आरोपों से बरी होने के बावजूद कर्मचारी का वेतन रोक के रखना अनुचित: राजस्थान हाईकोर्ट
Praveen Mishra
5 March 2025 4:34 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि यदि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत कार्यवाही लंबित रहने के दौरान किसी कर्मचारी को निलंबित किया गया था और बाद में उसे बरी कर दिया गया, तो कोई विभागीय कार्यवाही न होने की स्थिति में निलंबन अवधि के वेतन को केवल जीविका भत्ते (subsistence allowance) तक सीमित रखना ऐसे कर्मचारी को दंडित करने के समान होगा, जो स्वीकार्य नहीं है।
कोर्ट ने कहा "ट्रिब्यूनल ने सही निष्कर्ष निकाला कि कोई विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की गई थी, और आपराधिक मामले में बरी होने के बाद, निलंबन अवधि के वेतन को केवल जीविका भत्ते तक सीमित रखने का कोई कारण नहीं था। दूसरे शब्दों में, जब कोई विभागीय जांच नहीं हुई और न ही विभाग द्वारा कोई दंड आदेश जारी किया गया, तो आपराधिक मामले में बरी होने के बाद कर्मचारी को निलंबन अवधि के वेतन में कटौती कर दंडित नहीं किया जा सकता।"
जस्टिस अवनीश झिंगन और जस्टिस प्रमिल कुमार माथुर की खंडपीठ केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। CAT ने दूरसंचार विभाग, नई दिल्ली के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्यवाही लंबित रहने के दौरान निलंबित किए गए कर्मचारी को केवल जीविका भत्ता देने की अनुमति दी गई थी, हालांकि बाद में उसे बरी कर दिया गया था।
यह कर्मचारी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत बिछाए गए जाल में रंगे हाथों पकड़ा गया था। कार्यवाही लंबित रहने के दौरान, राज्य सरकार ने उसे दो बार निलंबित किया। अंततः, कर्मचारी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामले में बरी कर दिया गया और उसके खिलाफ कोई भी विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की गई।
इसके बावजूद, दूरसंचार विभाग ने एक आदेश पारित किया, जिसमें कर्मचारी के निलंबन को उचित ठहराया गया और निलंबन अवधि के दौरान उसे केवल जीविका भत्ता (subsistence allowance) देने को सही ठहराया गया।
इस आदेश के खिलाफ, कर्मचारी ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में मूल आवेदन दायर किया, जिसमें CAT ने राज्य को निर्देश दिया कि वह कर्मचारी के निलंबन को "सेवा में उपस्थित" (on duty) माने और वेतन एवं भत्तों को निर्धारित कर बकाया राशि का भुगतान करे।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने राय दी कि इसमें कोई विवाद नहीं था कि किसी कर्मचारी को जांच, पूछताछ या आपराधिक मुकदमे के लंबित रहने के दौरान निलंबित करना कोई दंड नहीं है।
कोर्ट ने कहा, "इस मामले में, कर्मचारी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत जांच लंबित रहने के कारण निलंबित किया गया था और अंततः उसे बरी कर दिया गया। जब कर्मचारी के खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही नहीं थी, तो 30.06.2022 का आदेश, जिसमें निलंबन को उचित ठहराया गया और वेतन को केवल जीविका भत्ते तक सीमित रखने का निर्णय लिया गया, यह आपराधिक मामले में बरी होने के बावजूद कर्मचारी को दंडित करने के समान है।"
नतीजतन, याचिका खारिज कर दी गई और केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के आदेश को बरकरार रखा गया।

