स्वैच्छिक रिटायरमेंट के आवेदन की स्वीकृति के बाद वापसी पर पूर्ण प्रतिबंध अनुचित: राजस्थान हाईकोर्ट ने सिविल सेवा पेंशन नियमों के प्रावधान को सीमित किया
Amir Ahmad
8 May 2025 4:08 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सिविल सेवा (पेंशन) नियमों के नियम 50(4) में दिए गए उस प्रावधान को पढ़कर सीमित किया, जिसमें स्वैच्छिक रिटायरमेंट के आवेदन की स्वीकृति के बाद उसे वापस लेने पर पूर्ण प्रतिबंध था। अदालत ने कहा कि किसी कर्मचारी को उसके रिटायरमेंट आवेदन को प्रभावी होने से पहले वापस लेने के विकल्प से वंचित करना इस योजना को स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित बना देता है।
अदालत ने यह भी माना कि स्वैच्छिक रिटायरमेंट के आवेदन की वापसी को मना करना विवेकपूर्ण विचार के बिना नहीं किया जा सकता।
नियम 50(1) के अनुसार स्वैच्छिक रिटायरमेंट का आवेदन प्रभावी होने से पहले 3 महीने की नोटिस अवधि होती है। लेकिन नियम 50(4) की उपधारा कहती है कि यदि स्वैच्छिक रिटायरमेंट का अनुरोध एक बार स्वीकृत कर लिया गया और सूचित कर दिया गया तो कर्मचारी को उसे वापस लेने की अनुमति नहीं होगी।
चीफ जस्टिस मनीन्द्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस मुनुरी लक्ष्मण की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि यह प्रतिबंध बिना किसी निर्धारित सिद्धांत के नियम 50(1) के तहत दिए गए 3 महीने की सोच-विचार की अवधि को नष्ट कर देता है।
"प्रशासनिक सुविधा और अन्य कारक यदि नियोक्ता को रिटायरमेंट का आवेदन स्वीकार करने के लिए प्रेरित भी करते हैं तब भी प्रभावी तिथि आने से पहले कर्मचारी को आवेदन वापस लेने से पूरी तरह वंचित करना, केवल इसलिए कि आवेदन स्वीकार और सूचित कर दिया गया, बिना यह बताए कि इससे प्रशासनिक कठिनाई कैसे होगी, इस योजना को मनमाना और अनुचित बना देता है।”
अदालत ने कहा कि यदि यह मान लिया जाए कि रिटायरमेंट की प्रभावी तिथि तक कर्मचारी और नियोक्ता के बीच वैधानिक संबंध बना रहता है तो प्रभावी तिथि से पहले ही वापसी के अधिकार को खत्म करना मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
मामला
मामला एक सरकारी कर्मचारी से जुड़ा है, जिसने अपने बेटे की आत्महत्या के बाद स्वैच्छिक रिटायरमेंट का आवेदन दिया था। लेकिन आवेदन की स्वीकृति और संप्रेषण के बाद उन्होंने उसे वापस लेने का अनुरोध किया, जिसे राज्य सरकार ने खारिज कर दिया।
इस पृष्ठभूमि में कर्मचारी ने नियम 50(4) और उसकी उपधारा को मनमाना, अव्यावहारिक और अनुच्छेद 14 के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि तीन महीने की नोटिस अवधि का उद्देश्य ही यह था कि कर्मचारी अपने निर्णय पर दोबारा विचार कर सके। ऐसे में बिना किसी तार्किक आधार के वापसी पर रोक लगाना संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत है।
न्यायालय के निष्कर्ष:
न्यायालय ने कहा कि 3 महीने की नोटिस अवधि का उद्देश्य दोहरा है
नियोक्ता यह जांच सके कि क्या रिटायरमेंट स्वीकार की जा सकती है (जैसे लंबित जांच या बकाया वसूली के आधार पर) और कर्मचारी को यह सोचने का अवसर मिले कि क्या वह भावनात्मक दबाव में लिया गया निर्णय बदलना चाहता है।
अदालत ने कहा कि नियम में कोई स्पष्ट सिद्धांत नहीं बताया गया कि स्वीकृति और संप्रेषण के बाद आवेदन वापसी को क्यों रोका जाना चाहिए।
"इस मामले में याचिकाकर्ता के युवा बेटे की आत्महत्या एक बड़ा मानसिक आघात था, जिसने उसे गहरे शोक और अवसाद में डाल दिया, जिसके चलते उसने त्वरित और भावनात्मक रूप से स्वैच्छिक रिटायरमेंट का निर्णय लिया। जब वह इस स्थिति से बाहर आया, तब उसे यह एहसास हुआ कि यह निर्णय परिस्थितियों की देन था।"
इस पृष्ठभूमि में अदालत ने कहा कि यदि यह पाया जाए कि वापसी की अनुमति देने से कोई प्रशासनिक कठिनाई नहीं होगी या यह जनहित के विरुद्ध नहीं है तो ऐसी स्थिति में वापसी को अस्वीकार करना मशीनवत (Mechanical) और अनुचित होगा।
अदालत ने कहा कि नियम 50(4) की उपधारा स्पष्ट रूप से मनमानी है। इसके संवैधानिकता को बचाए रखने के लिए इसे पढ़कर सीमित (Read Down) करना होगा।
निष्कर्ष और आदेश:
स्वैच्छिक रिटायरमेंट का आवेदन स्वीकृति और संप्रेषण के बाद भी जब तक वह प्रभावी न हो जाए, तब तक उसकी वापसी सुनवाई के योग्य है और उसे प्रशासनिक दृष्टिकोण से जांचा जाना चाहिए।
ऐसे मामलों में वापसी आवेदन सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता कि उसे पहले स्वीकार कर लिया गया था। यदि वापसी से कोई प्रशासनिक कठिनाई नहीं है तो वापसी की अनुमति दी जा सकती है। याचिका को स्वीकार किया गया और राज्य द्वारा पारित आदेश को रद्द कर मामला पुनः विचारार्थ भेजा गया।
केस टाइटल: भिखम चंद बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

