सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

3 Nov 2024 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (28 अक्टूबर, 2024 से 01 नवंबर, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    S. 353 IPC | किसी पर चिल्लाना और धमकाना हमला नहीं माना जाता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी पर चिल्लाना और धमकाना हमला करने के अपराध के बराबर नहीं माना जाता। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई की, जिसमें भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के कर्मचारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (हमला) के तहत एफआईआर दर्ज की गई, क्योंकि उसने सेवा से बर्खास्तगी की फाइलों का निरीक्षण करते समय कैट के कर्मचारियों पर चिल्लाया और धमकाया था।

    केस टाइटल: के. धनंजय बनाम कैबिनेट सचिव और अन्य।

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    जमानत की शर्त कि आरोपी को आदेश पारित होने के 6 महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करना होगा, नहीं लगाई जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के जमानत आदेशों को चुनौती देने वाली दो विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज किया। इसने हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों को रद्द किया और मामले को गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से सुनवाई के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया, इससे पहले मौखिक रूप से टिप्पणी की कि उन्होंने बार-बार हाई कोर्ट द्वारा बिना कारण बताए जमानत आदेश पारित होते देखे हैं।

    एसएलपी हाई कोर्ट द्वारा क्रमशः 11 और 19 सितंबर को पारित दो जमानत आदेशों से संबंधित है, जिसमें उसने जमानत की शर्तें लगाई थीं कि संबंधित आदेश पारित होने की तारीख से पांच और छह महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत किया जाएगा।

    केस टाइटल: नन्हक मांझी बनाम बिहार राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 14784/2024; उपेन्द्र मांझी बनाम बिहार राज्य एसएलपी (सीआरएल) नंबर 14764/2024

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    करीबी रिश्तेदारों को दिए गए मौखिक मृत्यु-पूर्व कथन को अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए इस्तेमाल करने से पहले सावधानीपूर्वक मूल्यांकन की आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दोषसिद्धि मृतक के करीबी रिश्तेदार को दिए गए मौखिक मृत्यु-पूर्व कथन पर आधारित होती है तो न्यायालयों को अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए करीबी रिश्तेदार की गवाही पर विश्वास करने में उचित सावधानी बरतनी चाहिए।

    जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने ऐसे मामले की सुनवाई की, जिसमें अभियोजन पक्ष ने मृतक द्वारा अपनी मां को दिए गए मौखिक मृत्यु-पूर्व कथन के आधार पर अभियुक्त के अपराध को साबित करने का प्रयास किया। निचली अदालत ने मृतक की मां की गवाही के आधार पर हत्या के मामले में अभियुक्त को दोषी ठहराया, जिसमें उसने कहा कि उसके बेटे (मृतक) ने अभियुक्तों के नाम बताते हुए मौखिक मृत्यु-पूर्व कथन दिया था।

    केस टाइटल: मध्य प्रदेश राज्य बनाम रमजान खान और अन्य।

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