भिक्षुक गृहों में मानवीय सुविधाएँ अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

Praveen Mishra

15 Sept 2025 9:48 AM IST

  • भिक्षुक गृहों में मानवीय सुविधाएँ अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

    सुप्रीम कोर्ट ने 12 सितम्बर को आदेश दिया कि देशभर के सभी भिक्षुक गृहों (Beggars' Homes) को यह सुनिश्चित करना होगा कि वहाँ हुई मौतों का विस्तृत डेटा संजोया जाए—विशेषकर वे मौतें जो लापरवाही, बुनियादी सुविधाओं की कमी या समय पर चिकित्सा न मिलने के कारण हुई हों। ऐसे मामलों में संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश मृतक के परिजनों को 'उचित मुआवज़ा' देंगे। जहाँ आवश्यक हो, जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही भी शुरू की जा सकती है।

    यह आदेश उस मामले से जुड़ा है, जो दिल्ली के लम्पुर भिक्षुक गृह (साल 2000) की एक गंभीर और दुर्भाग्यपूर्ण घटना से उत्पन्न हुआ था। वहाँ पीने और खाना बनाने के पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मिलावट से हैजा और गैस्ट्रोएन्टेराइटिस का प्रकोप फैल गया था। इसके चलते कई मौतें हुईं और बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़े। इस घटना ने संस्थान की स्वच्छता, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं की भारी लापरवाही को उजागर कर दिया।

    अदालत ने कहा कि भिक्षुक गृहों की भूमिका को 'सामाजिक नियंत्रण' की बजाय 'सामाजिक न्याय' के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मानवीय परिस्थितियों की गारंटी न देना केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त गरिमा-पूर्ण जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए सभी भिक्षुक गृहों में सुधार और मानक बनाए रखने के लिए व्यापक निर्देश जारी किए जाते हैं।

    जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने पूरे देश में भिक्षुक गृहों के लिए कई सुधारात्मक आदेश पारित किए, जिनमें स्वच्छता, बुनियादी ढांचा, खाद्य सुरक्षा, पुनर्वास और व्यावसायिक प्रशिक्षण शामिल हैं। साथ ही निर्देश दिया कि सभी राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों में एक निगरानी समिति (Monitoring Committee) गठित की जाए, जिसमें समाज कल्याण विभाग, स्वास्थ्य विभाग और स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हों। यह समिति बीमारियों, मौतों और सुधारात्मक कार्रवाइयों का रिकॉर्ड रखेगी और रिपोर्ट पेश करेगी।

    सुप्रीम कोर्ट निर्देश:

    1. स्वच्छता और सुविधाएँ: सभी भिक्षुक गृहों में साफ-सफाई, सुरक्षित पेयजल, पौष्टिक भोजन और स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
    2. पुनर्वास और प्रशिक्षण: कैदियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण और पुनर्वास कार्यक्रमों से जोड़ना ताकि समाज में दोबारा शामिल हो सकें।
    3. कानूनी सहायता: कैदियों को उनकी कानूनी अधिकारों की जानकारी दी जाए। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण पैनल वकील नियुक्त करें, जो हर तीन महीने में भिक्षुक गृहों का दौरा कर मुफ्त कानूनी सहायता दें।
    4. महिला और बच्चों की सुरक्षा: महिलाओं और बच्चों के लिए अलग सुरक्षित आवास, देखभाल, शिक्षा और परामर्श की सुविधा दी जाए। बच्चों को भिक्षुक गृहों में नहीं रखा जाएगा, बल्कि JJ Act, 2015 के तहत बाल संरक्षण संस्थानों को भेजा जाएगा।
    5. जवाबदेही और मुआवज़ा:
      • हर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश निगरानी समिति बनाएगा और वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करेगा।
      • यदि किसी मौत का कारण लापरवाही या इलाज में देरी पाई जाती है तो—
        (a) मृतक के परिजनों को उचित मुआवज़ा दिया जाएगा।
        (b) दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय व आपराधिक कार्रवाई की जाएगी।
    6. डिजिटल रिकॉर्ड: सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को सभी कैदियों का डिजिटल डेटाबेस बनाए रखना होगा, जिसमें प्रवेश, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण, रिहाई और फॉलो-अप का विवरण दर्ज हो।
    7. समयसीमा: उपरोक्त सभी आदेशों का पालन छह महीने के भीतर किया जाए।
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