Bihar SIR : ECI ने सुप्रीम कोर्ट में कहा: 1 सितंबर की समय-सीमा के बाद भी दायर दावों/आपत्तियों पर विचार किया जाएगा

Shahadat

1 Sept 2025 2:43 PM IST

  • Bihar SIR : ECI ने सुप्रीम कोर्ट में कहा: 1 सितंबर की समय-सीमा के बाद भी दायर दावों/आपत्तियों पर विचार किया जाएगा

    बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले में भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मसौदा मतदाता सूची के संबंध में दावे/आपत्तियां 1 सितंबर की समय-सीमा के बाद भी दायर की जा सकती हैं। नामांकन की अंतिम तिथि से पहले दायर किए गए ऐसे सभी दावों/आपत्तियों पर विचार किया जाएगा।

    इस दलील पर गौर करते हुए न्यायालय ने 1 सितंबर की समय-सीमा बढ़ाने का कोई आदेश नहीं दिया।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ राजनीतिक दलों द्वारा दायर उन आवेदनों पर विचार कर रही थी, जिनमें समय सीमा को दो सप्ताह बढ़ाने की मांग की गई।

    खंडपीठ ने ECI की दलील दर्ज की कि दावे/आपत्तियां समय-सीमा (1 सितंबर) के बाद भी प्रस्तुत की जा सकती हैं। सूची को अंतिम रूप दिए जाने के बाद उन पर विचार किया जाएगा। ECI ने कहा कि यह प्रक्रिया नामांकन की अंतिम तिथि तक जारी रहेगी और सभी प्रविष्टियाँ/छूट अंतिम सूची में शामिल कर ली जाएंगी, जिसे न्यायालय ने दर्ज कर लिया।

    न्यायालय ने टिप्पणी की:

    "समय विस्तार के संबंध में (ECI द्वारा प्रस्तुत) नोट में कहा गया कि 1 सितंबर के बाद दावे/आपत्ति या सुधार दाखिल करने पर रोक नहीं है। यह कहा गया कि दावे/आपत्ति/सुधार समय सीमा के बाद यानी 1 सितंबर के बाद भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। सूची को अंतिम रूप दिए जाने के बाद उन पर विचार किया जाएगा। यह प्रक्रिया नामांकन की अंतिम तिथि तक जारी रहेगी और सभी प्रविष्टियाँ/छूट अंतिम सूची में शामिल कर ली जाएंगी। इस दृष्टिकोण के आलोक में दावे/आपत्ति/सुधार दाखिल करने का काम जारी रखा जाए। इस बीच राजनीतिक दल/याचिकाकर्ता नोट के जवाब में अपने हलफनामे प्रस्तुत कर सकते हैं।"

    न्यायालय ने विधिक सेवा प्राधिकरण के अर्ध-विधिक स्वयंसेवकों को मतदाताओं की सहायता करने का निर्देश दिया

    न्यायालय ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष से अनुरोध किया कि वे कल (मंगलवार) दोपहर से पहले सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों को अर्ध-विधिक स्वयंसेवकों को उनके नाम और मोबाइल नंबर सहित नियुक्त/अधिसूचित करने के निर्देश जारी करें, जो व्यक्तिगत मतदाताओं और राजनीतिक दलों को दावे, आपत्तियां या सुधार ऑनलाइन प्रस्तुत करने में सहायता करेंगे। इसके बाद प्रत्येक अर्ध-विधिक स्वयंसेवक संबंधित जिला जज को एक गोपनीय रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। न्यायालय ने आदेश दिया कि अर्ध-विधिक स्वयंसेवकों से एकत्रित की गई यह जानकारी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के स्तर पर एकत्रित की जा सकती है।

    सुनवाई के दौरान, ECI की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि राजनीतिक दल मसौदा सूची से मतदाताओं के नाम हटाने की मांग कर रहे हैं, न कि उन्हें शामिल करने का दावा, जिसे उन्होंने "बहुत अजीब" बताया। राजद द्वारा समय-सीमा बढ़ाने की मांग के आवेदन के संबंध में द्विवेदी ने कहा कि उनकी एकमात्र शिकायत यह है कि उनके द्वारा दायर की गई आपत्तियां उनके नामों में नहीं दिखाई गईं। उन्होंने बताया कि 7.24 करोड़ मतदाताओं में से 99.5% ने अपने फॉर्म दाखिल कर दिए। 22 अगस्त को न्यायालय के आदेश के बाद ड्राफ्ट से बाहर किए गए 65 लाख मतदाताओं में से केवल 33,326 (व्यक्तिगत) और 25 दावे (पार्टियों के माध्यम से) ही शामिल किए जाने के लिए प्रस्तुत किए गए। उन्होंने आगे बताया कि 1,34,738 आपत्तियां बाहर किए जाने के लिए दायर की गईं।

    वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि चुनाव आयोग के अधिकारी अपने ही नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। एडवोकेट निज़ाम पाशा ने दावा किया कि बीएलओ फॉर्म स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं। राजद की ओर से सीनियर एडवोकेट शोएब आलम ने कहा कि न्यायालय द्वारा 22 अगस्त तक अपने आदेश के अनुसार आधार के उपयोग की अनुमति देने के बाद समय-सीमा से केवल नौ दिन पहले ही रह गए हैं।

