राजस्थान हाईकोर्ट ने PMLA मामले में गिरफ्तार व्यक्ति को सशर्त विदेश यात्रा की दी अनुमति, कहा- विदेश यात्रा का अधिकार
Shahadat
25 Jun 2025 3:45 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने PMLA मामले में गिरफ्तार एक व्यक्ति को व्यापारिक बैठकों के लिए दुबई और सिंगापुर जाने की अनुमति दी। साथ ही दोहराया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' की अभिव्यक्ति में विदेश जाने का अधिकार भी शामिल है।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' की अभिव्यक्ति का दायरा व्यापक है, जिसमें विदेश जाने का अधिकार भी शामिल है। किसी व्यक्ति को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही इस अधिकार से वंचित किया जा सकता है।"
इसके बाद उसने कहा:
"इस न्यायालय को याचिकाकर्ता के विदेश यात्रा करने के अधिकार और अभियोजन पक्ष के उस पर विधिवत मुकदमा चलाने के अधिकार के बीच संतुलन बनाना होगा, जिससे उसे मुकदमे से बचने से रोका जा सके। माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित विभिन्न निर्णयों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि विदेश जाने की अनुमति प्राप्त व्यक्तियों पर लगाई गई शर्त पर सर्वोच्च विचार किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे न्याय से भाग न सकें। ट्रायल कोर्ट के समक्ष अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कोई भी उचित शर्त लगाई जा सकती है। यदि कानून द्वारा लगाई गई शर्त का उल्लंघन किया जाता है, तो उचित बलपूर्वक कार्रवाई की जा सकती है।"
याचिकाकर्ता ने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए दुबई और सिंगापुर की यात्रा करने की अनुमति देने से इनकार करने वाले ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
यह मामला प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा याचिकाकर्ता और अन्य के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 3 और 4 के तहत दायर की गई शिकायत से उत्पन्न हुआ था। स्पेशल कोर्ट ने 12 जुलाई, 2021 को अपराध का संज्ञान लिया और गिरफ्तारी वारंट जारी किए।
ये वारंट संबंधित हेड कांस्टेबल की रिपोर्ट के साथ बिना तामील किए वापस कर दिए गए, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता फरार हो गया है। नतीजतन, ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किए।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने CrPC की धारा 70(2) और 71 के तहत गिरफ्तारी वारंट को जमानती वारंट में बदलने के लिए आवेदन किया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस बीच उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने याचिकाकर्ता को जमानत बांड प्रस्तुत करने की अनुमति देते हुए अंतरिम आदेश पारित किया। उन्हें बिना अदालत की पूर्व अनुमति के भारत नहीं छोड़ने की शर्त पर जमानत पर रिहा किया गया। जब याचिकाकर्ता ने व्यावसायिक बैठकों के लिए विदेश यात्रा की अनुमति मांगी तो ट्रायल कोर्ट ने दस्तावेजी साक्ष्य की कमी का हवाला देते हुए आवेदन को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर वकील ए.के. गुप्ता ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को विदेश जाने का अधिकार है और उनके मुवक्किल को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही उनके अधिकार से वंचित किया जा सकता है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल आर.डी. रस्तोगी द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए ED ने याचिका का विरोध किया, जिसमें याचिकाकर्ता के फरार होने के पिछले प्रयास को उजागर किया गया तथा उसकी वापसी के बारे में संदेह जताया गया। आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने मामले के तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करके अंतरिम राहत हासिल की है।
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने 27 दिसंबर, 2022 को दो पत्र प्रस्तुत किए, जिसमें संकेत दिया गया कि सिंगापुर और दुबई में एक व्यावसायिक बैठक में उसकी उपस्थिति आवश्यक है।
उसे विदेश यात्रा की अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया तथा याचिकाकर्ता पर निम्नलिखित शर्तें लगाईं:
(i) वह 20.01.2023 को या उससे पहले भारत लौटेगा तथा वह विदेश से अपनी वापसी तथा न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने को सुनिश्चित करने के लिए ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 25 लाख रुपये की पर्याप्त जमानत तथा बैंक गारंटी प्रस्तुत करेगा।
(ii) याचिकाकर्ता भारत लौटने पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होगा।
(iii) याचिकाकर्ता सिंगापुर और दुबई को छोड़कर किसी अन्य देश की यात्रा नहीं करेगा, जिसके लिए इस न्यायालय द्वारा विदेश यात्रा की अनुमति दी गई है।
(iv) याचिकाकर्ता अपने साथ एक्टिव मोबाइल नंबर वाला मोबाइल रखेगा, जिसे वह क्रमशः सिंगापुर और दुबई पहुंचने के बाद अपने वकील के माध्यम से ट्रायल कोर्ट को उपलब्ध कराएगा, और वह फोन को अंतर्राष्ट्रीय कॉल के लिए सक्रिय रखेगा और वह सक्रिय इंटरनेट कनेक्शन के साथ व्हाट्सएप एप्लिकेशन पर भी उपलब्ध रहेगा।
Case Title: Ashutosh Bajoria v Rajesh Kumar Sharma (S.B. Criminal Miscellaneous (Petition) No. 12/2023)

