Arvind Kejriwal Bail : ED की स्थगन याचिका पर हाईकोर्ट का आदेश सुरक्षित रखना 'असामान्य'- सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
24 Jun 2024 1:49 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (24 जून) को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि अरविंद केजरीवाल की जमानत के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) की स्थगन याचिका पर आदेश सुरक्षित रखने का दिल्ली हाईकोर्ट का तरीका थोड़ा असामान्य है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि सामान्य तौर पर सुनवाई के तुरंत बाद स्थगन आदेश मौके पर ही पारित किए जाते हैं। उन्हें सुरक्षित नहीं रखा जाता।
जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एसवीएन भट्टी की वेकेशन बेंच केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा 21 जून को पारित किए गए उस आदेश के खिलाफ सुनवाई की गई, जिसमें उन्हें शराब नीति मामले में जमानत देने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाई गई।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने केजरीवाल की जमानत पर अंतरिम रोक लगाई, जबकि ED की स्थगन याचिका पर अंतिम आदेश सुरक्षित रखा। केजरीवाल की याचिका पर आज कोई आदेश पारित करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के अंतिम आदेश की प्रतीक्षा के लिए इसे 26 जून तक के लिए स्थगित कर दिया। न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले में "पूर्व-निर्णय" नहीं लेना चाहता, जबकि हाईकोर्ट के आदेश का इंतजार है।
कार्यवाही के दौरान, जस्टिस मिश्रा ने स्थगन आवेदन में आदेश सुरक्षित रखने को "थोड़ा असामान्य" बताया।
उन्होंने कहा,
"आमतौर पर स्थगन आवेदनों पर आदेश सुरक्षित नहीं रखे जाते। वे सुनवाई के दौरान ही पारित किए जाते हैं। इसलिए यह थोड़ा असामान्य है, हम इसे अगले दिन पारित करेंगे"
सुनवाई की शुरुआत में केजरीवाल के लिए सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पहले दिन जमानत पर रोक लगाने की प्रक्रिया अभूतपूर्व है। दूसरे, उन्होंने कहा कि सुविधा का संतुलन याचिकाकर्ता के पक्ष में है।
उन्होंने कहा,
"मान लीजिए कि हाईकोर्ट ED की अपील खारिज कर देता है तो जज उस समय की भरपाई कैसे करेंगे, जो उन्होंने (केजरीवाल) खो दिया?"
जस्टिस मिश्रा ने जब कहा कि हाईकोर्ट का आदेश शीघ्र ही आने की संभावना है तो सिंघवी ने जवाब दिया,
"मैं अंतरिम रूप से क्यों मुक्त नहीं हो सकता। मैं भागने का जोखिम नहीं उठा रहा हूँं और मेरे पक्ष में निर्णय है।"
इसके बावजूद, न्यायालय ने जोर देकर कहा कि यदि कोई आदेश पारित किया जाता है तो यह "मुद्दे पर पूर्व-निर्णय" के बराबर होगा, विशेष रूप से यह देखते हुए कि आदेश हाईकोर्ट द्वारा पारित किया गया।
सीनियर एडवोकेट विक्रम चौधरी के बाद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने वाले 10 मई के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया। उन्होंने 10 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर प्रकाश डाला कि केजरीवाल दिल्ली के सीएम हैं, उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, वे समाज के लिए कोई खतरा नहीं हैं, कि जांच अगस्त 2022 से लंबित है और उन्हें मार्च 2024 में ही गिरफ्तार किया गया।
इसके पूरक के रूप में सिंघवी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि एक बार जमानत दिए जाने के बाद विशेष कारणों के बिना उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
चौधरी और सिंघवी ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि जैसे ही ED ने उनकी याचिका का उल्लेख किया, हाईकोर्ट ने सुबह 10.30 बजे ही जमानत आदेश पर रोक लगाने का मौखिक आदेश पारित कर दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ED की याचिका जमानत आदेश अपलोड होने से पहले ही दायर की गई और हाईकोर्ट ने उसी दिन तत्काल सुनवाई की अनुमति दे दी।
इस पर, जस्टिस मिश्रा ने पूछा कि क्या PMLA Act की धारा 45 में जमानत की दोहरी शर्तें जमानत आदेश में दर्ज की गईं।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने नकारात्मक जवाब दिया।
इस संदर्भ में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा,
"माननीय न्यायालय दो दिनों के लिए वेकेशन जज है। संतुष्टि के लिए न्यायालय को मामले के रिकॉर्ड को देखना होगा। न्यायालय ने यह कहकर शुरुआत की कि यह "हाई प्रोफाइल" मामला है। न्यायालय ने आदेश में दर्ज किया "मामले के रिकॉर्ड को देखने के लिए किसके पास समय है?"
