क्या DRI अधिकारी कस्टम एक्ट के तहत शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कस्टम विभाग की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

Shahadat

19 Sep 2024 8:22 AM GMT

  • क्या DRI अधिकारी कस्टम एक्ट के तहत शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कस्टम विभाग की पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रखा कि क्या राजस्व खुफिया निदेशालय को सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 (Custom Act) के तहत शक्तियां प्रदान की जा सकती हैं।

    कोर्ट ने कैनन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम कस्टम आयुक्त मामले में 2021 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कस्टम विभाग द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की, जिसमें कहा गया कि राजस्व खुफिया निदेशालय के अधिकारियों के पास कस्टम एक्ट, 1962 के तहत शक्तियां नहीं हैं।

    कैनन इंडिया मामले में तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की तीन जजों की बेंच ने माना था कि कस्टम एक्ट, 1962 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार द्वारा कार्यों का कार्यभार सौंपे जाने के अभाव में, राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) के किसी अधिकारी को अधिनियम के तहत कार्यों का प्रयोग करने का अधिकार नहीं होगा। साथ ही न्यायालय ने माना था कि एक्ट की धारा 28 के तहत कारण बताओ नोटिस केवल 'उचित अधिकारी' द्वारा जारी किया जा सकता है, अर्थात वह अधिकारी जिसने पहले स्थान पर मूल्यांकन किया, न कि समवर्ती क्षेत्राधिकार वाले किसी अन्य अधिकारी द्वारा।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने पुनर्विचार याचिका में दलीलें विस्तार से सुनीं। कस्टम आयुक्त का प्रतिनिधित्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एन वेंकटरमन ने किया। सीनियर एडवोकेट अरशद हिदायतुल्ला, अरविंद दातार, एस नंदकुमार, नचिकेता जोशी, पुरवीश मलकान ने विभिन्न पक्षों के लिए दलीलें दीं।

    प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व एडवोकेट वी. लक्ष्मीकुमारन, सीनियर एडवोकेट विक्रम चौधरी, आर.के. सांघी ने किया।

    एएसजी ने तर्क दिया कि DRI अधिकारी कस्टम अधिकारियों की शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं। 1977 से वे वित्त मंत्रालय का हिस्सा रहे हैं और अधिकारी कानून के तहत अधिकारियों की एक श्रेणी बनाते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि रिकॉर्ड पर कम से कम छह स्पष्ट त्रुटियों से निर्णय प्रभावित हुआ है।

    प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि पुनर्विचार के लिए कोई मामला नहीं बनता है। अलग दृष्टिकोण "स्पष्ट त्रुटि" नहीं है, जो पुनर्विचार क्षेत्राधिकार के प्रयोग को उचित ठहराए।

    कैनन इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारत में कई हाईकोर्ट और न्यायाधिकरणों ने अधिनियम की धारा 28 के तहत जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के आधार पर DRI के अधिकारियों द्वारा की गई कार्यवाही को अमान्य करार दिया। नतीजतन, कैनन इंडिया के आधार पर पारित आदेशों के खिलाफ कई अपीलें सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।

    संबंधित मामले में भारत संघ ने मेसर्स गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड बनाम भारत संघ (2021) में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की, जहां कैनन इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हाईकोर्ट ने एक्ट की धारा 28 के तहत राजस्व खुफिया निदेशालय के अतिरिक्त महानिदेशक द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को अमान्य माना था।

    उस मामले में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी), DRI, कस्टम विभाग के अधिकारी हैं। इसलिए एक्ट की धारा 6 के प्रावधान, जिसके तहत केंद्र सरकार द्वारा कार्यों को सौंपे जाने की आवश्यकता है, प्रासंगिक नहीं हैं, क्योंकि एडीजी को अधिनियम की धारा 2 (34) के तहत केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और कस्टम बोर्ड (CBIT&C) द्वारा अधिकृत किया गया।

    उन्होंने तर्क दिया कि धारा 28(11) के प्रावधानों के तहत एडीजी, DRI को एक्ट की धारा 2(34) की आवश्यकता के बावजूद 'उचित अधिकारी' माना जाएगा। साथ ही यह भी प्रस्तुत किया गया कि कैनन इंडिया में धारा 28(11) विचाराधीन नहीं थी।

    केस टाइटल: कस्टम आयुक्त बनाम मेसर्स कैनन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड | आर.पी.(सी) नंबर 000400 - / 2021

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