प्रथम दृष्टया अपराध सिद्ध न होने पर ही SC/ST Act के तहत अग्रिम ज़मानत जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
3 Sept 2025 7:39 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SC/ST Act के तहत अग्रिम ज़मानत तब तक मान्य नहीं है, जब तक कि प्रथम दृष्टया यह सिद्ध न हो जाए कि अधिनियम के तहत कोई अपराध सिद्ध नहीं होता।
अदालत ने कहा,
"जहां प्रथम दृष्टया यह पाया जाता है कि अधिनियम की धारा 3 के तहत अपराध सिद्ध नहीं हुआ है। ऐसे अपराध से संबंधित आरोप प्रथम दृष्टया निराधार हैं, वहां न्यायालय को धारा 438 के तहत अभियुक्त को अग्रिम ज़मानत देने के लिए अपने विवेक का प्रयोग करने का अधिकार है।"
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच ने शिकायतकर्ता की अपील स्वीकार की और प्रतिवादी नंबर 1 को अग्रिम ज़मानत देने वाला बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। प्रतिवादी ने कथित तौर पर अपीलकर्ता को उसके जाति के नाम का उल्लेख करके सार्वजनिक रूप से गाली दी और अपमानित किया था।
यह देखते हुए कि प्रथम दृष्टया मामला SC/ST Act की धारा 3 के तहत दंडनीय अपराधों के तत्वों के आधार पर बनता है, जस्टिस अंजारिया द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया:
“आरोपियों ने शिकायतकर्ता को लोहे की छड़ से पीटा और घर जलाने की धमकी दी। अपीलकर्ता-शिकायतकर्ता की माँ और चाची के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया गया। उन्हें भी उसी जातिवादी गाली से संबोधित किया गया। "मंगत्यानो" शब्द का प्रयोग स्पष्ट रूप से शिकायतकर्ता को अपमानित करने के इरादे से किया गया, क्योंकि वह उक्त अनुसूचित जाति समुदाय से था। अभियुक्तों द्वारा की गई अपमानजनक बातों और आचरण से जातिगत गठजोड़ स्थापित होता है। शिकायतकर्ता को जातिवादी और अपमानजनक तरीके से इसलिए अपमानित किया गया, क्योंकि उसने विधानसभा चुनाव में प्रतिवादी अभियुक्तों की इच्छा के अनुसार विशेष उम्मीदवार, बाहुबली-आरोपी संख्या 8, के पक्ष में वोट नहीं दिया था।”
हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं, यह निष्कर्ष निकालते समय न्यायालयों को लघु-परीक्षण आयोजित करके साक्ष्य के दायरे में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी।
न्यायालय ने कहा,
"अपराध के घटित होने के बारे में प्रथम दृष्टया मामला न बनना एक ऐसी स्थिति मानी जाती है, जहां न्यायालय प्रथम दृष्टया ही या प्राथमिकी में दिए गए कथनों को पढ़कर ही इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है। इस संबंध में FIR की विषयवस्तु और आरोप निर्णायक होंगे। इसके अलावा, प्रथम दृष्टया अपराध बनता है या नहीं, इस निष्कर्ष पर पहुंचने में न्यायालय को साक्ष्य के दायरे में जाने या अन्य सामग्रियों पर विचार करने की अनुमति नहीं होगी, न ही न्यायालय लघु-परीक्षण आयोजित करने का निर्णय ले सकता है।"
तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई।
Cause Title: KIRAN VERSUS RAJKUMAR JIVRAJ JAIN & ANR.

