GST Act के तहत गिरफ्तारी केवल इस बात की जांच के लिए नहीं की जा सकती कि क्या संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध किया गया: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

27 Feb 2025 11:58 AM

  • GST Act के तहत गिरफ्तारी केवल इस बात की जांच के लिए नहीं की जा सकती कि क्या संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध किया गया: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि माल और सेवा अधिनियम (GST Act) के तहत गिरफ्तारी केवल संदेह के आधार पर नहीं की जा सकती। ऐसी गिरफ्तारी केवल इस बात की जांच के लिए नहीं की जा सकती कि क्या संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध किया गया।

    कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी इस विश्वास पर की जानी चाहिए कि धारा 132 की उप-धारा (5) में निर्दिष्ट शर्तें पूरी होती हैं। इसका मतलब है कि इस बात की संतुष्टि होनी चाहिए कि संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध किया गया है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि माल और सेवा अधिनियम, 2017 के तहत की गई गिरफ्तारी अवैध होगी यदि गिरफ्तारी का आदेश बिना यह मानने के कारणों को दर्ज किए पारित किया गया हो कि व्यक्ति ने गैर-जमानती अपराध किया और अधिनियम की धारा 132 की उप-धारा (5) की पूर्व-शर्तें पूरी होती हैं।

    न्यायालय ने कहा,

    "संज्ञेय और असंज्ञेय अपराधों के मामले में गिरफ्तारी का आदेश पारित करने के लिए आयुक्त को अपने द्वारा दर्ज किए गए विश्वास करने के कारणों के माध्यम से संतोषजनक रूप से यह दिखाना होगा कि गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति ने गैर-जमानती अपराध किया। अधिनियम की धारा 132 की उप-धारा (5) की पूर्व-शर्तें पूरी होती हैं। ऐसा न करने पर अवैध गिरफ्तारी होगी।"

    न्यायालय ने आगे कहा कि विश्वास करने के कारणों को दर्ज करते समय आयुक्त को अपनी संतुष्टि बतानी चाहिए और धारा 132 की उप-धारा (1) के खंड (ए) से (डी) में निर्दिष्ट गैर-जमानती अपराध के बारे में अपने निष्कर्ष का आधार बनाने वाली 'सामग्री' का उल्लेख करना चाहिए। उप-धारा (1) के खंड (i) के तहत मौद्रिक सीमाओं के संदर्भ में शामिल कर की गणना, जो अपराध को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाती है, उसको प्रासंगिक और पर्याप्त सामग्री का उल्लेख करके समर्थित किया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने यह टिप्पणी इस बात पर गौर करने के बाद की कि जब अपराध धारा 132 की उपधारा (1) के खंड (ए) से (डी) में निर्दिष्ट सीमित श्रेणियों के अंतर्गत आता है तथा जब कर चोरी की राशि, गलत तरीके से प्राप्त या उपयोग किए गए इनपुट टैक्स क्रेडिट की राशि, या गलत तरीके से लिए गए रिफंड की राशि 500 ​​लाख रुपये से अधिक होती है तो अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय होता है। धारा 132(5) के अनुसार, उपधारा (1) के खंड (ए) या खंड (बी) या खंड (सी) या खंड (डी) में निर्दिष्ट अपराध और उस उपधारा के खंड (आई) के तहत दंडनीय अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने टिप्पणी की:

    "राजस्व की ओर से प्रस्तुत इस दलील के संबंध में कि जमानती अपराधों के मामले में गिरफ्तारी नहीं की जाती है। हमारे विचार से आयुक्त को विश्वास करने के कारणों को दर्ज करते समय अपनी संतुष्टि व्यक्त करनी चाहिए। धारा 132 की उपधारा (1) के खंड (ए) से (डी) में निर्दिष्ट गैर-जमानती अपराध के कमीशन के संबंध में अपने निष्कर्ष का आधार बनाने वाली 'सामग्री' का उल्लेख करना चाहिए। उपधारा (1) के खंड (i) के तहत मौद्रिक सीमाओं के संदर्भ में शामिल कर की गणना, जो अपराध को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाती है, को प्रासंगिक और पर्याप्त सामग्री का संदर्भ देकर समर्थित किया जाना चाहिए।"

    केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तारी नहीं

    सीजेआई खन्ना द्वारा लिखे गए फैसले में आगे कहा गया:

    "गिरफ्तारी इस विश्वास पर होनी चाहिए कि धारा 132 की उपधारा (5) में निर्दिष्ट शर्तें पूरी हो चुकी हैं, न कि केवल संदेह के आधार पर। केवल यह जांच करने के लिए गिरफ्तारी नहीं की जा सकती कि शर्तें पूरी हो रही हैं या नहीं। गिरफ्तारी आयुक्त द्वारा राय तैयार करने पर की जानी चाहिए, जिसे विश्वास करने के कारणों में विधिवत दर्ज किया जाना चाहिए। विश्वास करने के कारण आयुक्त की संतुष्टि के लिए यह स्थापित करने वाले साक्ष्य पर आधारित होने चाहिए कि GST Act की धारा 132 की उपधारा (5) की आवश्यकताएं पूरी हुई।"

    निर्णय में आगे निर्देश दिया गया कि गिरफ्तारी की शर्तों और इसकी प्रक्रिया के संबंध में 17.08.2022 और 13.01.2025 को केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (जीएसटी-जांच विंग) द्वारा जारी सर्कुलर का अधिकारियों द्वारा कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।

    गिरफ्तारी ज्ञापन में GST Act और अन्य कानूनों की संबंधित धाराएं दर्शाई जानी चाहिए। इसके अलावा, गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार बताए जाने चाहिए और गिरफ्तारी ज्ञापन में दर्ज किए जाने चाहिए। 13.01.2025 के परिपत्र में यह अनिवार्य किया गया कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार बताए जाने चाहिए और गिरफ्तारी ज्ञापन के अनुलग्नक के रूप में उसे लिखित रूप में भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए। गिरफ्तारी ज्ञापन की तामील के समय गिरफ्तार व्यक्ति से इसकी पावती ली जानी चाहिए।

    17.08.2022 के निर्देश 02/2022-23 GST (जांच) में आगे कहा गया कि गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा नामित या अधिकृत व्यक्ति को तुरंत सूचित किया जाना चाहिए। इस तथ्य को गिरफ्तारी ज्ञापन में दर्ज किया जाना चाहिए। गिरफ्तारी ज्ञापन में गिरफ्तारी की तारीख और समय का भी उल्लेख किया जाना चाहिए। अंत में गिरफ्तारी ज्ञापन की एक प्रति उचित पावती के साथ गिरफ्तार व्यक्ति को दी जानी चाहिए। परिपत्र में चिकित्सा जांच, गिरफ्तार व्यक्ति के स्वास्थ्य और सुरक्षा का उचित ध्यान रखने का कर्तव्य तथा महिला को गिरफ्तार करने की प्रक्रिया आदि से संबंधित अन्य निर्देश भी दिए गए।

    केस टाइटल: राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी. (सीआरएल.) संख्या 336/2018 (और संबंधित मामले)

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