हाईकोर्ट से परामर्श के बाद एएजी की नियुक्ति न करना अवमानना ​​नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य के खिलाफ स्वप्रेरणा से आपराधिक कार्यवाही बंद की

Avanish Pathak

22 April 2025 10:25 AM

  • हाईकोर्ट से परामर्श के बाद एएजी की नियुक्ति न करना अवमानना ​​नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य के खिलाफ स्वप्रेरणा से आपराधिक कार्यवाही बंद की

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट की सहमति के बावजूद राज्य द्वारा ब्रमानंद संदू को अधिवक्ता सह अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त करने का आदेश जारी न करने पर एकल न्यायाधीश द्वारा दर्ज की गई स्वप्रेरणा से दायर आपराधिक याचिका को बंद करते हुए कहा कि यह अवमानना ​​नहीं है और न ही इसे आपराधिक मामला माना जा सकता है।

    मुख्य न्यायाधीश मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति आनंद शर्मा की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा,

    "केवल इसलिए कि यह मामला हाईकोर्ट से परामर्श के बाद सरकारी अधिवक्ता की नियुक्ति से संबंधित है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 24 (जैसा कि तब अस्तित्व में था) के तहत आवश्यक है, इसे आपराधिक मामला नहीं माना जा सकता। यह अनिवार्य रूप से एक सेवा मुद्दा है। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि सेवा मामलों में कोई जनहित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है। हमारा यह भी मानना ​​है कि सीआरपीसी की धारा 24 के तहत हाईकोर्ट से परामर्श के बाद कोई नियुक्ति आदेश जारी न करना अवमानना ​​नहीं है।"

    आपराधिक रिट याचिका के रूप में दर्ज यह स्वप्रेरणा मामला तब हुआ जब दो अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा राज्य के विधि एवं विधिक मामलों के विभाग के प्रमुख सचिव को 16 अप्रैल, 2024 को लिखे गए पत्र की फोटोकॉपी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 24(1) के तहत राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर पीठ में ब्रह्मानंद सांदू को सरकारी अधिवक्ता-सह-अतिरिक्त महाधिवक्ता और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करने के लिए सहमति देने के बारे में लिखा गया था।

    पीठ ने कहा,

    "ऐसा प्रतीत होता है कि स्वप्रेरणा से संज्ञान लेने वाले विद्वान एकल न्यायाधीश को प्रथम दृष्टया यह राय बनाने के लिए राजी किया गया था कि परामर्श के बाद नियुक्ति आदेश जारी न करना राज्य के अधिकारियों की ओर से अपमानजनक कार्य या अवमाननापूर्ण कार्य है। विद्वान एकल न्यायाधीश को प्रथम दृष्टया यह राय बनाने के लिए भी राजी किया गया था कि क्या सरकार बिना किसी उचित कारण के सरकारी अधिवक्ता-सह-अतिरिक्त महाधिवक्ता की नियुक्ति के संबंध में हाईकोर्ट द्वारा दी गई सहमति को रोक सकती है।"

    प्रथम दृष्टया संतुष्टि के आधार पर मामले को आपराधिक रिट याचिका के रूप में माना जाए तथा विभिन्न अधिकारियों को नोटिस जारी किए जाएं। एकल न्यायाधीश ने विधि एवं विधिक कार्य विभाग के प्रमुख सचिव को श्री ब्रह्मानंद संदू को सरकारी अधिवक्ता-सह-अपर महाधिवक्ता के रूप में नियुक्त करने की प्रक्रिया के संबंध में मूल अभिलेख/फाइल के साथ व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित रहने का निर्देश दिया था।

    पीठ ने पाया कि एकल न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित होने वाले अधिवक्ता उसके समक्ष उपस्थित नहीं थे तथा यह ज्ञात नहीं है कि किसके निर्देश पर वे 16 अप्रैल, 2024 के पत्र की प्रति प्रस्तुत करने न्यायालय में उपस्थित हुए। राज्य की ओर से उपस्थित एएजी तथा हाईकोर्ट की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता की ओर से तर्क दिया गया कि उठाया गया मुद्दा आपराधिक रिट याचिका या अवमाननापूर्ण कृत्य का मामला नहीं हो सकता।

    हाईकोर्ट द्वारा भेजी गई सहमति राज्य के समक्ष विचाराधीन है, जिस पर निर्णय लेना सरकार का काम है। पीठ ने दलीलों पर गौर करने के बाद कहा कि यदि संबंधित व्यक्ति जिसके मामले में परामर्श प्रक्रिया अपनाई गई है और उसके बाद भी उसे नियुक्त नहीं किया गया है, तो "यह केवल एक व्यक्तिगत शिकायत है"।

    पीठ ने कहा, "यदि ऐसा व्यक्ति सलाह देता है तो वह उचित याचिका दायर करके अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।"

    इस प्रकार अदालत ने ब्रह्मानंद संदू को कानून के तहत उपलब्ध कोई भी उपाय करने की स्वतंत्रता देते हुए याचिका को क्लोज़ कर दिया।

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