लोक अदालतों के पास न्यायिक शक्तियां नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने आपराधिक अभियोजन वापस लेने की अनुमति देने वाला अवार्ड रद्द किया

Amir Ahmad

1 July 2024 6:27 AM GMT

  • लोक अदालतों के पास न्यायिक शक्तियां नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने आपराधिक अभियोजन वापस लेने की अनुमति देने वाला अवार्ड रद्द किया

    राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि लोक अदालतों के पास न्यायिक शक्तियां नहीं हैं। इसलिए आपराधिक अभियोजन वापस लेने की अनुमति देने वाला लोक अदालत का आदेश बरकरार नहीं रखा जा सकता।

    जस्टिस अनिल कुमार उपमन की पीठ राष्ट्रीय लोक अदालत का वह आदेश रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सहायक लोक अभियोजक को आईपीसी की धारा 323 और 341 के तहत आपराधिक मामले में आपराधिक अभियोजन वापस लेने की अनुमति दी गई और आरोपी को बरी कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह आदेश अवैध मनमाना और कानून के विपरीत है, क्योंकि लोक अदालतों के पास इस तरह की वापसी की अनुमति देने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। लोक अदालत केवल पक्षों के बीच समझौते के आधार पर मामलों का निपटारा कर सकती है। अगर कोई समझौता नहीं हुआ तो मामले को अदालत को वापस भेजने की जरूरत है। यह भी तर्क दिया गया कि यह निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है, क्योंकि आदेश पारित करने से पहले याचिकाकर्ता को कोई नोटिस नहीं दिया गया।

    न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा तय किए गए श्याम बच्चन बनाम राजस्थान राज्य और अन्य के समान मामले का संदर्भ दिया गया, जहां यह माना गया कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायिक शक्ति नहीं है और आपराधिक अभियोजन को वापस लेने की अनुमति देते समय इसने न्यायिक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया, जो कानून के विपरीत है। मामले में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के अध्याय VI की धारा 19 और 20 के अंतर्गत लोक अदालतों के आयोजन तथा लोक अदालतों द्वारा मामलों के संज्ञान के प्रावधानों का विश्लेषण किया गया।

    “उपधारा (3), उपधारा (4) और उपधारा (5) के साथ-साथ धारा 20 की उपधारा (6) के प्रावधानों से यह संकेत मिलता है कि लोक अदालत को यह प्रयास करना होगा कि पक्षकार समझौता और समाधान पर पहुंचें। पक्षों के बीच समझौता होने पर ही अवार्ड दिया जा सकता है। यदि पक्षकार समझौता या समाधान पर नहीं पहुंचते हैं तो लोक अदालत अधिनियम की धारा 20 की उपधारा (6) के अंतर्गत मामले को न्यायालय के समक्ष वापस भेजने के लिए बाध्य है।”

    अध्याय VI (सुप्रा) के तहत पूरी योजना के साथ-साथ उपर्युक्त संदर्भित प्रावधानों का अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायिक शक्ति नहीं है और लोक अभियोजक की अभियोजन वापस लेने की प्रार्थना को स्वीकार करके लोक अदालत ने न्यायिक अधिकारिता का प्रयोग किया, जो इसमें निहित नहीं है।

    इस प्रकार न्यायालय ने लोक अदालत का आदेश रद्द कर दिया और तदनुसार याचिका स्वीकार कर ली।

    आपराधिक मामले को सक्षम न्यायालय के समक्ष बहाल करने का निर्देश दिया गया।

    केस टाइटल- मीनू सिंह बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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