सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के महरौली में प्राचीन धार्मिक स्थलों पर नए निर्माण या विस्तार पर रोक लगाई
Praveen Mishra
28 Feb 2025 12:45 PM

दिल्ली के महरौली में प्राचीन धार्मिक संरचनाओं की सुरक्षा की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने आज (28 फरवरी) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को इन संरचनाओं की मूल बनावट और बाद में किए गए बदलावों पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान संरचनाओं में कोई नया निर्माण या बदलाव नहीं किया जाएगा।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें महरौली पुरातत्व पार्क के अंदर सदियों पुराने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए कोई विशेष निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था। इनमें 13वीं सदी की आशिक अल्लाह दरगाह (1317 ई.) और बाबा फरीद की चिल्लागाह भी शामिल हैं।
जुलाई 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को इस मामले में पक्षकार बनाते हुए ASI और राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) से स्थिति रिपोर्ट मांगी थी। खास बात यह है कि अदालत ने 13 मई 2024 को "हिमांशु डामले बनाम डीडीए" नामक एक अन्य समान याचिका को भी मुख्य मामले के साथ जोड़ा था।
आज, सुनवाई के दौरान, अदालत ने पूछा कि प्राचीन संरचनाओं के कितने हिस्से अवैध निर्माण के अंतर्गत आते हैं।
इस पर चीफ जस्टिस ने मौखिक रूप से कहा,
"उस स्थान का साइट प्लान तैयार करें, ताकि आगे कोई अतिक्रमण न हो।"
ASI के वकील ने अदालत में कहा कि प्राचीन संरचना में हाल ही में किए गए बदलावों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।
उन्होंने कहा,
"हम यह पता लगाएंगे कि वे नए निर्माण कौन से हैं, जो हाल के बदलावों के तहत आए हैं।"
खंडपीठ ने यह देखते हुए कि संरचना के वर्तमान गुम्बद की डिजाइन उसके पुराने गुम्बद से अलग है, कहा,
"इसमें कुछ बदलाव किए गए हैं, क्योंकि जो छत अब मौजूद है, वह आधुनिक छत है, यह पुराना गुम्बद नहीं है।"
इस पर ASI ने जवाब दिया,
"हम इसकी जांच करेंगे और एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।"
हिमांशु डामले की ओर से पेश एडवोकेट सत्यजीत सरना ने इस पर कहा,
"ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि यह एक जीवंत स्मारक है, जहां सैकड़ों लोग पूजा करते हैं।"
इस पर सहमति जताते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि मुद्दा यह है कि अतिक्रमण करने वाले लोग संरचना के पास दुकानें लगा रहे हैं और इससे पैसा कमा रहे हैं।
मुख्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट निज़ाम पाशा ने दलील दी कि ASI की रिपोर्ट संरचना पर किए गए मरम्मत कार्यों के बारे में है, न कि उसके आसपास अतिक्रमण के बारे में।
उन्होंने कहा,
"महोदय, यह ASI का मामला ही नहीं है। ASI की रिपोर्ट कहती है कि संरचना पर सफेदी, टाइलें, सीमेंट आदि की परतें जोड़ी गई हैं, लेकिन कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है और न ही कोई अतिरिक्त संरचना बनाई गई है। यह कोई संरक्षित स्मारक नहीं है, इसलिए मरम्मत कार्य पर कोई प्रतिबंध नहीं है।"
पाशा ने आगे कहा कि प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (AMASAR अधिनियम) के अनुसार, यदि कोई प्राचीन स्मारक संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया गया है, तो उसकी मरम्मत करने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान में जिन संरचनाओं पर सवाल उठाया जा रहा है, वे संरक्षित स्मारक नहीं हैं।
चीफ जस्टिस ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा,
"जितना अधिक आप इस पर बहस करेंगे, उतनी ही मुश्किल स्थिति में फंसेंगे, क्योंकि बिना अनुमति के इतने बड़े पैमाने पर मरम्मत कार्य कैसे किया गया?"
CJI ने आगे पूछा कि भले ही ये संरचनाएं संरक्षित स्मारक न हों, फिर भी वे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अधिनियम (AMASAR) के कुछ प्रावधानों के तहत नियंत्रित होंगी।
ASI ने तब संरचनाओं की स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने की अनुमति मांगी। अदालत ने इसकी अनुमति देते हुए आदेश दिया कि मौजूदा संरचनाओं में कोई नया निर्माण या बदलाव नहीं किया जाएगा।
अदालत ने कहा,
"ASI द्वारा स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर दी गई है। हालांकि, यह एक अंतरिम रिपोर्ट है, क्योंकि अन्य पहलुओं, जैसे कि मूल संरचना की स्थिति को अभी जांचा और सत्यापित किया जाना बाकी है। इस मामले को 28 अप्रैल से शुरू होने वाले सप्ताह में फिर से सूचीबद्ध किया जाए। ASI को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने की स्वतंत्रता दी जाती है, और पक्षकारों को अपनी आपत्तियां या प्रस्तुतियाँ दाखिल करने की अनुमति भी दी जाती है। हम यह स्पष्ट करते हैं कि मौजूदा संरचना में कोई निर्माण या बदलाव नहीं किया जाएगा।"
पहले सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं और संबंधित प्राधिकरणों को निर्देश दिया था कि वे पहले अदालत द्वारा गठित धार्मिक समिति के समक्ष अपनी बात रखें। धार्मिक समिति द्वारा लिए गए निर्णय को लागू करने से पहले रिकॉर्ड पर लाना अनिवार्य था।
मामले की पृष्ठभूमि:
हाईकोर्ट में दायर याचिका में आशंका जताई गई थी कि महरौली में स्थित दरगाह और चिल्लागाह को जल्द ही दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा तोड़ा जा सकता है। यह आशंका इसलिए थी क्योंकि 600 साल पुरानी मस्जिद—मस्जिद अखोंजी को जनवरी में DDA द्वारा गिरा दिया गया था, साथ ही मदरसा बहरुल उलूम और कई कब्रों को भी ध्वस्त किया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार के इस आश्वासन को रिकॉर्ड में लेते हुए मामला निपटा दिया कि कोई भी संरक्षित स्मारक या राष्ट्रीय स्मारक नहीं गिराया जाएगा।
अपने आदेश में जस्टिस मनमोहन की अगुवाई वाली खंडपीठ ने अवैध अतिक्रमणों को लेकर टिप्पणियां कीं और विरासत के अधिकार और स्वच्छ पर्यावरण में सांस लेने के अधिकार के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत पर जोर दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश को ज़मीर अहमद जुमलाना नाम के व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और ऐतिहासिक संरचनाओं को तोड़े जाने के खिलाफ दलील दी।