S.138 NI Act | राजस्थान हाईकोर्ट ने शिकायत याचिका में चेक की प्रस्तुति की तारीख और डिऑनर में सुधार की अनुमति दी

Amir Ahmad

1 July 2024 6:07 AM GMT

  • S.138 NI Act | राजस्थान हाईकोर्ट ने शिकायत याचिका में चेक की प्रस्तुति की तारीख और डिऑनर में सुधार की अनुमति दी

    राजस्थान हाईकोर्ट ने एनआई अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत शिकायत में संशोधन की मांग करने वाली याचिका को अनुमति दी। साथ ही चेक की प्रस्तुति की तिथियों और डिऑनर के संबंध में टाइपोग्राफिकल गलतियों को ठीक करने के लिए हलफनामा संलग्न करने को कहा।

    न्यायालय ने एस.आर. सुकुमार बनाम सुनाद रघुराम के सुप्रीम कोर्ट के मामले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि भले ही CrPc में शिकायत या याचिका में संशोधन करने के लिए कोई विशिष्ट प्रावधान न हो लेकिन सुधार योग्य कमियों को ठीक करने के लिए ऐसे संशोधनों की मांग करने वाली याचिकाओं को अनुमति दी जा सकती है।

    न्यायाल ने कहा,

    "यदि किया जाने वाला संशोधन किसी साधारण दुर्बलता से संबंधित है, जिसे औपचारिक संशोधन के माध्यम से ठीक किया जा सकता है और ऐसे संशोधन की अनुमति देने से दूसरे पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा, इस तथ्य के बावजूद कि संहिता में ऐसे संशोधन को स्वीकार करने के लिए कोई सक्षम प्रावधान नहीं है, न्यायालय ऐसे संशोधन की अनुमति दे सकता है।"

    जस्टिस अनिल कुमार उपमन की पीठ ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका खारिज करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने याचिकाकर्ता द्वारा धारा 138, एनआई अधिनियम (NI Act) के तहत दायर शिकायत में संशोधन के लिए याचिका को खारिज कर दिया था।

    याचिकाकर्ता का मामला यह था कि उसने 3 दिसंबर 2015 को अपने बैंकर को अनादरित चेक प्रस्तुत किया और 4 दिसंबर, 2015 को यह डिऑनर हो गया। हालांकि, आरोपी को भेजे गए कानूनी नोटिस के साथ-साथ मूल शिकायत में चेक की प्रस्तुति और अनादर की तारीख अनजाने में क्रमशः 3 नवंबर, 2015 और 4 नवंबर, 2015 बताई गई।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि तारीखों की गलती कुछ अनजाने टाइपोग्राफिकल त्रुटि के कारण हुई। हालांकि, संलग्न दस्तावेजों में स्पष्ट रूप से सही तारीखें दर्शाई गईं। इसलिए ट्रायल कोर्ट और रिवीजनल कोर्ट ने संशोधन आवेदन खारिज करके अवैधता और विकृति की। पक्षों की दलीलों को सुनते हुए कोर्ट ने दो तथ्यों को ध्यान में रखा।

    सबसे पहले पे-इन-स्लिप में स्पष्ट रूप से वह तारीख दिखाई गई, जिस दिन चेक प्रस्तुत किया गया और दूसरी बात याचिकाकर्ता की अकाउंट डिटेल्स में चेक के डिऑनर की तारीख दर्शाई गई। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को संज्ञान लेते समय उन दस्तावेजों पर विचार करना चाहिए था, जो शुरू में ही ये गलतियां प्रस्तुत कर सकते थे। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि चेक डिऑनर की सूचना मिलने के 30 दिनों के भीतर पीड़ित को आरोपी को कानूनी नोटिस देना होगा।

    वर्तमान मामले में नोटिस 9 दिसंबर 2015 को दिया गया। यदि चेक 4 नवंबर 2015 को डिऑनर हो जाता तो 30 दिनों की सीमा अवधि जो 4 दिसंबर 2015 को समाप्त हो रही थी, ने ट्रायल कोर्ट को मामले का संज्ञान लेने से रोक दिया होता। संज्ञान लिया गया था, इसलिए यह कहा जा सकता है कि ट्रायल कोर्ट ने भी डिऑनर की सही तारीख यानी 4 दिसंबर, 2015 को ही माना न कि शिकायत में उल्लिखित गलत तारीख को माना गया।

    इस विश्लेषण की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट और संशोधन न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को खारिज किया, जिन्होंने संशोधन याचिका खारिज कर दी।

    तदनुसार, याचिका शिकायत और संलग्न हलफनामे में संशोधन करने की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल- महावीर प्रसाद सुमन बनाम ललित मोहन शर्मा

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