आयुष विभाग द्वारा यूनानी कॉलेज में प्रोविजनल एडमिशन को नियमित न करने के खिलाफ 8 NEE-क्वालीफाईड स्टूडेंट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

Shahadat

31 May 2024 7:12 AM GMT

  • आयुष विभाग द्वारा यूनानी कॉलेज में प्रोविजनल एडमिशन को नियमित न करने के खिलाफ 8 NEE-क्वालीफाईड स्टूडेंट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

    8 NEE-क्वालीफाईड स्टूडेंट ने यूनानी कॉलेज द्वारा बीयूएमएस कोर्स में उन्हें दिए गए प्रोविजनल एडमिशन को नियमित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी।

    संक्षेप में कहें तो याचिकाकर्ताओं/स्टूडेंट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका के साथ शुरुआत में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें आयुष विभाग (भोपाल) को 2022-2023 के लिए बैचलर ऑफ यूनानी मेडिसीन एंड सर्जरी (BUMS) कोर्स में उनके प्रोविजनल एडमिशन को नियमित करने का निर्देश देने की मांग की गई, क्योंकि वे राष्ट्रीय पात्रता-सह-चिकित्सा परीक्षा (NEE) परीक्षा, 2022 में शामिल हुए थे और उसमें सफल हुए थे।

    याचिकाकर्ताओं का मामला यह है कि मेरिट सूची में नाम आने के बाद भी उन्हें प्रतिवादी(ओं) द्वारा पंजीकरण और काउंसलिंग के लिए नहीं बुलाया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि आयुष विभाग ने प्रोविजनल एडमिशन की अंतिम तिथि तक उन्हें प्रवेश पत्र जारी नहीं किए। ऐसे में उन्हें प्रोविजनल एडमिशन के लिए यूनानी कॉलेज से संपर्क करना पड़ा, जिसने उन्हें प्रोविजनल एडमिट कार्ड जारी कर दिए। हालांकि, आयुष विभाग ने एडमिशन को नियमित या पुष्टि नहीं की।

    दूसरी ओर, प्रतिवादियों का मामला यह है कि याचिकाकर्ताओं ने ऑनलाइन पोर्टल पर खुद को रजिस्टर्ड नहीं किया (पहली काउंसलिंग शुरू होने से पहले)। इस प्रकार बाद की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकी। अधिकारियों ने आगे आरोप लगाया कि यह पिछले दरवाजे से एडमिशन का मामला था, क्योंकि यूनानी कॉलेज याचिकाकर्ताओं को अंतिम एडमिशन नहीं दे सकता। यह भी बताया गया कि संबंधित शैक्षणिक सत्र समाप्त हो चुका है।

    रिकॉर्ड देखने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने मध्य प्रदेश में आयुर्वेदिक, होम्योपैथी और यूनानी शिक्षा पाठ्यक्रमों में एडमिशन के उद्देश्य से राष्ट्रीय भारतीय मेडिकल पद्धति आयोग (ग्रेजुएशन यूनानी शिक्षा के लिए न्यूनतम मानक) विनियम, 2020 में परिकल्पित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।

    इसमें आगे कहा गया,

    "याचिकाकर्ता काउंसलिंग प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थे। उन्होंने प्रतिवादी नंबर 3/कॉलेज में अवैध रूप से एडमिशन लिया, जिसके पास उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना स्टूडेंट को सीधे प्रवेश देने का कोई अधिकार नहीं था। इसे कुछ और नहीं बल्कि अवैध कहा जा सकता है।"

    हाईकोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों में पिछले दरवाजे से एडमिशन के संबंध में भी चिंता व्यक्त की और कहा:

    "यह सही समय है कि मेडिकल कॉलेजों सहित शैक्षणिक संस्थानों में इस तरह के पिछले दरवाजे से एडमिशन बंद होने चाहिए। देश भर में लाखों स्टूडेंट अपनी योग्यता के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। किसी भी शैक्षणिक संस्थान में पिछले दरवाजे से प्रवेश की अनुमति देना उन स्टूडेंट के साथ घोर अन्याय होगा, जिन्हें अधिक योग्यता होने के बावजूद ऐसे पिछले दरवाजे से एडमिशन करने वालों द्वारा सीटें ले लेने और अवरुद्ध कर देने के कारण एडमिशन से वंचित कर दिया जाता है।"

    इस दृष्टिकोण से याचिका खारिज कर दी गई, जबकि याचिकाकर्ताओं को कानून के अनुसार यूनानी कॉलेज के खिलाफ आगे बढ़ने की स्वतंत्रता दी गई। हाईकोर्ट के आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उनमें से 8 में से 3 ने पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन फिर भी उन्हें काउंसलिंग के लिए नहीं बुलाया गया। आगे कहा गया कि एडमिशन की अंतिम तिथि यानी 03.04.2023 को काउंसलिंग के मॉप अप राउंड के बाद भी यूनानी कॉलेज की 8 सीटें खाली पड़ी थीं। ऐसे में कॉलेज ने इन 8 सीटों पर याचिकाकर्ताओं को प्रोविजनल एडमिशन दे दिया।

    आक्षेपित फैसले पर रोक लगाने के अलावा, याचिकाकर्ता प्रतिवादियों को निर्देश देने की मांग कर रहे हैं, जिससे उन्हें BUMS प्रथम वर्ष के कोर्स के लिए 12.06.2024 से शुरू होने वाली परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए।

    यह याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड प्रगति नीखरा के माध्यम से दायर की गई।

    केस टाइटल: सैय्यद उस्मा महमूद और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 12428/2024

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