एससी/एसटी वर्ग के सदस्य द्वारा गैर-समुदाय के व्यक्ति को किरायेदारी अधिकारों की बिक्री, वसीयत राज्य किरायेदारी कानून के तहत अमान्य: राजस्थान हाईकोर्ट

Avanish Pathak

14 Feb 2025 1:45 PM IST

  • एससी/एसटी वर्ग के सदस्य द्वारा गैर-समुदाय के व्यक्ति को किरायेदारी अधिकारों की बिक्री, वसीयत राज्य किरायेदारी कानून के तहत अमान्य: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने दोहराया कि जो व्यक्ति अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग का सदस्य नहीं है, वह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्ति की भूमि पर प्रतिकूल कब्जे के आधार पर खातेदारी या काश्तकारी अधिकार का दावा नहीं कर सकता है, जिसे राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की धारा 42 का उल्लंघन करके उससे खरीदा गया था।

    अधिनियम की धारा 42 में प्रावधान है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को खातेदार काश्तकारी अधिकारों की बिक्री, उपहार या वसीयत जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, शून्य है।

    इस विषय पर एक खंडपीठ के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस अवनीश झिंगन ने अपने आदेश में कहा,

    "यह मुद्दा अब पुनर्गठित नहीं है और सीता राम बनाम राजस्व बोर्ड में इस न्यायालय की खंडपीठ द्वारा [2012 एससीसी ऑनलाइन राज 2502] में रिपोर्ट किया गया है। यह माना गया था कि 1955 के अधिनियम की धारा 42 के उल्लंघन में भूमि खरीदने वाला व्यक्ति प्रतिकूल कब्जे से खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता है"।

    अदालत याचिकाकर्ताओं द्वारा भूमि के खातेदारी अधिकारों की घोषणा के लिए दायर मुकदमे को खारिज करने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    यह जमीन 1965 में प्रतिवादी के पिता से खरीदी गई थी, जो अनुसूचित जाति से थे। प्रतिवादी ने याचिकाकर्ताओं को बेदखल करने के लिए एक आवेदन दायर किया था, जिसे 1978 में खारिज कर दिया गया था। इसके अनुसरण में, याचिकाकर्ताओं द्वारा भूमि के खातेदार घोषित किए जाने के लिए एक वाद दायर किया गया था, जिसे 1997 में खारिज कर दिया गया था।

    मुकदमे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि 1965 में भूमि की बिक्री अधिनियम की धारा 42 (बी) के खिलाफ थी, और इसलिए याचिकाकर्ता इस पर खातेदारी अधिकारों का दावा नहीं कर सकते थे। इसे राजस्व अपीलीय प्राधिकरण और राजस्व बोर्ड ने बरकरार रखा। बोर्ड ने याचिकाकर्ताओं की समीक्षा को भी खारिज कर दिया। इसलिए, याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    याचिकाकर्ताओं का कहना था कि चूंकि वे उस भूमि पर प्रतिकूल कब्जे में थे, जो प्रतिवादी द्वारा उनके निष्कासन के लिए आवेदन खारिज किए जाने के समय अंतिम रूप ले चुकी थी, इसलिए मुकदमे का फैसला रेस-ज्यूडिकेटा के सिद्धांत पर किया जाना चाहिए था।

    अदालत ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की धारा 42 का उल्लंघन करके खरीदी गई एससी/एसटी श्रेणी की भूमि पर प्रतिकूल कब्जे के आधार पर खातेदारी अधिकारों का दावा किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने सीता राम बनाम राजस्व मंडल मामले में खंडपीठ के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि, "विपरीत कब्जे के आधार पर खातेदारी अधिकार मांगने वाले व्यक्तियों के नाम पर भूमि दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि अधिनियम की धारा 42 अनुसूचित जाति के खातेदार काश्तकार द्वारा अनुसूचित जाति से बाहर के व्यक्ति को भूमि हस्तांतरित करने पर रोक लगाती है, इसलिए यह निषेधाज्ञा पूर्ण है।"

    इसके अलावा, हाईकोर्ट ने कहा कि यहां रिस-ज्युडिकेटा का सिद्धांत लागू नहीं होता, क्योंकि दोनों मामलों की विषय-वस्तु अलग-अलग है। बेदखली के लिए आवेदन में मुद्दा यह था कि क्या याचिकाकर्ता भूमि पर प्रतिकूल कब्जे में थे और इस प्रकार वे अतिचारी थे या नहीं। जबकि वर्तमान मामले में मुद्दा यह था कि क्या याचिकाकर्ता प्रतिकूल कब्जे के आधार पर अनुसूचित जाति की भूमि पर खातेदारी अधिकार का दावा कर सकता है।

    न्यायालय ने कहा कि 1955 के अधिनियम की धारा 42(बी) के प्रावधान तथा सीता राम के मामले में लिए गए निर्णय के आलोक में वाद को सही तरीके से खारिज किया गया है, जिसमें कहा गया है कि अनुसूचित जाति की भूमि के खातेदारी अधिकारों का दावा प्रतिकूल कब्जे के आधार पर नहीं किया जा सकता। इस प्रकार याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटलः आनंदी लाल एवं अन्य बनाम श्री दलीप प्रजापत एवं अन्य।

    साइटेशन: 2025 लाइव लॉ (राजस्थान) 61

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