हालांकि, जब जस्टिस मिश्रा ने हाईकोर्ट द्वारा आदेश सुनाए जाने के बाद मामले को सूचीबद्ध करने का सुझाव दिया तो सिंघवी ने स्पष्ट रूप से तर्क दिया,
"यदि हाईकोर्ट आदेश को देखे बिना इसे रोक सकता है तो आप हाईकोर्ट के आदेश को क्यों नहीं रोक सकते।"
इसके जवाब में जस्टिस मिश्रा ने कहा,
"यदि, आपके अनुसार, हाईकोर्ट ने कोई गलती की है तो हमें अपनी ओर से इसे क्यों दोहराना चाहिए?"
अंततः न्यायालय ने मामले की योग्यता पर कोई टिप्पणी किए बिना मामले को परसों के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
न्यायालय में सुनाया गया आदेश इस प्रकार है:
"इस एसएलपी में आरोपित आदेश ऐसा आदेश है, जिसके द्वारा पक्षकारों के वकील की सुनवाई के पश्चात स्थगन आवेदन पर आदेश सुरक्षित रखा गया तथा तब तक जमानत आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई। स्थगन आदेश के अवलोकन से पता चलता है कि पक्षकारों को 24 जून, 2024 तक संक्षिप्त प्रस्तुतिकरण दाखिल करने का अवसर दिया गया... एएसजी ने प्रस्तुत किया कि स्थगन आवेदन पर आदेश शीघ्र ही पारित किया जाएगा तथा यह उचित होगा कि न्यायालय मामले को स्थगित कर दे ताकि आदेश को देखने का अवसर मिल सके।"
20 जून को ट्रायल जज ने प्रथम दृष्टया यह राय बनाने के पश्चात कि वे पद के दोषी नहीं हैं, केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी। अगले दिन प्रवर्तन निदेशालय ने जमानत आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में तत्काल याचिका दायर की। हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने उसी दिन मामले की सुनवाई की। दोनों पक्षों की विस्तृत सुनवाई के बाद एकल पीठ ने जमानत आदेश पर रोक लगाने के लिए ED की अर्जी पर आदेश सुरक्षित रख लिया। हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि आदेश की घोषणा होने तक जमानत आदेश का क्रियान्वयन स्थगित रहेगा।
हाईकोर्ट के समक्ष एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया कि जमानत आदेश "विकृत" है, क्योंकि यह धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) की धारा 45 के अधिदेश के विपरीत है। एएसजी ने यह भी तर्क दिया कि ट्रायल जज ने ED को मामला पेश करने का "पूरा अवसर" नहीं दिया और जोर दिया कि उन्हें अपनी दलीलें संक्षिप्त रखनी चाहिए। उन्होंने शिकायत की कि हालांकि केजरीवाल के वकीलों ने जवाब में नए बिंदुओं पर बहस की, लेकिन ED को उनका खंडन करने का अवसर नहीं दिया गया।
इसके विपरीत, केजरीवाल के सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रस्तुत किया कि सुनवाई पांच घंटे तक चली, जिसमें से ED ने 3.45 घंटे का समय लिया। इसके आधार पर उन्होंने पूछा कि ED को अपना मामला पेश करने का अवसर क्यों नहीं दिया गया। इस बात पर जोर देते हुए कि जमानत आदेश पर रोक लगाना जमानत रद्द करने के बराबर होगा, सिंघवी ने आग्रह किया कि इस तरह की प्रार्थना को केवल मांगने पर स्वीकार नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि राउज एवेन्यू कोर्ट की वेकेशन जज न्याय बिंदु द्वारा जमानत आदेश में ED के खिलाफ तीखी टिप्पणियां की गईं। न्यायाधीश ने यह निष्कर्ष निकालने की हद तक कोशिश की कि ED केजरीवाल के खिलाफ पक्षपातपूर्ण तरीके से काम कर रहा है। आदेश में आगे कहा गया कि ED ने अपराध की आय के बारे में कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं दिखाया।
केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 21 मार्च को गिरफ्तार किया। मई में उन्हें आम चुनावों के मद्देनजर 01 जून तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम जमानत दी गई। उन्होंने 2 जून को आत्मसमर्पण कर दिया।
केस टाइटल: अरविंद केजरीवाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय | डायरी नंबर 27685/2024