क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
Shahadat
13 Feb 2024 10:15 AM IST
अपनी तलाकशुदा पत्नी को अंतरिम गुजारा भत्ता देने के निर्देश के खिलाफ मुस्लिम व्यक्ति की याचिका में सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर विचार करने के लिए तैयार है कि क्या मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका बरकरार रखने की हकदार है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने हाल ही में फैमिली कोर्ट के आदेश से निकले मामले की सुनवाई की, जिसमें मुस्लिम महिला द्वारा दायर सीआरपीसी की धारा 125 याचिका में याचिकाकर्ता (उसके पति) को 20,000 रुपये प्रति महीना अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। इस आदेश को इस आधार पर तेलंगाना हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई कि पक्षकारों ने 2017 में व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार तलाक ले लिया था। इस आशय का तलाक प्रमाण पत्र है, लेकिन फैमिली कोर्ट ने उस पर विचार नहीं किया।
हालांकि, हाईकोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण का निर्देश रद्द नहीं किया। इसमें शामिल तथ्यों और कानून के कई सवालों को ध्यान में रखते हुए याचिका की तारीख से भुगतान की जाने वाली राशि को 20,000 रुपये से घटाकर 10,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया। याचिकाकर्ता को बकाया राशि का पचास प्रतिशत 24 जनवरी, 2024 तक और शेष 13 मार्च, 2024 तक भुगतान करने का आदेश दिया गया। इसके अलावा, फैमिली कोर्ट को 6 महीने के भीतर मुख्य मामले को निपटाने का प्रयास करने के लिए कहा गया।
व्यथित याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दलील दी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है और उसे मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 अधिनियम के प्रावधानों के तहत आगे बढ़ना होगा। उनका आग्रह है कि जहां तक भरण-पोषण में राहत का सवाल है, 1986 का अधिनियम मुस्लिम महिलाओं के लिए अधिक फायदेमंद है।
तथ्यों के आधार पर याचिकाकर्ता का दावा है कि उसने अपनी तलाकशुदा पत्नी को इद्दत अवधि के दौरान भरण-पोषण के रूप में 15,000 रुपये का भुगतान किया। उन्होंने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट में जाने की अपनी तलाकशुदा पत्नी की कार्रवाई को भी इस आधार पर चुनौती दी कि दोनों ने बाद की धारा 5 के अनुसार, 1986 अधिनियम के मुकाबले सीआरपीसी प्रावधानों को प्राथमिकता देते हुए कोई हलफनामा प्रस्तुत नहीं किया।
प्रारंभिक प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने सीनियर गौरव अग्रवाल को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया और मामले को 19 फरवरी, 2024 को विचार के लिए सूचीबद्ध किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट
शकीला खातून बनाम यूपी राज्य में और अन्य (2023) में एकल न्यायाधीश ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत इद्दत के बाद की अवधि के लिए और अपने पूरे जीवन के लिए भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है, जब तक कि वह किसी और के साथ विवाह जैसे कारणों से अयोग्य न हो।
रजिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में (2022) एकल न्यायाधीश ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत अवधि समाप्त होने के बाद भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार होगी, जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं करती।
अर्शिया रिज़वी और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2022) मामले में एकल न्यायाधीश ने माना कि मुस्लिम महिला अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।
केरल हाईकोर्ट
नौशाद फ्लोरिश बनाम अखिला नौशाद और अन्य में (2023) एकल न्यायाधीश ने माना कि मुस्लिम पत्नी, जिसने 'खुला' कहकर तलाक लिया, वह खुला लागू करने के बाद सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती।
मुजीब रहमान बनाम थस्लीना और अन्य में (2022), एकल न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है जब तक कि उसे 1986 अधिनियम की धारा 3 के तहत राहत नहीं मिल जाती। यह जोड़ा गया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पारित आदेश तब तक लागू रहेगा, जब तक अधिनियम की धारा 3 के तहत देय राशि का भुगतान नहीं किया जाता।