BREAKING| चीफ जस्टिस के अनुरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट जज को आपराधिक क्षेत्राधिकार से हटाने का निर्देश वापस लिया

Shahadat

8 Aug 2025 11:23 AM IST

  • BREAKING| चीफ जस्टिस के अनुरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट जज को आपराधिक क्षेत्राधिकार से हटाने का निर्देश वापस लिया

    सुप्रीम कोर्ट ने एक असामान्य घटनाक्रम में शुक्रवार (8 अगस्त) को 4 अगस्त को पारित अपने अभूतपूर्व आदेश को वापस ले लिया। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज को उनकी रिटायरमेंट तक आपराधिक क्षेत्राधिकार से हटा दिया जाना चाहिए और उन्हें एक अनुभवी सीनियर जज के साथ बैठाया जाना चाहिए।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार द्वारा पारित आदेश पर आपत्ति जताते हुए यह असामान्य आदेश पारित किया था, जिसमें आपराधिक शिकायत को इस आधार पर रद्द करने से इनकार कर दिया गया था कि धन की वसूली के लिए दीवानी उपाय प्रभावी नहीं था।

    हालांकि, इस आदेश की आलोचना होने के बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई ने बाद में जस्टिस पारदीवाला की बेंच को पत्र लिखकर हाईकोर्ट जज के खिलाफ की गई आलोचनाओं पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। इसके बाद निपटाए गए मामले को आज नए निर्देशों के लिए फिर से सूचीबद्ध किया गया। इसी से जुड़े एक घटनाक्रम में हाईकोर्ट के 13 जजों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर उनसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू न करने का आग्रह किया।

    जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने शुक्रवार को कहा कि उन्हें सीजेआई का एक पत्र मिला है, जिसमें हाईकोर्ट जज को आपराधिक मामलों की सूची से हटाने और उन्हें एक खंडपीठ के समक्ष बैठाने के निर्देशों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था।

    जस्टिस पारदीवाला ने पुनः सूचीबद्ध करने के कारणों की व्याख्या करते हुए कहा,

    "हमें सीजेआई का एक अदिनांकित पत्र मिला, जिसमें अनुच्छेदों में की गई टिप्पणियों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया... ऐसी परिस्थितियों में हमने रजिस्ट्री को सीजेआई द्वारा किए गए अनुरोध पर विचार करने के लिए मुख्य मामले को पुनः अधिसूचित करने का निर्देश दिया।"

    नया आदेश सुनाते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि जज को किसी भी तरह की शर्मिंदगी पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था और उनका एकमात्र उद्देश्य एक स्पष्ट रूप से विकृत आदेश को सही करना था।

    जस्टिस पारदीवाला ने आदेश सुनाते हुए कहा,

    "सबसे पहले, हमें यह स्पष्ट करना होगा कि हमारा इरादा संबंधित जज को शर्मिंदा करने या उन पर आक्षेप लगाने का नहीं था। हम ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं सकते। हालांकि, जब मामले एक सीमा पार कर जाते हैं और संस्था की गरिमा खतरे में पड़ जाती है तो संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपने अपीलीय क्षेत्राधिकार के तहत कार्य करते हुए भी हस्तक्षेप करना इस न्यायालय की संवैधानिक ज़िम्मेदारी बन जाती है।"

    खंडपीठ ने आगे कहा कि विवादित आदेश में स्पष्ट त्रुटि को देखते हुए उसे यह कड़ी फटकार लगाने के लिए बाध्य होना पड़ा। खंडपीठ ने कहा कि जब हाईकोर्ट फुल जस्टिस सुनिश्चित करने वाले आदेश पारित करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा हाईकोर्ट के जजों की सराहना की है।

    जस्टिस पारदीवाला ने आदेश में कहा,

    "हाईकोर्ट अलग द्वीप नहीं हैं, जिन्हें इस संस्था से अलग किया जा सके। हम दोहराते हैं कि हमने अपने आदेश में जो कुछ भी कहा, वह यह सुनिश्चित करने के लिए था कि न्यायपालिका की गरिमा और अधिकार इस देश के लोगों के मन में सर्वोच्च रहे। यह केवल संबंधित जज द्वारा कानूनी बिंदुओं या तथ्यों को समझने में हुई भूल या भूल का मामला नहीं है। हम न्याय के हित में और संस्था के सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिए उचित निर्देश जारी करने के बारे में चिंतित थे।"

    देश के 90% वादियों के लिए हाईकोर्ट अंतिम न्यायालय है। केवल शेष 10% ही सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं। न्यायालय में आने वाले वादी यह अपेक्षा करते हैं कि न्याय प्रणाली कानून के अनुसार कार्य करे और उन्हें बेतुके या तर्कहीन आदेश न मिलें।"

    जस्टिस पारदीवाला ने कहा,

    "इस मामले के किसी भी दृष्टिकोण से चूंकि माननीय सीजेआई से लिखित अनुरोध प्राप्त हुआ है। उसी के अनुरूप, हम 4 अगस्त 2025 के अपने आदेश से पैरा 25 और 26 को हटाते हैं। आदेश में तदनुसार सुधार किया जाए। हम इन पैराग्राफों को हटाते हुए अब इस मामले की जांच का काम इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ते हैं। हम पूरी तरह से स्वीकार करते हैं कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ही रोस्टर जारी करते हैं। ये निर्देश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की प्रशासनिक शक्ति में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करते हैं। जब मामले कानून के शासन को प्रभावित करने वाली संस्थागत चिंताओं को जन्म देते हैं तो यह न्यायालय हस्तक्षेप करने और सुधारात्मक कदम उठाने के लिए बाध्य हो सकता है।"

    हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि विवादित आदेश "विकृत" और "अवैध" था। खंडपीठ ने रिखब ईरानी मामले में पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय खन्ना की खंडपीठ द्वारा हाल ही में पारित आदेश का भी उल्लेख किया, जिसमें उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा नागरिक अपराधों पर FIR दर्ज करने पर चिंता व्यक्त की गई थी।

    खंडपीठ ने निष्कर्ष में कहा,

    "हमें उम्मीद है कि भविष्य में हमें किसी भी हाईकोर्ट से इस तरह के विकृत और अन्यायपूर्ण आदेश का सामना नहीं करना पड़ेगा। हाईकोर्ट का प्रयास हमेशा कानून के शासन को बनाए रखना और संस्थागत विश्वसनीयता बनाए रखना होना चाहिए। यदि न्यायालय के भीतर ही कानून के शासन को बनाए नहीं रखा जाता या संरक्षित नहीं किया जाता है तो यह देश की संपूर्ण न्याय प्रणाली का अंत होगा। किसी भी स्तर के जजों से अपेक्षा की जाती है कि वे कुशलतापूर्वक काम करें, अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करें और हमेशा अपनी संवैधानिक शपथ को पूरा करने का प्रयास करें।"

    Case Details: M/S. SHIKHAR CHEMICALS v THE STATE OF UTTAR PRADESH AND ANR|SLP(Crl) No. 11445/2025

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