ट्रिब्यूनल के समक्ष समय पर आपत्ति नहीं उठाई गई तो केवल अधिकार क्षेत्र की कमी के कारण आर्बिट्रल अवार्ड रद्द नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

16 May 2025 10:13 AM IST

  • ट्रिब्यूनल के समक्ष समय पर आपत्ति नहीं उठाई गई तो केवल अधिकार क्षेत्र की कमी के कारण आर्बिट्रल अवार्ड रद्द नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को दोहराया कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C Act) के तहत किए गए आर्बिट्रल अवार्ड केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि विवादों का निपटारा मध्य प्रदेश मध्यस्थता अधिकरण अधिनियम, 1983 (MP Act) के तहत किया जाना चाहिए था और कार्यवाही के उचित चरण में कोई अधिकार क्षेत्र संबंधी आपत्ति नहीं उठाई गई।

    कोर्ट ने कहा कि मध्य प्रदेश अधिनियम के तहत उत्पन्न होने वाले विवादों पर आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने वाली कोई भी चुनौती ट्रिब्यूनल के समक्ष ही उठाई जानी चाहिए। यदि कोई पक्ष ऐसा करने में विफल रहता है तो वह अवार्ड जारी होने के बाद भी अधिकार क्षेत्र संबंधी आपत्ति उठाने के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 का सहारा ले सकता है, लेकिन अवार्ड को केवल इसी आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।

    न्यायालय ने कहा,

    "एक बार जब आर्बिट्रल अवार्ड पारित हो जाता है और संबंधित चरण में आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र के बारे में कोई आपत्ति नहीं ली जाती है तो केवल अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर अवार्ड रद्द नहीं किया जा सकता।"

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई करते हुए की, जिसमें प्रतिवादी-मप्र सड़क विकास निगम (MPRDC) ने अधिकार क्षेत्र के बारे में कोई आपत्ति उठाए बिना 1996 अधिनियम के तहत मध्यस्थता कार्यवाही में भाग लिया था। हालांकि, इसके खिलाफ अवार्ड पारित होने के बाद MPRDC ने 1996 अधिनियम की धारा 34 के तहत अवार्ड को चुनौती दी, जिसमें तर्क दिया गया कि ट्रिब्यूनल के पास अधिकार क्षेत्र की कमी है और विवाद को मप्र एक्ट, 1983 के तहत संदर्भित किया जाना चाहिए था।

    हाईकोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार कर लिया और अधिकार क्षेत्र के आधार पर अवार्ड पूरी तरह से रद्द कर दिया, जिसके बाद अपीलकर्ता-ठेकेदार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए जस्टिस पारदीवाला द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि अधिनियम 1996 के तहत दिए गए आर्बिट्रल अवार्ड केवल अधिकार क्षेत्र की कमी के कारण रद्द नहीं किया जा सकता, यदि आपत्ति करने वाला पक्ष प्रासंगिक समय पर विशेष रूप से अधिनियम 1996 की धारा 16 के तहत ट्रिब्यूनल के समक्ष मुद्दा उठाने में विफल रहा हो।

    एम.पी. ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण बनाम एल.जी. चौधरी (द्वितीय), (2018) 10 एससीसी 826 के कथन पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 सही शासी कानून है, लेकिन अधिनियम 1996 के तहत पहले से पारित अवार्ड को केवल अधिकार क्षेत्र के आधार पर रद्द नहीं किया जाना चाहिए, यदि पहले कोई आपत्ति नहीं उठाई गई थी।

    चूंकि प्रतिवादी-MPRDC ने आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के समक्ष या शुरू में अपनी धारा 34 याचिका में अधिकार क्षेत्र संबंधी आपत्तियां नहीं उठाईं, इसलिए अवार्ड केवल अधिकार क्षेत्र के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता था।

    कानून की उपरोक्त व्याख्या को देखते हुए न्यायालय ने एल.जी. चौधरी (द्वितीय) के मामले में कहा गया:-