    न्यायालय राजद सांसद मनोज कुमार झा और बिहार के विधायक अख्तरुल ईमान सहित राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों द्वारा दायर आवेदनों पर विचार कर रहा था, जिनमें 1 सितंबर की समय सीमा बढ़ाने की मांग की गई। पिछले सप्ताह इस मामले को तत्काल सुनवाई के लिए भेजा गया, जब न्यायालय को बताया गया कि उसके पिछले आदेश से तीन सप्ताह पहले 80,000 दावे दायर किए गए। उसके बाद के सप्ताह में 95,000 दावे दायर किए गए।

    अपने पिछले आदेश में न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह लगभग 65 लाख बहिष्कृत मतदाताओं को अपने आधार कार्ड के साथ ऑनलाइन माध्यम से शामिल होने के लिए आवेदन जमा करने की अनुमति दे। मामले को 8 सितंबर के लिए स्थगित करते हुए न्यायालय ने उक्त अवसर पर पक्षकारों को मौखिक रूप से आश्वासन दिया कि समय सीमा बढ़ाने के अनुरोध पर बाद में विचार किया जा सकता है।

    इससे पहले, 14 अगस्त को न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट के साथ-साथ जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर बहिष्कृत 65 लाख मतदाताओं के नाम, उनके बहिष्करण के कारणों सहित, प्रकाशित करे। यह जानकारी EPIC-खोज योग्य प्रारूप में प्रदर्शित की जानी थी।

    अब तक के घटनाक्रम

    28 जुलाई को, न्यायालय ने ECI को 1 अगस्त को बिहार के लिए मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित करने से रोकने से इनकार कर दिया। हालांकि, उसने मौखिक रूप से ECI से कहा कि वह कम से कम आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र (EPIC) पर विचार करे। जस्टिस कांत ने चुनाव आयोग पर ज़ोर दिया कि "सामूहिक रूप से बहिष्कृत" करने के बजाय "सामूहिक रूप से समावेशन" होना चाहिए।

    29 जुलाई को, न्यायालय को बताया गया कि मसौदा मतदाता सूची से 65 लाख लोगों के बाहर होने की संभावना है। जवाब में न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा कि यदि बड़े पैमाने पर बहिष्करण होता है तो वह हस्तक्षेप करेगा।

    6 अगस्त को (मसौदा सूची प्रकाशित होने के बाद), ADR ने एक आवेदन दायर कर आरोप लगाया कि ECI ने छूटे हुए 65 लाख मतदाताओं का विवरण सार्वजनिक नहीं किया। उसने आगे दावा किया कि सूची में शामिल कुछ मतदाताओं के मामले में BLO ने नामों की 'सिफारिश' नहीं की और बहिष्करण के कारण भी नहीं बताए गए। इसके बाद ECI ने हलफनामा दायर किया, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ यह भी कहा गया कि (i) लागू नियमों के तहत उन व्यक्तियों की अलग सूची प्रकाशित करना उसके लिए बाध्य नहीं है, जिन्हें मसौदा मतदाता सूची में शामिल नहीं किया गया, (ii) नियम उसे मसौदा मतदाता सूची में किसी भी व्यक्ति को शामिल न करने के कारण बताने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।

    12 अगस्त को, याचिकाकर्ताओं ने बहस शुरू की। अन्य बातों के साथ-साथ यह भी तर्क दिया गया कि बिहार SIR अवैध है। नागरिकता साबित करने का दायित्व मतदाताओं/निर्वाचकों पर नहीं डाला जा सकता। सुनवाई का एक प्रमुख पहलू अदालत में दो व्यक्तियों की पेशी थी, जिन्हें SIR के बाद बिहार की मसौदा मतदाता सूची में ECI द्वारा कथित रूप से मृत घोषित कर दिया गया। हालांकि, खंडपीठ का मानना ​​था कि यह 'अनजाने में हुई त्रुटि' के कारण हो सकता है, जिसे सुधारा जा सकता है।

    13 अगस्त को, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) का हवाला देते हुए खंडपीठ ने दोनों पक्षों से पूछा कि क्या चुनाव आयोग के पास बिहार SIR जैसी प्रक्रिया को "उचित तरीके से" संचालित करने का कोई अधिकार नहीं है। जहां तक पश्चिम बंगाल SIR शुरू करने का मुद्दा उठाया गया, खंडपीठ ने कहा कि इस पर बाद में विचार किया जाएगा। इस आरोप के बाद कि ECI ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची में खोज सुविधा को हटा दिया, खंडपीठ ने दोनों पक्षों से यह बताने को कहा कि क्या मसौदा सूची 1960 के नियमों के अनुसार निर्वाचक पंजीकरण कार्यालय में प्रकाशित की गई।

    Case Title: ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS AND ORS. Versus ELECTION COMMISSION OF INDIA, W.P.(C) No. 640/2025 (and connected cases)

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