसूचित अपराध नहीं है।
सिब्बल ने प्रस्तुत किया कि सोरेन जमानत के लिए आवेदन करने के लिए बाध्य है, क्योंकि हाईकोर्ट गिरफ्तारी की चुनौती पर फैसला सुनाने में देरी कर रहा था (बहस 29 फरवरी को पूरी हो गई और फैसला 3 मई को सुनाया गया)।
इस बिंदु पर जस्टिस दत्ता ने पूछा कि क्या एसएफआईओ बनाम राहुल मोदी (2019) में यह तर्क कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में रिमांड आदेश रद्द नहीं किया जा सकता, वर्तमान मामले में लागू नहीं होगा। सिब्बल ने बताया कि झारखंड हाईकोर्ट ने स्वयं राहुल मोदी को इस आधार पर अलग कर दिया कि वर्तमान याचिका बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका नहीं थी।
जब पीठ ने दोहराया कि उसे इस बात से संतुष्ट होना होगा कि न्यायालय बाद के न्यायिक घटनाक्रमों के बावजूद गिरफ्तारी में हस्तक्षेप कर सकता है तो सिब्बल ने इस पहलू पर ध्यान देने के लिए कल तक का समय मांगा। तदनुसार, याचिका सोमवार को सूचीबद्ध की गई थी।
जब सिब्बल ने जोर देकर कहा कि मामला "पूर्वदृष्टया मनगढ़ंत" है, तो जस्टिस दत्ता ने कहा,
"गुण-दोष के आधार पर यह अच्छा मामला है। लेकिन हमें इसे अलग नजरिए से देखना होगा।
केस टाइटल: हेमंत सोरेन बनाम प्रवर्तन निदेशालय और अन्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 6611/2024