    "i. जहां आर्बिट्रल कार्यवाही अभी भी चल रही है, लेकिन बचाव का कोई बयान दाखिल नहीं किया गया, वहां पार्टियों के लिए मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 की प्रयोज्यता के मद्देनजर अधिकार क्षेत्र की कमी की आपत्ति उठाना खुला होगा। पार्टियों को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत एक याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट से संपर्क करने की भी स्वतंत्रता होगी, ताकि मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 के तहत मध्य प्रदेश राज्य आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल को आर्बिट्रल कार्यवाही का हस्तांतरण किया जा सके।

    ii. जहां मध्यस्थता कार्यवाही अभी भी चल रही है, लेकिन बचाव का बयान पहले ही दाखिल किया जा चुका है, यानी अधिकार क्षेत्र का मुद्दा उठाने के लिए प्रासंगिक चरण पहले ही पार हो चुका है, वहां पार्टियों के लिए मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 की प्रयोज्यता के मद्देनजर अधिकार क्षेत्र की कमी की आपत्ति उठाना खुला नहीं होगा। इसके अलावा, ऐसे परिदृश्यों में चूंकि मध्यस्थता कार्यवाही पहले ही शुरू हो चुकी है और पर्याप्त प्रगति हुई है, इसलिए ऐसी कार्यवाही को मध्य प्रदेश राज्य आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल को हस्तांतरित करना उचित नहीं होगा। मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 के तहत आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल द्वारा पारित कोई भी निर्णय तथा बेहतर होगा कि मध्यस्थता कार्यवाही को समाप्त होने दिया जाए।

    iii. एल.जी. चौधरी (II) (सुप्रा) के अनुसार, जहां मध्यस्थता कार्यवाही समाप्त हो गई तथा कोई निर्णय पारित कर दिया गया, साध ही यदि मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 की प्रयोज्यता के मद्देनजर क्षेत्राधिकार पर कोई आपत्ति प्रासंगिक चरण में नहीं ली गई तो ऐसे निर्णय को केवल क्षेत्राधिकार की कमी के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।

    iv. अधिनियम, 1996 के तहत आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल द्वारा पारित कोई भी निर्णय, जहां अन्यथा मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 लागू था, ऐसे निर्णय को अधिनियम, 1996 की धारा 34 तथा उसके बाद धारा 37 तथा उसके तहत अन्य प्रासंगिक प्रावधानों के तहत चुनौती दी जा सकती है या उस पर आपत्ति की जा सकती है।

    अधिनियम, 1996 के तहत आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल द्वारा पारित कोई भी निर्णय, जहां अन्यथा मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 लागू होता है, ऐसे निर्णय को मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 और उसके तहत प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार निष्पादित किया जाना चाहिए।

    vi. जहां मध्य प्रदेश अधिनियम, 1983 की प्रयोज्यता पर आधारित आपत्ति लिखित बयान या बचाव के बयान में उठाई गई, लेकिन पक्षों ने अधिनियम, 1996 की धारा 16 के तहत आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने की दिशा में कभी कदम नहीं उठाए या जहां अधिकार क्षेत्र की ऐसी दलील को एल.जी. चौधरी (द्वितीय) (सुप्रा) से पहले प्रचलित कानून की स्थिति के मद्देनजर खारिज कर दिया गया, यानी अधिकार क्षेत्र के लिए ऐसी चुनौती एल.जी. चौधरी (द्वितीय) (सुप्रा) की घोषणा की तारीख से पहले तय की गई तो ऐसे मामलों में भी मॉडर्न बिल्डर्स (सुप्रा) में इस न्यायालय के फैसले के अनुसार, केवल अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर अवार्ड बाधित या रद्द नहीं किया जाना चाहिए।

    उपरोक्त के संदर्भ में अपील स्वीकार की गई।

    केस टाइटल: मेसर्स गायत्री प्रोजेक्ट लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड

    Next Story