राजस्थान हाइकोर्ट ने फैमिली कोर्ट से अनावश्यक स्थगन से बचने के लिए धारा 21बी हिंदू विवाह अधिनियम का पालन करने को कहा, जो दिन-प्रतिदिन सुनवाई को प्रोत्साहित करता है

Amir Ahmad

16 March 2024 10:18 AM GMT

  • राजस्थान हाइकोर्ट ने फैमिली कोर्ट से अनावश्यक स्थगन से बचने के लिए धारा 21बी हिंदू विवाह अधिनियम का पालन करने को कहा, जो दिन-प्रतिदिन सुनवाई को प्रोत्साहित करता है

    राजस्थान हाइकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act 1955) की धारा 21बी के पीछे के उद्देश्य को साकार करने के लिए फैमिली कोर्ट से तलाक की याचिकाओं के लंबित रहने के दौरान संयम से स्थगन देने को कहा है।

    जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि तलाक के मामलों के निपटारे में अनावश्यक रूप से देरी नहीं की जानी चाहिए और कार्यवाही जितनी जल्दी हो सके समाप्त की जानी चाहिए।

    जयपुर स्थित खंडपीठ ने उचित निर्देश जारी किए,

    "इस आदेश की एक प्रति रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से सभी फैमिली कोर्ट को इस निर्देश के साथ भेजी जाए कि 1955 के अधिनियम के प्रावधानों से उत्पन्न होने वाले सभी वैवाहिक मामलों का निर्णय करते समय 1955 के अधिनियम की धारा 21-बी के तहत निहित प्रावधानों का पालन किया जाए।”

    रिट याचिका मूल रूप से हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत विवाह ख़त्म करने की याचिका के शीघ्र निपटान के लिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग करते हुए दायर की गई। मामला 2022 में जयपुर के फैमिली कोर्ट में दायर किया गया।

    धारा 21बी में अनिवार्य प्रावधान प्रतिवादी को याचिका की सूचना की तामील की तारीख से छह महीने के भीतर तलाक की याचिकाओं का निपटान निर्धारित करता है। यह यह भी निर्धारित करता है कि मुकदमे को उसके निष्कर्ष तक दिन-प्रतिदिन जारी रखा जाना चाहिए, जब तक कि अदालत को दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए मुकदमे का स्थगन आवश्यक न लगे।

    मौजूदा मामले में प्रतिवादी द्वारा पहले ही जवाब दाखिल कर दिया गया और मामले को मुद्दों के निपटारे के लिए पोस्ट किया गया।

    फैमिली कोर्ट से शीघ्र निपटान सुनिश्चित करने का आग्रह करने से पहले हाइकोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि निर्दिष्ट समय-अवधि के भीतर मामलों के निपटान को अनिवार्य करने वाले वैधानिक प्रावधानों को आमतौर पर विवेकाधीन माना जाता है। अदालत ने माना कि फैमिली कोर्ट में पहले से ही कई वैवाहिक विवाद लंबित हैं।

    हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद बनाम यूपी राज्य और अन्य 2024 लाइव लॉ (एससी) 177 का उल्लेख करते हुए जस्टिस ढांड ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट और हइकोर्ट को आमतौर पर अन्य अदालतों में मामले के निपटान के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय करने से बचना आवश्यक है।

    जस्टिस ढांड ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में दिए गए तर्क को दोहराया कि जमीनी स्तर की स्थिति के बारे में संबंधित अदालतों के न्यायाधीशों को सबसे अच्छी जानकारी है।

    “कुछ मामलों को आउट-ऑफ़-टर्न प्राथमिकता देने का मुद्दा संबंधित न्यायालयों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। मामलों के निपटान के लिए बाहरी सीमा तय करने वाले आदेश असाधारण परिस्थितियों से निपटने के लिए केवल असाधारण परिस्थितियों में ही पारित किए जाने चाहिए।”

    चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ, जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस मनोज के साथ मिश्रा ने फरवरी में आयोजित की थी।

    इसके अलावा ढांड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक वादी संवैधानिक अदालतों से संपर्क नहीं कर सकता और ऐसे वादियों को अन्य सभी वादियों के मुकाबले अपने मामले के समय से पहले निपटान का आदेश प्राप्त करके अनुचित लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो संबंधित अदालत के समक्ष प्रतीक्षा कर रहे हैं।

    वहीं धारा 21बी के आदेश पर विचार करते हुए अदालत ने संबंधित फैमिली कोर्ट को उसके समक्ष लंबित तलाक याचिका की कार्यवाही में तेजी लाने का निर्देश दिया।

    याचिकाकर्ता-पति की ओर से वकील- सिकंदर अली चोपदार पेश हुए

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