राजस्थान हाईकोर्ट ने कोर्ट द्वारा सील किए गए फिक्स्ड डिपॉज़िट को 'बिना वजह' निकालने के लिए एक्सिस बैंक को फटकार लगाई, कहा - कोई भी कानून से ऊपर नहीं
Shahadat
11 Dec 2025 12:55 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक्सिस बैंक की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई। इसमें बैंक को करीब 8 करोड़ रुपये फिर से जमा करने का निर्देश दिया गया। यह रकम बैंक ने एक फिक्स्ड डिपॉज़िट से एकतरफा निकाल ली थी, जिसे कोर्ट ने अनिवार्य किया।
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की बेंच ने कहा कि जब कोई संवैधानिक अदालत या कोई भी अदालत कोई आदेश देती है तो हर व्यक्ति या अथॉरिटी, चाहे उसका पद कुछ भी हो, उसका पालन करने के लिए बाध्य है; और अवज्ञा कानून के शासन की नींव पर ही हमला करती है, जिस पर पूरा लोकतंत्र आधारित है।
यह मामला प्रतिवादियों द्वारा लगभग 600 किसानों के कृषि उत्पादों में धोखाधड़ी करने और उन्हें गिरवी रखकर बैंक से लोन लेने से संबंधित है, जिसका वे आखिरकार भुगतान नहीं कर पाए। इस संबंध में 2012 में ट्रायल के दौरान, ट्रायल कोर्ट ने जब्त किए गए कृषि उत्पादों की नीलामी से मिली रकम का फिक्स्ड डिपॉज़िट रिज़र्व कोर्ट के नाम पर बनाने का निर्देश दिया था।
एक्सिस बैंक ने इस रकम का इस्तेमाल करने के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे खारिज कर दिया गया। इससे नाराज़ होकर, कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसे DRT के सामने रिकवरी की कार्यवाही शुरू करने के लिए वापस ले लिया गया, जिसने बैंक को मूल आवेदन की रकम का अस्थायी रूप से इस्तेमाल करने की अनुमति दी। इस आदेश के आधार पर, FD से रकम निकाल ली गई।
इसे ट्रायल कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने बैंक को उचित रकम वापस करने का निर्देश दिया, जो बैंक की हिरासत में थी, ऐसा न करने पर बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर/CEO और संबंधित बैंक मैनेजर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस आदेश को कोर्ट में चुनौती दी गई।
प्रतिवादियों द्वारा कोर्ट के सामने यह बात रखी गई कि फिक्स्ड डिपॉज़िट बनाने के ट्रायल कोर्ट के आदेशों की जानकारी DRT को नहीं दी गई। ट्रायल कोर्ट की अनुमति लिए बिना बैंक ने FD से रकम निकाल ली।
कहा गया,
“ट्रायल कोर्ट द्वारा 07.07.2012 और 03.06.2013 को दिए गए आदेश और इस कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों को I.A. No.142/2018 में बहस के समय DRT के ध्यान में नहीं लाया गया, इसीलिए DRT ने याचिकाकर्ता-बैंक को OA राशि के अस्थायी इस्तेमाल की इजाज़त दी थी। अगर ये सभी तथ्य और आदेश DRT के ध्यान में लाए गए होते तो 20.04.2018 का आदेश पारित नहीं किया जाता।”
इस बात को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि बैंक का काम ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों के खिलाफ था और कानून का सरासर उल्लंघन था। और बैंक के MD/CEO और संबंधित बैंक मैनेजर को ब्याज सहित इस्तेमाल की गई राशि वापस करने के लिए नोटिस सही जारी किए गए।
कोर्ट ने कहा,
"वह कोई भी हो, कितना भी बड़ा हो, कानून के शासन से ऊपर नहीं है... क्या याचिकाकर्ता जैसा कोई भी व्यक्ति ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए और इस कोर्ट द्वारा बरकरार रखे गए किसी भी आदेश या निर्देशों के खिलाफ काम कर सकता है?"
कोर्ट ने उपर्युक्त टिप्पणी की और बैंक की याचिका खारिज कर दी।
Title: Axis Bank v State of Rajasthan & Ors.

