जनहित से जुड़े शांतिपूर्ण आंदोलनों पर दर्ज मामलों की वापसी को मंजूरी: राजस्थान हाईकोर्ट
Praveen Mishra
13 Dec 2025 3:40 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक पूर्व विधायक एवं राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री के खिलाफ दर्ज अभियोजन को वापस लेने की अनुमति देते हुए कहा है कि एफआईआर में जिस कथित जन-अशांति का उल्लेख है, वह जनहित से जुड़े मुद्दों के कारण उत्पन्न हुई थी और इसके पीछे कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने यह पाया कि आरोप पानी की किल्लत तथा प्रशासन से न्याय की मांग जैसे विषयों पर किए गए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों से संबंधित थे, जिनसे सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने का कोई प्रयास परिलक्षित नहीं होता।
कोर्ट का अवलोकन
अदालत ने रिकॉर्ड किया कि ये आंदोलन जनता के व्यापक हित में शुरू किए गए थे और चूंकि आरोपी निर्वाचित जनप्रतिनिधि थे, इसलिए अपने क्षेत्र की समस्याओं और लोगों की चिंताओं को उठाना उनका सामाजिक और विधिक दायित्व भी था।
राज्य सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि सरकार की उच्चस्तरीय समिति (High Powered Committee) ने आरोपों की तुच्छ प्रकृति को देखते हुए अभियोजन वापस लेने का निर्णय लिया है। इसके मद्देनज़र, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Ashwini Kumar Upadhyay बनाम Union of India के अनुरूप, पूर्व/वर्तमान विधायकों के खिलाफ मामलों की वापसी के लिए अदालत से अनुमति मांगी गई।
कानूनी पहलू
कोर्ट ने धारा 321, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) का अवलोकन करते हुए कहा कि अभियोजन वापस लेने की शक्ति और विवेक का प्रयोग अत्यंत सावधानी, सद्भावना और व्यापक जनहित में ही किया जाना चाहिए।
लोकतंत्र में शांतिपूर्ण सभा और विरोध का अधिकार मौलिक अधिकार बताते हुए अदालत ने कहा कि इस पर केवल तभी प्रतिबंध लगाया जा सकता है, जब सार्वजनिक व्यवस्था भंग होती हो। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“जनहित की अवधारणा स्थिर नहीं है, बल्कि समय के साथ विकसित होती है और जिस संदर्भ में इसका उपयोग किया जाता है, उसी से इसका स्वरूप तय होता है।”
निष्कर्ष
समस्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हाईकोर्ट ने माना कि सार्वजनिक आंदोलन शुरू करने में आरोपियों का कोई व्यक्तिगत हित नहीं था और वे केवल जनता के हित में उचित मांगें उठा रहे थे।
इसी आधार पर राजस्थान हाईकोर्ट ने अभियोजन वापस लेने की अनुमति प्रदान कर दी।

