राजस्थान हाइकोर्ट ने COVID-19 के दौरान पंचायत को देय संविदा शुल्क माफ किया, कहा- यह मानवीय नियंत्रण से परे था, भले ही कॉन्ट्रैक्ट में इसका स्पष्ट उल्लेख न किया गया हो

Amir Ahmad

20 April 2024 7:19 AM GMT

  • राजस्थान हाइकोर्ट ने COVID-19 के दौरान पंचायत को देय संविदा शुल्क माफ किया, कहा- यह मानवीय नियंत्रण से परे था, भले ही कॉन्ट्रैक्ट में इसका स्पष्ट उल्लेख न किया गया हो

    राजस्थान हाइकोर्ट ने हाल ही में पंचायत कॉन्ट्रैक्ट के उच्चतम बोलीदाताओं से उनके दायित्वों में चूक के लिए लगभग 19 लाख रुपये की वसूली की छूट दी। कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों का यह उल्लंघन मार्च 2020 से जून 2021 की अवधि के दौरान हुआ जब महामारी के कारण सभी औद्योगिक संचालन बंद थे।

    जस्टिस विनीत कुमार माथुर की सिंगल बेंच ने आदेश में उल्लेख किया कि कॉन्ट्रैक्ट की अवधि के दौरान मानव नियंत्रण से परे स्थितियां हुईं। जोधपुर में बैठी बेंच ने कहा कि भले ही कॉन्ट्रैक्ट में इसका स्पष्ट उल्लेख न किया गया हो, लेकिन विवाद को सुलझाते समय पक्षकारों के बीच समानता सुनिश्चित करने के लिए ऐसे परिदृश्यों पर विचार किया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "याचिकाकर्ताओं को उनके नियंत्रण से परे कारणों से कॉन्ट्रैक्ट के अपने हिस्से को पूरा करने से पर्याप्त साधनों से रोका गया। इसलिए यदि वसूली जारी रहती है तो यह उनकी किसी भी गलती के बिना कठिनाई पैदा करेगी। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 56 के अनुसार भी याचिकाकर्ताओं को पर्याप्त कारणों से रोका गया और असंभव स्थिति के कारण वे अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करने में असमर्थ थे।”

    याचिकाकर्ताओं की ओर से 4 अलग-अलग समय अवधि के दौरान चूक हुई। इसलिए पसुंद ग्राम पंचायत को COVID-19 अवधि के लिए वसूली की राशि माफ करने के बाद राशि की पुनर्गणना करने का निर्देश दिया गया।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को पुनर्गणना की गई राशि को किश्तों में ग्राम पंचायत में जमा करना चाहिए।

    न्यायालय ने सत्यब्रत घोष बनाम मुगनीराम बांगुर एंड कंपनी एवं अन्य एआईआर 1954 एससी 44 पर भरोसा करने के बाद कहा,

    "वर्तमान याचिकाकर्ताओं का मामला भी उसी स्तर पर है, जिसमें राज्य सरकार ने COVID-19 महामारी के प्रकोप के कारण लॉकडाउन के कारण नदी-रेत उठाने के लिए रॉयल्टी की वसूली के लिए ठेकेदारों को लाभ प्रदान किया। इसलिए यह न्यायालय महसूस करता है कि उसी सिद्धांत पर याचिकाकर्ता भी छूट का लाभ पाने के हकदार हैं।”

    पंचायत द्वारा 25.09.2021 को वसूली नोटिस जारी किया गया, जिसमें याचिकाकर्ताओं को संगमरमर के घोल को हटाने और डंप यार्ड में डंप करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट में निर्दिष्ट कार्य नहीं करने के लिए उपरोक्त राशि जमा करने का निर्देश दिया गया।

    याचिकाकर्ताओं के समझौते को कुछ मुद्दों के कारण पंचायत द्वारा दिनांक 13.03.2020 के आदेश द्वारा समाप्त कर दिया। बाद में हाइकोर्ट ने 13.03.2020 के आदेश के प्रभाव और संचालन पर रोक लगा दी। इसके बाद जब याचिकाकर्ता अपना काम जारी रखे हुए थे तो वे कुछ समय के लिए अपने अनुबंध संबंधी दायित्वों को पूरा करने में सक्षम नहीं थे, जिसमें लॉकडाउन लागू होने की अवधि भी शामिल थी।

    जस्टिस माथुर के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील ने जोरदार ढंग से तर्क दिया कि लॉकडाउन अवधि के दौरान संगमरमर के घोल को उठाने और डंप करने का कोई सवाल ही नहीं था और इसलिए वे अपनी गलती के बिना अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करने में असमर्थ थे।

    'फोर्स मेज्योर' के सिद्धांत का आह्वान करके याचिकाकर्ताओं की दलीलों से सहमति जताते हुए जस्टिस माथुर ने आदेश में आगे कहा कि COVID-19 का प्रकोप याचिकाकर्ताओं के नियंत्रण से परे ईश्वरीय कृत्य था।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    “केवल इसलिए कि पक्षकारों के बीच किए गए संविदात्मक समझौते में कोई प्रावधान नहीं है यदि भगवान के किसी कृत्य द्वारा कोई स्थिति निर्मित हुई, जिसने पक्षों में से किसी एक को दायित्व के अपने हिस्से को पूरा करने में अक्षम कर दिया तो उससे उत्पन्न होने वाली आकस्मिकता को ध्यान में रखना आवश्यक है। इससे पक्षकारों में से किसी एक को कोई कठिनाई न हो पाए।”

    उपरोक्त कारणों का हवाला देते हुए रिट को आंशिक रूप से अनुमति दी गई और 25.09.2021 के वसूली आदेश को महामारी के कारण औद्योगिक संचालन बंद होने की अवधि के लिए आदेशित वसूली की सीमा तक रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल- मनोज पालीवाल और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

    Next Story